संविधान के मूल में निहित सनातन भाव पर करे चर्चा : वासुदेव देवनानी

जयपुर। राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने भारतीय संविधान को सभ्यता, संस्कृति एवं सनातन जीवन मूल्यों का पवित्र ग्रंथ बताते हुए कहा है कि इसके मूल में निहित सनातन भावों पर चर्चा कर युवा पीढी को इनके बारे में बताया जाना चाहिए।

देवनानी बुधवार को यहां एसएसजी पारीक कॉलेज के सभागार में अधिवक्ता परिषद राजस्थान, जयपुर प्रान्त द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह और संवैधानिक कर्तव्यों की प्रासंगिकता विषय पर आयोजित संगोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि दुनिया की कोई ताकत भारत के संविधान को समाप्त नहीं कर सकती है। संविधान के साथ खिलवाड़ करने वालों को लोग नकार देते हैं, यह भारत के लोकतंत्र की खासियत है।

उन्होंने अधिवक्ताओं का आह्वान किया कि वे लोगों को सस्ता और सुलभ न्याय दिलाने के लिए अपनी जिम्मेदारी को समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश के भविष्य को आकार देने के लिए बनाया गया संविधान लगभग 400 लोगों का लगातार दो वर्ष तक किया गया गहन विचार मंथन का परिणाम है। देवनानी ने कहा कि हमारे राष्ट्र का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है यह एक पुस्तक ही नहीं बल्कि भारत की आत्मा है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्र के संविधान ने भारत के नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है, इसीलिए भारत के लोग न केवल देश में बल्कि देश के बाहर विदेशों में भी जाकर अपनी बात कह रहे हैं। देवनानी ने कहा कि संविधान के बाईस भागों में रेखांकित चित्रों में सभ्यता, संस्कृति एवं जीवन मूल्यों का उल्लेख है।

देवनानी ने अधिवक्ताओं को संकल्प दिलाया कि वे संविधान के मूल भाव को समझेंगे और अधिक से अधिक लोगों को समझाएंगे। कार्यक्रम में अतिरिक्त महाधिवक्ता बसंत सिंह छाबा ने कहा कि संविधान के बिना किसी विधि का निर्माण नहीं हो सकता।