भारत देश की स्वाधीनता को लेकर बाबा साहेब बहुत चिंता करते थे और दुखी भी रहते थे। अपनी इस चिंता और दुःख को वे अपने शब्दों में इस तरह व्यक्त करते हैं कि मुझे अत्यन्त दुःख होता है तो इस बात से कि भारत पर इससे पूर्व अपनी आजादी गंवाने का अवसर कोई एक बार ही आया हो ऐसा नहीं है। मगर वह स्वाधीनता अपनी स्वयं की जनता के ही विश्वासघात और देश द्रोह के कारण ही उसे गंवानी पड़ी है।
मोहम्मद बिन कासिम ने जब सिन्ध पर आक्रमण किया तब राजा दाहिर के सेनापति ने मोहम्मद बिन कासिम से रिश्वत ले कर अपने राजा की ओर से लड़ने से साफ इनकार कर दिया। मोहम्मद गोरी को भारत पर आक्रमण के लिए और पृथ्वीराज के विरुद्ध लड़ने के लिए उसे बुलाने वाला जयचन्द ही था। जयचन्द ने सोलंकी साम्राज्य के साथ मिलकर भारत के साथ गद्दारी करते हुए मोहम्मद गोरी को सहायता देने का वचन दिया। जिस समय शिवाजी महाराज हिन्दुओं की स्वाधीनता के लिए मुगलों से लड़ रहे थे उस समय भारत के अन्य मराठा और राजपूत सरदार मुग़ल बादशाह की ओर से लड़ रहे थे। जब सिख राजाओं के खिलाफ़ अंग्रेज लड़ रहे थे अन्य सब सेनापति हाथ पर हाथ धरे बैठे थे। सिखों की स्वतन्त्रता की रक्षा करने के लिए उन्होंने जरा भी प्रयास नहीं किए। वर्ष 1857 में हिन्दुस्थान के एक बड़े हिस्से ने अंग्रेजों के विरुद्ध जब स्वतन्त्रता का संग्राम शुरू किया था तब सिख लोग शांत बैठ कर मूक दर्शकों की तरह उसे देखते रहे। (रमेश पतंगे – संघर्ष महामानव का–पृष्ठ -142)
बाबा साहेब ने अपनी पुस्तक थाट्स ऑन पाकिस्तान में मुसलमानों के विषय में कहा कि मुसलमान कभी भी भारत भूमि के भक्त नहीं हो सकते। हिन्दुओं से कभी उनके दिल मिल नहीं सकते। देश में रहकर शत्रुता पालते रहने की अपेक्षा उन्हें अलग राष्ट्र दे देना चाहिए। भारतीय मुसलमानों का यह कहना है कि वे पहले मुसलमान हैं फिर भारतीय हैं। उनकी निष्ठाएं देश के बाहर होती हैं। देश के बाहर के मुस्लिम राष्ट्रों की सहायता लेकर भारत में इस्लाम का वर्चस्व स्थापित करने की उनकी तैय्यारी है। जिस देश में मुस्लिम राज्य नहीं हो सकता वहां यदि इस्लामी कानून और उस देश के कानून में टकराव पैदा हुआ तो वे इस्लामी कानून को ही श्रेष्ठ समझते हैं या उनकी एसी ही मान्यता है। देश का कानून झटक कर वे इस्लामी कानून का ही समर्थन करते हैं। (रमेश पतंगे – संघर्ष महामानव का–पृष्ठ -155)
बाबा साहेब के राजनीतिक संघर्ष में कांग्रेस और मुसलमान कभी उनके मित्र और सहयोगी नहीं रहे। बाबा साहेब ने जो उनके मित्र नहीं रहे इस पर 20 मई 1927 को अपने पाक्षिक समाचार पत्र बहिष्कृत भारत में एक लेख लिखा कि यह संघर्ष स्वराज्य प्राप्ति का संघर्ष नहीं है, बल्कि हिन्दुओं और मुसलमानों की संस्कृतियों का संग्राम है। इस देश में हिन्दू और मुसलमान दो समाज नहीं हैं बल्कि दो राष्ट्र हैं। (रमेश पतंगे – संघर्ष महामानव का–पृष्ठ – 154)
