मथुरा। खराब फार्म से जूझ रहे क्रिकेट स्टार विराट कोहली शुक्रवार को पत्नी अनुष्का शर्मा और दो बच्चों के साथ वृन्दावन पहुंचे और संत प्रेमानन्द महराज से मिल कर परिवार की समृद्धि और करियर में सफलता का आशीर्वाद मांगा।
इस अवसर संत प्रेमानन्द महाराज ने कहा कि हम साधना करके लोगों को प्रसन्नता दे रहे हैं और ये खेल के जरिये देश में उत्साह की लहर पैदा करते हैं। जब ये रन बनाते है और टीम जीतती है तो देश भर में पटाखे छुड़ाए जाते हैं। यह भी एक प्रकार की साधना है।
इन्हें अपने अभ्यास को और पुष्ट करना चाहिए क्योंकि इससे पूरे भारत को आनन्द मिलता है। अभ्यास में कमी नही होनी चाहिए। अभ्यास की पुष्टिता पर ध्यान देना चाहिए और बीच बीच में प्रभु का नाम स्मरण कर लेना चाहिए। इनके लिए यही साधना है। अपने अपने लक्ष्य को यदि हम दृढ़ता से निभाएं तो हम अपने अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे।
अपना प्रवचन जारी रखते हुए उन्होंने कहा कि परमात्मा को केवल चंवर डुलाना ही सेवा नहीं है। इनको भगवान ने खेल सेवा दी है यदि ये इस सेवा में प्रवीणतापूर्वक संसार को सुख पहुंचा रहे हैं और भगवान के नाम का जप कर रहे हैं तो वास्तव में यह एक प्रकार की सेवा ही है।
उन्होंने कहा कि प्रारब्ध और अभ्यास मिलकर सफलता का मार्ग प्रशस्त करते हैं यदि इनमें से एक भी कम हो गया तो सफलता उस प्रकार से नहीं मिल पाती। अभ्यास की कमी न होने पर भी प्रारब्ध फेल कर देता है। अभ्यास के साथ प्रारब्ध अति आवश्यक है। प्रारब्ध में सबके प्रारब्ध का असर पड़ता है क्योंकि क्रिकेट अकेले तो खेला नहीं जाता है इसलिए अन्य खिलाड़ियों के प्रारब्ध का भी परिणाम पर असर पड़ता है।
विराट कोहली के इस सवाल पर कि असफलता के समय व्यक्ति को क्या करना होता है, संत ने कहा कि उस समय हमें धैर्य रखना होगा यद्यपि यह कठिन है क्योंकि असफलता में कोई मुस्कराकर धैर्य के साथ निकल जाए यह बड़ा मुश्किल है। असफलता ही हर समय नहीं रहेगी, हमें धैर्य रखते हुए भगवान का स्मरण करना है तो फिर सफलता तो मिलनी ही है। यद्यपि यह बहुत कठिन है क्योंकि सफलता में जो सम्मान मिलता है वह असफलता में नहीं मिलता है।
अनुष्का ने संत से कहा कि उन्हें प्रेमभक्ति का आशीर्वाद दें तो उन्होंने कहा कि ये दोनों बहुत बहादुर हैं क्योंकि सांसारिक यश प्राप्त करने के बाद भक्ति की ओर मुड़ना प्रभु के आशीर्वाद से ही संभव है। यदि हम इस ओर मुड़ गए तो सदा सदा के लिए विजयी होंगे। इसमें प्रधान नाम जप है तथा इसमें जितना आगे बढ़ जाएंगे उतना ही हमारी लौकिक और पारलौकिक उन्नति होगी। कलियुग केवल नाम अधारा। सुमिरि सुमिर नर उतरहिं पारा। भगवान के आश्रित रहे और नाम जप करें सफलता का यही मूल मंत्र है।