नई दिल्ली। भारत स्थित अफगानिस्तान के दूतावास में एक के सिवाय सभी राजनयिकों के छोड़ कर अन्यत्र जाने के बाद उत्पन्न अभूतपूर्व स्थिति में भारत में अध्ययनरत एक अफगान छात्र को दूतावास के कर्मचारी के रूप में अनुमति दे दी है। हालांकि उसे राजनयिक के रूप मे मान्यता देने में असमर्थता जताई है।
सूत्रों ने इस बारे में पूछे जाने पर कहा कि अफगानिस्तान में तालिबान शासन के आने के बाद पिछले तीन वर्षों में, भारत में अफगान दूतावास और वाणिज्य दूतावासों में कार्यरत अफगान राजनयिकों ने विभिन्न पश्चिमी देशों में शरण मांगी है और भारत छोड़ दिया है। एक अकेले पूर्व राजनयिक, जिन्होंने भारत में रहना जारी रखा है, ने किसी तरह अफगान मिशन/वाणिज्य दूतावास को चालू रखा है।
सूत्रों ने कहा कि हालांकि तथ्य यह है कि भारत में एक बड़ा अफगान समुदाय स्थित है, जिसे कांसुलर सेवाओं की आवश्यकता है। इसलिए वर्तमान में भारत में रहने वाले अफगान नागरिकों को प्रभावी ढंग से सेवा देने के लिए अधिक कर्मचारियों की आवश्यकता है।
सूत्रों ने बताया कि एक युवा अफगान छात्र, जिससे विदेश मंत्रालय परिचित है, और जिसने विदेश मंत्रालय की छात्रवृत्ति पर दक्षिण एशिया विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी करते हुए सात वर्षों तक भारत में अध्ययन किया है, वह अफगान वाणिज्य दूतावास में एक राजनयिक के रूप में कार्य करने के लिए सहमत हो गया है।
सूत्रों के अनुसार जहां तक उसकी संबद्धता या स्थिति का सवाल है, हमारे लिए, वह भारत में अफगानों के लिए काम करने वाला एक अफगान नागरिक है। जहां तक मान्यता के मुद्दे का सवाल है तो किसी भी सरकार के लिए किसी राजनयिक को मान्यता देने की एक तय प्रक्रिया होती है और भारत इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ काम करना जारी रखेगा।