बाबा साहेब ने 18 जनवरी 1929 को बहिष्कृत भारत में लेख लिखा कि जो कोई भी एशिया महाद्वीप के नक़्शे की ओर देखेगा उसे पता चल जाएगा कि यह देश किस तरह कैंची में फंस गया है। एक ओर चीन और जापान जैसी दो अलग संस्कृतियों वाले देशों से घिरा हुआ है। दूसरी ओर तुर्की, ईरान और अफगानिस्तान जैसे मुस्लिम राष्ट्रों से घिरा हुआ है। दोनों ओर से विभिन्न संस्कृतियों की मार से घिरे और फंसे ईस देश को बड़ी सतर्कता से रहना चाहिए हमें एसा लगता है। इन हालातों में चीन और जापान दोनों में से किसी भी ओर से हमला हुआ तो भले ही यह नहीं कहा जा सकता हो कि इसमें पराजय किसकी होगी? मगर फिर भी उनके हमलों का हम सब लोग एकजुटता से प्रतिकार करेंगे, यह भरोसा तो कोई भी दे सकता है। मगर आजाद भारत पर यदि तुर्की, ईरान और अफगानिस्तान इन तीनों मुस्लिम राष्ट्रों में से किसी भी एक या सभी ने आक्रमण कर दिया तो उसका सभी लोग एकजुटता से प्रतिकार करेंगे, जबाव देंगे, ऐसा विश्वास नहीं दिला सकते। इस देश में हिन्दू और मुसलमान दो समाज नहीं बल्कि दो राष्ट्र रह रहे हैं। भारतीय मुसलमानों का झुकाव मुस्लिम संस्कृति के राष्ट्रों की ओर होना बिल्कुल स्वाभाविक है। यह झुकाव इतना अधिक ताकतवर हो गया है कि मुस्लिम संस्कृति का प्रचार करके मुस्लिम राष्ट्रों का समूह तैयार करना और जितने हो सकें उतने काफ़िर देशों को उनके नियन्त्रण में लाना ही ध्येय बन गया है।
इन विचारों का भूत सवार होने के कारण उनके पैर भले ही हिन्दुस्तान में हैं तो भी उनकी आंखे तुर्की और अफगानिस्तान की ओर लगी हुई हैं। हिन्दुस्तान अपना देश है, इस बारे में जिन्हें अभिमान नहीं है व इसके निकटवर्ती हिन्दू बन्धुओं के प्रति जिनमें जरा भी आत्मीयता नहीं है, ऐसे मुसलमान लोग मुस्लिम आक्रमणों से भारत की रक्षा करने के लिए तैयार होंगे यह मानकर चलना खतरनाक है एसा हमें लगता है। (रमेश पतंगे – संघर्ष महामानव का–पृष्ठ–155)
मैं इसलिए जाग रहा हूं क्योंकि मेरा समाज सो रहा है
फरवरी में इंग्लैण्ड के मैनचेस्टर के गार्डियन समाचार पत्र के प्रतिनिधि और न्यूयार्क टाइम्स के प्रतिनिधि पत्रकार तीन लोकप्रिय भारतीय नेताओं (गांधी, जिन्ना, अम्बेडकर) से मिलने आए, साक्षात्कार लेने आए। गांधी जी ने 9 बजे का समय दिया। वे सही 9 बजे गांधी जी के घर पर गए तो जवाब मिला कि गांधी सो गए हैं कल दिन में आना।
ठीक इसी तरह 9:30 का समय जिन्ना ने दिया तो वे जिन्ना के घर पर गए। पता चला कि जिन्ना भी सो गए हैं, कल दिन में आना। अब बारी थी महामानव की तो बाबा साहेब ने दोनों पत्रकारों को कहा कि आप कभी भी आ सकते हो। दोनों पत्रकार रात्रि 12 बजे बाबा साहेब के पास पहुंचे तो वे दंग रह गए कि बाबा साहेब अपनी पूरी वेशभूषा में अपने अध्ययन कक्ष में अध्ययन करते हुए समय का सदुपुयोग करते हुए उन दोनों की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उस समय दोनों ही पत्रकारों ने आश्चर्यजनक तरीके से बाबा साहेब को यह बताया कि देश के दो महान नेता (गांधी और जिन्ना) सो रहे हैं और आप अभी तक इस जाग कर हमारी प्रतीक्षा कर रहे, जाग रहे हैं ऐसा क्यों?
