राजस्थान में विधानसभा उपचुनाव से राजनीति में आया नया मोड़

जयपुर। राजस्थान में सात विधानसभा क्षेत्रों में हुए उपचुनाव के परिणाम से प्रदेश की राजनीति में नया मोड़ आ गया हैं और इस बार जहां भारतीय जनता पार्टी के विकास के नारे को बल मिला और कई वर्षों से अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा जमाए बैठे नेताओं एवं परिवारों का वर्चस्व समाप्त हो गया, वहीं प्रदेश की भजनलाल सरकार को दिए जा रहे पर्ची, सर्कस और यू टर्न सरकार आदि नामों की भी पोल खुल गई और इससे मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा का सियासी कद और बढ़ गया।

उपचुनाव की सात सीटों में पांच सीटें भाजपा ने जीत कर यह साबित कर दिया कि भाजपा ने चुनाव में विकास की जो बात कही उसे बल मिला है वहीं शर्मा के कुशल राजनीतिक नेतृत्व के चलते खींवसर, झुंझनूं एवं रामगढ़ में कई वर्षों से राजनीतिक प्रतिष्ठा जमाये बैठे दिग्गज नेताओं के सियासी गढ़ इस उपचुनाव में ढह गए। इससे यह भी संदेश गया कि अब पुराने एवं दिग्गज नेता का प्रभाव काम नहीं आता, जनता काम भी चाहती है और वह नए नेताओं को भी काम करने का मौका देना चाहती हैं और वह इस उपचुनाव में नजर भी आया।

इस बार खींवसर से भाजपा प्रत्याशी रेवंतराम डांगा, झुंझुनूं से राजेन्द्र भांबू, रामगढ़ से सुखवंत सिंह एवं सलूंबर से शांता मीणा, दौसा से कांग्रेस के दीनदयाल बैरवा तथा चौरासी से भारत आदिवासी पार्टी के अनिल कुमार कटारा पहली बार विधानसभा का चुनाव जीता है। केवल देवली-उनियारा में पूर्व मंत्री एवं भाजपा प्रत्याशी राजेन्द्र गुर्जर ग्यारह साल बाद फिर से चुनाव जीता हैं।

इसके अलावा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा सहित पार्टी के अन्य नेताओं ने भजनलाल सरकार को पर्ची सरकार नाम दे दिया गया कि दिल्ली से जो पर्ची आएगी भजनलाल वही काम करते हैं। इसके बाद भजनलाल सरकार को सर्कस एवं यू टर्न सरकार भी कहा गया लेकिन जब उपचुनाव के परिणाम लोगों के सामने आए और भाजपा को सात में से पाचं सीटे मिली और वह भी दिग्गज नेताओं के गढ़ में तो इन बातों की हवा निकल गई। क्योंकि इन बातों का जनता पर कोई असर नहीं पड़ा।

नागौर जिले में प्रसिद्ध मिर्धा परिवार को पछाड़कर खींवसर विधानसभा क्षेत्र में वर्ष 2008 से अपना राजनीतिक दबदबा बनाए रखने वाले सांसद हनुमान बेनीवाल का परिवार इस बार उपचुनाव में हार गया। वर्ष 2008 से पहले खींवसर की जगह मूंडवा विधानसभा क्षेत्र था जहां भी हनुमान बेनीवाल के पिता दो बार विधायक रहे थे। ऐसे में बेनीवाल परिवार को शिकस्त देना काफी कठिन लग रहा था लेकिन भजनलाल की कुशल राजनीति के चलते यह संभव हो पाया और दिग्गज सियासी गढ को ढहा दिया गया।

झुंझुनूं में आजादी के बाद से सर्वाधिक बार जीतने वाली कांग्रेस के शीशराम ओला एवं उसके परिवार का सात बार इस सीट पर कब्जा रहा लेकिन इस बार यह सियासी गढ़ भी ढह गया। इसी तरह रामगढ़ में भी पूर्व विधायक जुबैर खान के परिवार का राजनीतिक वर्चस्व भी इस उपचुनाव में समाप्त हो गया और जनता ने परिवारवाद को नकार दिया। देवली-उनियारा में भाजपा के जीतने पर कांग्रेस का वर्चस्व खत्म हो गया।

हालांकि सलूंबर में पूर्व विधायक अमृतलाल मीणा का परिवार अपना राजनीतिक वर्चस्व बचाने में कामयाब रहा। जहां उनकी पत्नी एवं भाजपा प्रत्याशी शांता मीणा चुनाव जीत गई। लेकिन भाजपा दौसा में अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा कामय नहीं कर पाई। उपचुनाव में कृषि मंत्री डा किरोड़ी लाल मीणा ने अपने भाई एवं पार्टी प्रत्याशी जगमोहन को जिताने में जीन जान लगा दी लेकिन वह भी उन्हें चुनाव नहीं जीता पाये और दौसा की जनता ने यहां भी परिवारवाद को नकार दिया।

वैसे तो राजस्थान की राजनीति में नये मोड़ की शुरुआत गत विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद पार्टी में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, राजेन्द्र सिंह राठौड़, डा सतीश पूनियां जैसे कई वरिष्ठ नेताओं के होने के बावजूद पहली बार के विधायक भजनलाल शर्मा को नया मुख्यमंत्री चुने जाने के साथ ही हो गई थी। तब सबकी नजर उन पर पड़ी। इसके बाद शर्मा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और भर्ती परीक्षाओं में धांधली के मामले में कड़ा कदम उठाने सहित ईआरसीपी एवं यमुना जल समझौता और राइजिंग राजस्थान जैसे कई कदम उठाए गए।

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