नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ बर्बर दुष्कर्म और उसकी हत्या से संबंधित मामले की स्वत: संज्ञान सुनवाई 29 जनवरी को करेगी।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ समय कम होने का हवाला देते हुए बुधवार को सुनवाई 29 जनवरी के लिए टाल दी। पीड़िता स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर का शव नौ अगस्त 2024 को अस्पताल के सेमिनार कक्ष में मिला था।
न्यायमूर्ति खन्ना ने कार्यवाही के दौरान उपलब्ध सीमित समय का हवाला दिया और कहा कि मुझे सुबह सूची मिली। मुझे लगता है कि आपने तीन आवेदन (वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी को) दायर किए हैं – एक अतिरिक्त दस्तावेजों के लिए, एक निर्देशों के लिए और अन्य चीजों के लिए। एक प्रति दूसरे पक्ष को दें। हम अगले बुधवार को अपराह्न दो बजे इस पर विचार करेंगे।
मुख्य न्यायाधीश ने मामलों की प्राथमिकता के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि हम आम तौर पर 20 (मामलों) की सुनवाई नहीं करते हैं। हम पहले 20 और नए सूचीबद्ध मामलों को पढ़ते हैं। इस मामले को पूरक सूची में मामला संख्या 42 के रूप में सूचीबद्ध किया गया था।
कोलकाता के सत्र न्यायालय ने 20 जनवरी को इस मामले के मुख्य आरोपी संजय रॉय को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 64 (दुष्कर्म), 66 (मृत्यु के लिए चोट पहुंचाना) और 103 (1) (हत्या) के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई। उसे 18 जनवरी को दोषी ठहराया गया था।
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पहले 13 अगस्त को कोलकाता पुलिस की जांच से असंतुष्ट होने का हवाला देते हुए जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी थी। शीर्ष अदालत ने 19 अगस्त को मामले का स्वत: संज्ञान लिया। अक्टूबर तक सीबीआई ने रॉय के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया, जिन्हें कोलकाता पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।
शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि स्वास्थ्य पेशेवरों की सुरक्षा बढ़ाने के उपायों की सिफारिश करने के लिए गठित राष्ट्रीय कार्य बल (एनटीएफ) ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से इन सिफारिशों पर प्रतिक्रिया देने को कहा गया है।
एनटीएफ को अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए 12 सप्ताह का समय दिया गया है। एम्स को कुछ डॉक्टरों की याचिका पर विचार करने का निर्देश दिया गया है, जिसमें अनुरोध किया गया है कि उनके विरोध की अवधि को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई पूर्व राहत के अनुरूप ड्यूटी से अलग रहने के रूप में नहीं माना जाए। जूनियर और सीनियर डॉक्टरों के संघ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी ने मामले का उल्लेख किया और इसकी तात्कालिकता पर जोर दिया।
गौरतलब है कि आरजी कर बलात्कार-हत्या मामले को शीर्ष न्यायालय ने स्वास्थ्य पेशेवरों की सुरक्षा और संस्थागत सुरक्षा में जवाबदेही से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों के कारण इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया था।