अजमेर। सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय में बुधवार को महिला प्रकोष्ठ के तत्वावधान में भारतीय ज्ञान परम्परा जैविक खेती एवं कृषि विषय की महत्ता पर रसायन शास्त्र की जैविक खेती विशेषज्ञ रसायन शास्त्र की प्रोफेसर रश्मि शर्मा द्वारा व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस व्याख्यान में महिला प्रकोष्ठ की संयोजक प्रोफेसर निधि यादव सहित संकाय सदस्यों तथा लगभग 85 छात्राओं ने भाग लिया।
प्रो. रश्मि शर्मा ने छात्राओं को बताया कि हमारे देश की परम्परागत कृषि फसले और आहार परम्परा हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। हमारे कैर, सांगरी, पंचकुटा, गन्ना, तिल, मूंगफली, सरसो, आंवला, गोंदा, हल्दी, जीरा, दाना मेथी आदि फसले अत्याधिक पोषक स्वास्थ्यवर्धक हैं। हम इन्हें बचाए और इनमे खतरनाक रसायनों के बजाय गाय कागोबर, गोमूत्र, बकरी की मीगडियां आदि प्राकृतिक खाद का प्रयोग कर इनके पोषक तत्वों कोबचाए रखे।
भारतीय आहार परम्परा सर्वाधिक प्राचीन एवं समृद्ध परम्परा है।पश्चिम दृष्टिकोण, मीडिया के विज्ञापन, बड़ी-बड़ी कम्पनियां द्वारा मुनाफे के कारण हमे भ्रमित किया जा रहा है, जिससे सावधान रहे। रसायनिक खादों के अत्याधिक प्रयोग से हमारा पंरम्परी बर्बाद हो गई है।
हमें अपनी जमीन, वृक्षों, फसलों, आहार को रसायनिक जहर से बचाकर अपने स्वास्थ्य की रक्षा करनी है। महाराष्ट्र के सुभाष पालेकर ने जैविक खेती के माध्यम से इस क्षेत्र में सराहनीय कार्य किया है।
अन्तर्राष्ट्रीय जैविक खेती विषेषज्ञ प्रोफेसर रश्मि शर्मा जैविक खेती पर 1998 से शोध एवं प्रचार-प्रसार करने के साथ विश्व विख्यात पर्यावरणविद्ध वदंनाशिवा के साथ पिछले 24 वर्षों से इस विषय पर काम कर रही है। इन्होंने भारत की परम्परागत कृषि, आहार परम्परा को समझते हुए विशेषतौर पर तेलों पर शोध किया तथा नव्य धान्य प्रकाशन द्वारा ‘खाद्य तेलों की असलियत‘ पर पुस्तक प्रकाशित हुई। राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों, विश्वविद्यालयों एवं स्वास्थ्य संस्थानों में तिलहनों व कृषि उत्पादों पर अनेक व्याख्यान दिए तथा शोध पत्रों के माध्यम से इस विषय पर जागरूकता फैलाने का कार्य अनवरत जारी है। विगत 7 वर्षों से अजमेर शहर में प्रत्येक रविवार जैविक आहार का समन्वयन कर रही है, जिसमें आस-पास के गांवों के जैविक खेती करने वाले किसान अपना उत्पाद बेचते हैं।