मांड्या। कर्नाटक के ऐतिहासिक कालभैरवेश्वर स्वामी मंदिर में पहली बार दलितों को प्रवेश करने की अनुमति देने के जिला अधिकारियों के फैसले के बाद मांड्या जिले के हनकेरे गांव में तनाव फैल गया है।
समावेशिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उठाए गए इस कदम का कुछ उच्च जाति के ग्रामीणों, मुख्य रूप से वोक्कालिगा समुदाय के लोगों ने रविवार को इसका कड़ा विरोध किया। प्रतिरोध के तौर पर उच्च जाति के ग्रामीणों ने मंदिर से उत्सव मूर्ति को हटा दिया और मंदिर परिसर के बाहर अनुष्ठान किए।
गौरतलब है कि इस संघर्ष की जड़ें बहिष्कार के लंबे इतिहास में हैं, क्योंकि दलितों को दशकों से मंदिर में प्रवेश से वंचित रखा गया था। कालभैरवेश्वर स्वामी मंदिर जीर्ण-शीर्ण हो गया था और तीन साल पहले इसे ध्वस्त कर दिया गया था। इसे राज्य के धार्मिक बंदोबस्ती विभाग के नियंत्रण में फिर से बनाया गया और हाल ही में स्थानीय अधिकारियों और पुलिस के साथ व्यापक चर्चा के बाद दलितों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी गई। यह वार्ता जाति-आधारित भेदभाव को दूर करने और सामाजिक समावेशिता को बढ़ावा देने के प्रयासों का हिस्सा थी।
कुछ ग्रामीण (जो मंदिर के जीर्णोद्धार में आर्थिक रूप से योगदान देने का दावा करते हैं) इस निर्णय के पक्ष में नहीं दिखे और उन्होंने इसका विरोध किया और कहा कि गांव में दलितों के लिए एक अलग मंदिर पहले ही बनाया जा चुका है। जाति-आधारित बहिष्कार के गहरे मुद्दों के साथ इस असहमति ने क्षेत्र में तनाव को बढ़ा दिया है।
हनाकेरे इलाके में कानून- व्यवस्था बनाए रखने और विरोध के स्वर को आगे बढ़ने से रोकने के प्रयास में भारी पुलिस बल तैनात किया गया है। स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है और गांव ऐतिहासिक मंदिर तक पहुंच के विवादास्पद मुद्दे पर विभाजित है। स्थानीय अधिकारी विवाद को सुलझाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन भावनाओं के उफान पर होने के कारण यह अनिश्चित है कि मामला कैसे सुलझेगा।