एबीवीपी ने केंद्रीय विश्वविद्यालय राजस्थान के कुलपति का पुतला फूंका

केन्द्रीय शिक्षा मंत्री के नाम कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन
अजमेर। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद अजमेर महानगर इकाई ने केंद्रीय विश्वविद्यालय राजस्थान (CURAJ) में व्याप्त विभिन्न समस्याओं व छात्रों के निलंबन के विरोध में कुलपति का पुतला दहन कर अभाविप के प्रदेश मंत्री जितेंद्र लोधा के नेतृत्व में प्रदर्शन कर केन्द्रीय शिक्षा मंत्री के नाम कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा।

अजमेर महानगर मंन्त्री राजेन्द्र कालस ने ज्ञापन के माध्यम से बताया कि केंद्रीय विश्वविद्यालय राजस्थान प्रशासन की ओर से जारी 300 मीटर विरोध-प्रतिबंध आदेश तथा छात्र कार्यकर्ताओं के निलंबन संबंधी ऑफिस आदेश पर परिषद तीव्र रोष व्यक्त करती हैं। यह प्रतिबंधित क्षेत्र आदेश न सिर्फ छात्र समुदाय की आवाज़ दबाने का प्रयास है बल्कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(क) और 19(1)(ख) द्वारा प्रदत्त मूलभूत अधिकारों (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं शांतिपूर्वक एकत्र होने का अधिकार) का भी खुलेआम उल्लंघन है।

ज्ञापन में बताया कि विश्वविद्यालय प्रशासन की कार्रवाई स्पष्ट तौर पर पक्षपातपूर्ण है। एक ओर राष्ट्रवादी चिंतन से जुड़े छात्र को कठोर दंड देकर पूरे अध्ययनकाल के लिए छात्रावास से निष्कासित किया गया है, वहीं दूसरी ओर ऐसे कई तत्व जो परिसर में भ्रष्टाचार या राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं, उनपर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही। यह दोहरा मापदंड विश्वविद्यालय के अनुशासनात्मक ढांचे को कलंकित करता है।

प्रशासन जिन छात्रों को दोषी ठहराकर दंडित कर रहा है, उनके विरुद्ध निर्णय लेने वाली समितियों में भी निष्पक्षता का अभाव नज़र आता है। जब सुन्नी स्टूडेंट फेडरेशन के छात्र भारत सरकार विरोधी प्रतिबंधित BBC डॉक्युमेंट्री दिखाते हैं, तो उन्हें केवल 14 दिन का निलंबन मिलता है, जबकि राष्ट्रवादी ABVP कार्यकर्ताओं को आजीवन छात्रावास निष्कासन और 30 दिन का कैंपस प्रतिबंध दिया जाता है।

CURAJ परिसर में मौजूदा प्रशासन छात्र हितों की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति कराने में विफल रहा है। छात्र वर्षों से कई समस्याओं की शिकायत करते आ रहे हैं, परंतु प्रशासन उन्हें अनसुना कर अपने निकम्मेपन को छुपाने के लिए विरोध करने वालों को ही दंडित करने में लगा है।

कैंपस में मैस, सफाई, और अन्य टेंडर पूर्व निर्धारित और भ्रष्ट तरीकों से दिए जाते हैं। ठेकों के आवंटन में व्यापक भ्रष्टाचार और अनियमितताएं देखने को मिली हैं। जिसके चलते सेवाओं की गुणवत्ता गिर गई है और विश्वविद्यालय के संसाधनों का दुरुपयोग हो रहा है। आत्महत्या की घटनाओं पर पर्दा एवं लोकपाल रिपोर्ट की अनदेखी यह अत्यंत दुखद है कि विगत कुछ समय में विश्वविद्यालय परिसर में कुछ विद्यार्थियों द्वारा आत्महत्या जैसी त्रासद घटनाएं घटी हैं। इन घटनाओं के पश्चात छात्रों ने मानसिक स्वास्थ्य, परामर्श सुविधाओं एवं प्रशासन के रवैये पर सवाल उठाए थे। परंतु प्रशासन ने हर बार इन मामलों को दबाने या लीपापोती करने का प्रयास किया।

विश्वविद्यालय में नियुक्त छात्र लोकपाल (Ombudsman) द्वारा भी छात्रों की शिकायतों और समस्याओं पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी, जिसमें प्रशासन हेतु सुधार के स्पष्ट निर्देश थे। किंतु आज तक उस रिपोर्ट पर कोई वास्तविक कार्रवाई नहीं की गई। इस प्रकार का गैर-जिम्मेदाराना रवैया प्रशासन की छात्र-विरोधी मानसिकता को दर्शाता है।

अभाविप के प्रदेश मंन्त्री जितेंद्र लोधा ने कहा कि आभाविप लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता एवं निष्पक्ष न्याय की मांग करती है। केंद्रीय विश्वविद्यालय राजस्थान का प्रशासन छात्र विरोधी, भ्रष्ट, तानाशाही प्रवृत्ति और राष्ट्रवाद विरोधी मानसिकता से ग्रसित हो चुका है। यहां की नीतियां शिक्षा, शोध और बौद्धिक विमर्श की जगह दमन, भय और भेदभाव से भरी हुई हैं। यदि छात्र ही अपने अधिकारों व आवश्यकताओं को नहीं उठा सकते तो विश्वविद्यालय का अस्तित्व ही व्यर्थ हो जाता है।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एक ऐसा छात्र संगठन है जो सदा से लोकतांत्रिक मूल्यों एवं राष्ट्रीय हितों के प्रति समर्पित रहा है। हमारा आंदोलन सिर्फ अपने संगठन के निलंबित साथियों के लिए नहीं, बल्कि परिसर के हर विद्यार्थी के न्याय और अधिकारों के लिए है। ABVP यह स्पष्ट करना चाहती है कि वह परिसर में अनुशासन का सम्मान करती है, परंतु अलोकतांत्रिक कानूनों एवं मनमाने दमन का कड़ा विरोध करती रही है और करती रहेगी। हम किसी भी प्रकार की अराजकता के पक्षधर नहीं, किंतु जब प्रशासन ही अन्याय और तानाशाही पर उतर आए तो उसके विरुद्ध लोकतांत्रिक तरीके से आवाज़ उठाना हमारा कर्तव्य बन जाता है।

आपसे अनुरोध है कि ऐसे तुगलकी फरमान को वापस लिया जाये तथा छात्र कार्यकर्ताओं पर की गयी कार्यवाही को तुंरत प्रभाव से निरस्त करके निलंबन के आदेश को वापस लिया जाए एवं उपरोक्त परिस्थितियों को देखते हुए विश्वविद्यालय में तुरंत एक निष्पक्ष तथ्य-जांच समिति भेजी जाए। यह समिति बाहरी एवं स्वतन्त्र सदस्यों वाली हो जो किसी भी दबाव से मुक्त रहकर मामले की जांच करे।