अजमेर उत्तर विधानसभा चुनाव
अजमेर। राजस्थान विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर में जनता के उम्मीदवार के रूप में खम ठोंक रहे निर्दलीय प्रत्याशी ज्ञानचंद सारस्वत ने चुनावी रण में भाजपा और कांग्रेस के समीकरण गडबडा दिए हैं। स्थिति यह है कि एक तरफ खुद सारस्वत अपनी जीत के दावे कर रहे हैं वहीं राजनीति के जानकारों का कहना है कि भाजपा या कांग्रेस के प्रत्याशी की जीत भी सारस्वत के वोट हासिल करने की कुल संख्या तय करेगी।
भाजपा से बागी होकर विधायक बनने की राह पर चल पडने वाले पार्षद ज्ञान सारस्वत पार्टी के असंतुष्ट वर्ग तथा चुनाव से पहले ही प्रत्याशी परिवर्तन की मांग करने वालों दावेदारों के अगुवा बन गए। देखते ही देखते एक बडा वर्ग तथा सदैव भाजपा को समर्थन देने वाले भी उनके साथ जुटते गए। नामांकन दाखिल करने के दौरान रैली के रूप में सारस्वत ने समर्थकों की भीड जुटाकर अपनी ताकत का प्रकटीकरण कर दिया।
मानमनोव्वल के बावजूद नामांकन वापसी की तारीख निकल जाने तक उनके मैदान में डटे रहने से भाजपा को संभावित खतरे का आभास हो गया था। इसके बाद चुनाव प्रचार अंतिम दौर में सारस्वत के समर्थन में शहर में निकली महारैली ने जिस तरह से 10 किलोमीटर लंबा सफर तय किया उससे तय हो गया कि वे लगातार जीत रही भाजपा की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बन चुके हैं।
भाजपा के रणनीतिकार भी मतदान की तारीख के एक दिन पहले तक ज्ञान सारस्वत का तोड नहीं निकाल सके। ऐसे में अपने किले को ढहने से बचाने के लिए संघ के मार्गदर्शन में अंतिम किलेबंदी की गई। देवनानी ने भी प्रचार के अंतिम दिन महारैली निकाल कर भाजपा की ताकत का अहसास कराने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोडी। अब 25 नवंबर को मतदाता ही तय करेंगे कि पांचवीं बार विधायक बनने का सपना संजोएं वासुदेव देवनानी पर भरोसा कायम है अथवा नहीं।
इस बीच कांग्रेस प्रत्याशी महेन्द्र सिंह रलावता पार्टी का टिकट हासिल करने में सफल भले ही हो गए, लेकिन पार्टी के भीतर गुटबाजी का तोड निकालने की बजाय उन्होंने सीधे मतदाओं पर भरोसा जताया। हालांकि धर्मेन्द्र सिंह राठौड के साथ गलबहियों का वे कितना फायदा उठा पाएंगे यह चुनाव परिणाम के बाद पता चलेगा। उन्हें पार्टी के परंपरागत वोट बैंक पर अधिक भरोसा है साथ ही वे भाजपा के बागी ज्ञान सारस्वत को मिलने वाले वोट को देवनानी से अपनी जीत के अंतर से जोड कर देख रहे हैं।
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