पहला सवाल : देशल दान किसकी सिफारिश पर अजमेर में पोस्टेड हुए?
दूसरा सवाल : किसके इशारे पर एनजीटी में दायर हलफनामे में अजमेर शहर के पूर्व प्रथम नागरिक पर भर-भरकर नाले का कीचड़ उछाला?
तीसरा सवाल : मीडियाकर्मियों और ब्लॉगर्स को बिकाऊ का तमगा देने वाले देशल दान क्या खुद मीडिया को यूज नहीं करते?
चौथा सवाल : अजमेर के चरागाह में कौन-कौन अफसर कब-कब से चर रहा है, यह मीडिया को अब तक दिखाई क्यों नहीं दे रहा?
अजमेर। ऐतिहासिक आनासागर झील बरसों से कई भुखमरों की भूख मिटाती आ रही है। इसकी आड़ में अब तक अरबों रुपए हजम हो चुके हैं। झील की जमीन पर गिद्दों की बस्तियां बस चुकी है। केंद्र सरकार से मिले करोड़ों रुपए इसी झील में डुबो-डुबोकर खर्च कर दिए गए। किनारे पर कभी लोहे की जालियां लगाई तो कभी हटाकर बेच डालीं। कभी सुरक्षा दीवार बनाई तो कभी ढहाई। कभी घाट बनाए तो कभी ढहाए। कभी चूना हजम किया तो कभी हवा। न झील का भला हुआ न मछलियों का, अलबत्ता मगरमच्छों की पीढ़ियां तर गईं।
वेटलैंड के छिछले पानी में कई ऐसे कीड़े पैदा हो गए जो वेटलैंड को ही खा गए। अब जब एनजीटी ने वेटलैंड को बचाने के आदेश दिए तो उनकी पालना की बजाय याचिककर्ता को ही कटघरे में खड़ा कर दिया गया। पृथ्वीराज चौहान के इस शहर में फिर शब्दभेदी बाण चल रहे हैं, गौरी खिलखिला रहा है, जलकुम्भी मुस्कुरा रही है। सेवन वंडर्स मुंह चिढ़ा रहे हैं।
पांचवा सवाल : पोस्टिंग बिकती है, कुर्सी बिकती, जमीर बिकता है, दोस्ती बिकती है, निष्ठा बिकती है, लाला बना कैसे इस सिस्टम से लड़ पाएंगे? जवाब लाजवाब होना चाहिए!
सन्तोष खाचरियावास