मातृभाषा में शिक्षा की महत्ता पर विद्या भारती कर रही जनजागरण

मातृभाषा में शिक्षा से ही संभव है शिशु का समग्र विकास : शिवप्रसाद

अजमेर। किसी भी राष्ट्र की प्रगति और उत्थान में मातृभाषा का अहम स्थान होता है। मातृ यानी स्व का बोध जागृत होते ही हम उन्नति करते हैं। अंग्रेजों ने हमारे स्व को मिटाने का प्रयास किया। परिणाम यह हुआ कि हमारी 4 से 5 पीढियां ऐसी खडी हो गईं जिसमें स्व का अभाव रहा। शिक्षा केवल पेट भरने का जुगाड़ मात्र नहीं वरन् समाज में एक अच्छा नागरिक निर्माण करने की सतत प्रक्रिया है। शिशु के सर्वांगीण विकास के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि उसकी शिक्षा उसकी अपनी मातृभाषा में ही हो, यह विचार विद्या भारती के संगठन मंत्री एवं मुख्य वक्ता शिवप्रसाद ने आदर्श विद्या निकेतन विद्यालय में शनिवार को आयोजित मातृभाषा में शिक्षा विषयक गोष्ठी में व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि मातृभाषा सिर्फ संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह हमारी सोच, संस्कृति और चेतना का मूल आधार है। बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए, क्योंकि मातृभाषा में शिक्षा वैज्ञानिक और शास्त्र-सम्मत होती है, यह बच्चों के समग्र विकास के लिए सबसे उपयुक्त है। इसके बावजूद, आज समाज में मातृभाषा के बजाय विदेशी भाषाओं खासकर अंग्रेजी में संवाद करना विद्वता का प्रतीक समझा जाने लगा है, जो एक भ्रम और मानसिक पराधीनता को बढ़ावा देता है।


गर्भावस्था में बच्चा मां की भाषा समझने लगता है। जन्म के बाद 4-5 साल बाद जब तक स्कूल जाना ना शुरू कर दे, वह उसी परिवेश में रहता है। स्कूल में प्रवेश करते ही उसकी भाषा बदल जाती है। दशकों से ऐसा नरेटिव गढा गया कि अंग्रेजी बिना प्रगति नहीं है। बच्चों पर अंग्रेजी सीखने का दबाव डाला जाता है, नहीं सीखने पर दंड भी दिया जाता है। ऐसे हालात में बच्चे की सोचने की क्षमता प्रभावित होती है। सच यह है कि मातृभाषा में सीखने की गति कई गुना अधिक होती है। अन्य भाषा में शिक्षा देना अपनी संस्कृति को संकट में डालने के समान है।

उन्होंने कहा कि मनोवैज्ञानिक, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक सामाजिक, शारीरिक, बौद्धिक सभी दृष्टि से अपनी भाषा में सीखने पर बच्चा अधिक सीखता है। यह सर्वविदित होते हुए भी एक दूसरे से दिखावे की होड़ में भारतीय समाज सत्य की अनदेखी कर रहा है। यह इस राष्ट्र के भविष्य के लिए खतरनाक है।

नई शिक्षा नीति में स्पष्ट कहा गया है कि ना केवल 8वीं तक बल्कि उससे आगे की शिक्षा भी मातृभाषा में हो तो सर्वश्रेष्ठ है। इसके उलट वर्तमान में बच्चे के विकसित होता नहीं ओर उस पर होमवर्क का बोझ डाल दिया जाता है। अन्याय सहन करता हुआ बच्चा आगे बढता है। बच्चे रट्टू तोता बन रहे हैं। समाज भ्रमजाल में फंस रहा है। इस बात को अभिभावक समझने को तैयार नहीं हैं। सरकार देश में भाषा का गौरव प्रतिष्ठापित करने का प्रयास कर रही है, एनसीआरटी की पुस्तकों का 22 भाषाओं में अनुवाद हो रहा है। ऐसे में समाज को भी सरकार का साथ देना होगा अन्यथा मातृभाषा का गौरव स्थापित करने के प्रयास असफल हो जाएंगे।

अध्यक्षीय उदबोधन देते हुए शिक्षाविद् और लेखिका पुष्पा शर्मा ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारत के शैक्षणिक परिदृश्य तथा भविष्य को देखकर तैयार की गई है। मातृभाषा में शिक्षा आवश्यक है। बच्चा मां की भाषा में सीखता है, समाज भी मातृभाषा में बच्चों को सिखाता है। ऐसे में बालपन से ही बच्चे पर अपनी भाषा पर अधिकार हो जाता है। मातृभाषा से ही ज्ञान शक्तियों का विकास होता है।

कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए विद्यालय के प्रधानाचार्य और विद्या भारती संस्थान अजमेर के सह सचिव भूपेन्द्र उबाना ने कहा की यह भारत का दुर्भाग्य ही है स्वराज प्राप्ति के 78 वर्षों के बाद भी मातृभाषा में बच्चों की शिक्षा के विषय में हमे दुनिया के देशों से कोई सबक नहीं लिया। चीन, जर्मनी, जापान जैसे विकसित राष्ट्र अपनी भाषा के प्रति गौरव रखने के कारण ही आज ताकतवर हुए हैं अतः राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के आलोक में मातृभाषा के प्रति गौरव जागरण के लिए संपूर्ण राजस्थान में ऐसी गोष्ठियां आयोजित की जा रही हैं।

इस अवसर पर गोष्ठी में मातृभाषा गौरव पुस्तिका का भी अतिथियों ने विमोचन किया गया। विशेष मातृभाषा गौरव सप्ताह अंतर्गत आचार्यों की आशुभाषण प्रतियोगिता में प्रमिला खत्री और छाया जाटव को संयुक्त रूप से प्रथम स्थान प्राप्त करने के लिए स्मृति चिन्ह और प्रमाण पत्र देकर अभिनंदन किया गया। विद्यालय प्रबंध समिति के अध्यक्ष प्रह्लाद पारीक ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में जिला सचिव संजय शर्मा, उपाध्यक्ष शंभूसिंह लाम्बा सहित शहर के 300 से अधिक प्रबुद्धजनों ने सहभाग लिया।