बाबा साहेब ने बड़े ही विनम्र और पीड़ा भरे शब्दों में कहा कि गांधी और जिन्ना इस कारण आराम से सोते हैं क्योंकि उनका समाज जागा (जाग्रत) हुआ है। वे सब जागरूक हैं। मैं इस कारण जाग रहा हूं क्योंकि मेरा समाज सोया (अनभिज्ञ) हुआ है। उन दोनों समाज की तरह जागरूक नहीं है।
बाबा साहेब के विचार वर्तमान में भी बहुत ही सारगर्भित हैं। शिक्षा की बात हो या मताधिकार की, व्यक्ति की दैनिक जीवन की आवश्यकता की बात हो या सम्मान की, राजनीति की बात हो या समाज के सामाजिक और आर्थिक सम्मान और सुरक्षा की सभी संधर्भों में बाबा साहेब के विचार प्रासंगिक प्रतीत होते हैं।
समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) और बाबा साहेब
संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित है कि राज्य सम्पूर्ण देश में समान नागरिक संहिता लागू करे। सभी के लिए निजी कानून एक जैसे होंगे। निजी कानूनों से अभिप्राय: उन कानूनों से है जो निजी मामलों में प्रभावी होते हैं। उदाहरण स्वरूप कि विवाह, तलाक और उत्तराधिकार।
पृष्ठभूमि :- बाबा साहेब ने इन सबके कल्याण के बारे में गम्भीर चिन्तन किया और हिन्दू – कोड बिल बनाया और इसके ही तहत इन सभी सामाजिक कुप्रथाओं के घोर विरोध में 1956 में हिन्दू–कोड बिल लागू किया गया। इसाई व पारसी समुदाय में गलत निजी कानूनों में सुधार हुआ परन्तु मुसलमानों में वर्तमान में भी कोई सुधार नहीं हुआ है और जिस प्रकार का हम राजनीतिक और संख्या बल की राजनीति का जो खेल देख रहे हैं, लगता नहीं है कि बहुत जल्दी कोई सुधार होगा। आज भी अनेक समाज और समुदायों में अन्धविश्वास, कुरुतियां, मध्यकालीन रूढ़िवादी परम्पराओं का घोर रूप से प्रचलन है। इन सभी में जो धर्म के ठेकेदार और मध्यकालीन रूढ़िवादी परम्पराओं के धर्म गुरु आग में घी डालने का काम करते हैं। ये लोग इन सभी कुरुतियों को धार्मिक जामा पहनाकर उन्हें निजी कानून मानने के लिए विवश करते हैं।
23 नवम्बर 1948 को संविधान सभा की बहस में बाबा साहेब ने कहा कि हमारे देश के मानवीय सम्बन्धों के प्राय: प्रत्येक पहलु को प्रभावित करने वाले कानूनों की एक समान दण्ड संहिता है जो भारतीय दण्ड संहिता तथा अपराध दण्ड संहिता में निहित है। ऐसे अनेक अधिनियमों का उल्लेख किया जा सकता है, जिनसे यह सिद्ध ही जाएगा कि देश में एक नागरिक संहिता विद्यमान है, जो पूरे देश में व्यवहार में लाई जाती है। जिन–जिन क्षेत्रों में समान नागरिक संहिता अभी भी प्रवेश नहीं कर पाई है वे हें विवाह और उत्तराधिकार। अत: सभी नागरिकों के लिए भले ही वे किसी भी पंथ के हों, समान नागरिक संहिता बनाने के ध्येय से यह समझा गया है कि कुछ हिंदु कानूनों का, इसलिए नहीं कि वे हिन्दू कानून हैं, वरन इसलिए कि उन्हें सबसे अधिक उपयुक्त पाया गया, अनुच्छेद 35 में उल्लिखित नई समान नागरिक संहिता में समाविष्ट किया गया।
आज का भारत समान नागरिकता संहिता के प्रश्न को लेकर पंथीय मतों से ज्यादा दुखी है। लेकिन बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर व्यापक चिन्तन करने वाले और भविष्य दृष्टता थे। जब वे संविधान सभा की प्रारूप समिति का दायित्व निभा रहे थे उस समय उन्होंने अपनी लेखनी से, चिन्तन से और तार्किक वाद–विवादों से समान नागरिक संहिता की स्थापना को लेकर संविधान सभा में प्रभावी भूमिका निभाई। संविधान सभा में बहस के दौरान बाबा साहेब ने कहा कि मैं व्यक्तिगत रूप से यह समझ नहीं पा रहा हूं कि क्यों धर्म को इतना वृहद् क्षेत्राधिकार दिया जा रहा है, ताकि वह हमारे सम्पूर्ण जीवन क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है, और क्यों व्यवस्थापिका को इस क्षेत्र में प्रवेश करने से रोका जा रहा है , आखिर स्वतन्त्रता किसके लिए है? आखिर स्वतन्त्रता का अर्थ यही है कि हम अपनी सामाजिक व्यवस्था को सुधारें जो असमानताओं, भेदभाव से परिपूर्ण है और यह हमारे मौलिक अधिकारों के विपरित है।
