सिरोही में एक हस्ताक्षर बना गरीबों के निवाले का रोड़ा!

अन्नपूर्णा रसोई।

सबगुरु न्यूज-सिरोही। भजनलाल सरकार आने के बाद राजनीतिक विद्वेष के कारण जिस योजना को सबसे ज्यादा प्रभावित होना पडा है वो है अन्नपूर्णा योजना। वसुंधरा राजे सरकार ने इसे शुरू किया था। इसका पैटर्न और नाम अशोक गहलोत ने बदला था।

सरकार  बदली तो भजनलाल सरकार में इसकी बदहाली हुई। सिरोही में इस योजना पर पहले सिरोही नगर परिषद के पूर्व के आयुक्त ग्रहण बने हुए थे। वो बिल बनाकर नहीं भेजते थे। तो अब सिरोही नगर परिषद के प्रशासक की वजह से गरीबों के दो टाइम का सस्ता भोजन मुहैया करवाने वाली ये योजना प्रभावित होने लगी थी। यूं सबगुरु न्यूज के द्वारा प्रशासक ने नगर परिषद के कामों में रुचि नहीं लेने के समाचार के बाद मंगलवार को प्रशासक अतिरिक्त जिला कलेक्टर ने नगर परिषद जाकर बैठक आदि तो की है। लेकिन, अब तक अन्नपूर्णा रसोई के पैसे जारी किए जाने की प्रक्रिया शुरू होने की जानकारी सामने नहीं आई है।

-पैसा आया पर मिला नहीं!
सिरोही जिले की अन्नपूर्णा योजना के पैसे रह रह कर अटक जाने के कारण वेंडर्स पिछले एक सालों से जबरदस्त परेशान रहे हैं। ये पैसे राज्य सरकार के द्वारा नहीं अटक रहे हैं। ये अटक रहे हैं सिरोही जिले में इसके लिए तैनात नोडल एजेंसी के अधिकारियों द्वारा। जिले भर में अन्नपूर्णा रसोई की नोडल एजेंसी सिरोही नगर पारिषद है। यहीं के अधिकारी बिलों का वेरिफिकेशन के बाद उसे पास करते हैं। बिल के चेकों पर आयुक्त के साथ सभापति की जगह प्रशासक के हस्ताक्षर होने हैं। प्रशासक अतिरिक्त जिला कलेक्टर को बनाया हुआ है। सूत्रों की मानें तो गणतंत्र दिवस पर ध्वजारोहण के बाद वो यहां नहीं आए थे, लेकिन सबगुरु न्यूज के समाचार प्रकाशन के बाद मंगलवार को उन्होंने नगर परिषद पहुंचकर बैठक आदि ली थी। उनके कार्यालयों पर गई पत्रावलियों की पेंडेंसी भी अटकी थी। सूत्रों की मानें तो अन्नपूर्णा रसोई के पैसे तो आए हुए हैं लेकिन, प्रशासक के हस्ताक्षर के बिना इसके चेक जारी नहीं हो सके हैं। पांच महीने से इसके भी पैसे नहीं मिले हैं।
-पहले भी ऐसे ही अटके थे पैसे
विधानसभा चुनावों से पहले इसका नाम था इंदिरा रसोई। विधानसभा चुनावों से पहले सिरोही नगर परिषद द्वारा राजनीतिक हित साधने के लिए इंदिरा रसोई के लिए आए पैसे को डायवर्ट करने का आरोप लगा था। उस समय ये दावा किया गया कि इस पैसे को बावडी के सौंदर्यीकरण के काम में लगा दिया गया। चुनाव होने के बाद इसके नाम और रूपरेखा को लेकर इसे अटकाए रखा। करीब पांच छह महीने बाद इसके पैसे जारी किए गए।
बैंक हस्ताक्षर के लिए अटके काम
बोर्ड बदलने के बाद लम्बे समय तक तो यहां पर आयुक्त को लेकर काम अटका रहा। किश्तों में यहां पर आयुक्त का कार्यभार दिया जाता रहा। जब आयुक्त की पोस्टिंग की तो प्रशासक लग गए। प्रशासक के अपने स्थानांतरण के इंतजार में सक्रियता नहीं दिखाने के कारण कई काम अटक गए थे। बैंक अकाउंट में पद नाम बदलने, हस्ताक्षर देने, डिजिटल हस्ताक्षर जारी करने जैसे कई काम अटके रहे। इससे जनहित और  विकास के कई कामों पर ब्रेक सा लग गया था।