जनजाति समाज की बदौलत भारत की सभ्यता एवं संस्कृति जीवित

जयपुर। जनजाति गौरव दिवस की पूर्व संध्या पर जयपुर के राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान में संगोष्ठी एवं परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर आयुर्वेद संस्थान के विद्यार्थी व प्रशिक्षु उपस्थित रहे। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता मनोज कुमार ने जनजाति शब्द की व्याख्या करते हुए बताया कि जनजाति शब्द संविधान सम्मत है, जिसे स्थान के आधार पर वनवासी आदि भी कहा जाता हैं।

भारत में निवास के आधार पर त्रि स्तरीय व्यवस्था थी। नगर, ग्राम एवं वन। इसी के आधार पर वनों में रहने वाले वनवासी कहलाए। चर्चा में सम्मिलित लोगों ने ‘जनजाति क्या हैं’ इस पर अपने अपने विचार रखें। छात्रों ने भी बात रखते हुए कहा कि जनजाति ना केवल जंगल पर निर्भर हैं बल्कि उनकी रक्षा करने के लिए तत्पर रहते हैं। अंग्रेजों ने जनजाति समाज को जानबूझ कर पिछड़ा बनाने के लिएउन्हें ट्राइब नाम दिया।

जनजाति वो हैं जिन्होंने आज भी भारत की सभ्यता और संस्कृति को जीवित रखा हुआ है। जनजाति समाज ने कभी भारत पर अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार नहीं की। 1857 की क्रांति से पहले ही कई जनजाति नायकों ने भारत की स्वाधीनता के लिए अपना बलिदान दिया। राजस्थान के जनजाति बालक दुधा, भगवान बिरसा मुंडा, काली बाई, गोविन्द गुरु जैसे कई नायकों ने अपने प्राण न्योछावार कर दिए।

भारत के पर्यावरण संरक्षण में जनजाति समाज का महत्वपूर्ण योगदान हैं। जनजाति समाज ने प्रकृति और संस्कृति कों जोड़ने का कार्य किया। जनजाति समाज ने परम्परागत औषधिय पौधों का संरक्षण किया हैं।

मनोज कुमार ने बताया कि जनजाति गौरव दिवस जनजाति के प्रति चेतना जागृत करने और दुनियां कों भारत की जनजाति के बारें में बताने का एक तरीका हैं। 1875 में जन्मे भगवान बिरसा मुंडा भारत के महान जनजाति नायक थे और भारत की स्वाधीनता के लिए जनजाति समाज कों सतत संगठित करने का कार्य किया। उन्हीं के जन्म के उपलक्ष्य में जनजाति गौरव दिवस मनाया जाता हैं।

चर्चा के दूसरे राउंड में जनजाति नायकों, विभिन्न लोक कलाओं, संस्कृति पर चर्चा की गई। रानी दुर्गावती, शबरी, केवट, नाना भाई खांट, तिलका मांझी आदि के महान व्यक्तित्व पर बात की गई। भारत के लिए यह भी गौरव का विषय हैं कि भारत के सर्वोच्च पद पर यानी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू हैं जबकि विश्व के विकसित देशों में वहां के मूल निवासी बड़े पदों पर नहीं हैं।