बाबा साहेब ने समान नागरिक संहिता को प्रमुख अनिवार्यता माना और इसकी सिफारिश की। कहा कि भारतीय समाज की और पंथ की बिगड़ी हुई दशा का एक उत्तरदायी तत्व है समान नागरिक संहिता का अभाव। अत: समान नागरिक संहिता भारत की सामाजिक और पंथीय सुधार का महत्वपूर्ण तत्व है। बाबा साहेब ने उन मुस्लिम नेताओं का जो कि शरीयत की बढ़–चढ़कर हामी भरते थे उन सभी का घोर विरोध किया। बाबा साहेब ने ऐसे नेताओं का भी विरोध किया जो अपने–अपने पंथ के आधार पर अपने निजी कानूनों को अमर बनाने का छद्म प्रयास कर रहे थे। समान नागरिक संहिता सच्चे अर्थों में विधि की समानता और विधि का शासन के लक्ष्यों की स्थापना करता है। साथ ही साथ समान नागरिक संहिता न्याय की सर्वोच्चता की भी पोषक है।
संविधान सभा में जब कुछ मुस्लिम सदस्यों ने यह आशंका प्रकट की कि समान नागरिक संहिता मुस्लिमों के विरुद्ध है। उस समय बाबा साहेब ने संविधान सभा में मुस्लिमों की आशंका को दूर करते हुए कहा कि मेरा दृढ़ विश्वास है कि किसी मुसलमान को कभी भी यह कहने का अवसर नहीं मिलेगा कि समान नागरिक संहिता के निर्माताओं ने मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को भारी आघात पहुंचाया है। विविधता में एकता का समावेश इस बात का प्रतीक है कि हम विभिन्न धर्म, भाषा, संस्कृति के बावजूद भी एकता के सूत्र में बंधे हैं। संविधान के निर्माताओं ने विभिन्न राष्ट्रों के संविधानों का अध्ययन करने के पश्चात् भारत के श्रेष्ठ संविधान की रचना की है। जो–जो प्रावधान भारत राष्ट्र के लिए अनुकूल लगे, उन्हें संविधान में सम्मिलित किया गया। कुछ प्रावधान संविधान के प्रभावी होते ही चलन में आ गए, राष्ट–हित में उनका प्रयोग होने लग गया। परन्तु कुछ प्रावधान ऐसे हैं जो समय की बड़ी मांग है, लेकिन उनकी स्वीकारोक्ति नहीं है, उनमें से एक कानून है समान नागरिक संहिता। बाबा साहेब ने कहा कि संविधान केवल वकीलों के दस्तावेजों की कोई पोथी नहीं, यह इंसानी जीवन का संवाहक है, और इस की आत्मा हमेशा अपने युग के अनुरूप होती है।
भारतीय वोट बैक की राजनीति और तथाकथित धार्मिक उन्मादियों के कारण अनुच्छेद 44 (समान नागरिक संहिता) अनुच्छेद 47 (नशाबन्दी) और अनुच्छेद 48 (गौ हत्या पर प्रतिबन्ध) को लागू नहीं किया जा सका है। भारतीय संविधान को प्रभावी हुए 73 वर्ष हो गए हैं। अपनी जीवन यात्रा में संविधान ने अपना कार्य बहुत ही दक्षता से किया है। इसी कारण भारतीय संविधान विश्व के अन्य संविधानों में श्रेष्ठ और दर्शन तत्वों से भरपूर माना गया है। भारतीय संविधान के यह शब्द हम भारत के लोग लोकतान्त्रिक भावना, आपसी समानता और सहयोग तथा सामाजिक और परस्पर सामुदायिक कल्याण की भावना से ओतप्रोत विश्व का अकेला संविधान है। भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने तिहरे (तीन तलाक) पर प्रतिबन्ध लगा दिया है और इसके लिए कानून भी बना दिया है। पहले राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी थी लेकिन अब हमारे पास राजनीतिक इच्छा शक्ति भी है और संख्या बल भी।
समान नागरिक संहिता का हम सभी इंतजार कर रहे हैं। जो लोग धार्मिक कट्टरता का भाव रखते हैं और जो लोग धर्मान्धता का जहर देश और समाज में घोलना चाहते हैं उनको ही यह भय है और वे समान नागरिक संहिता हो या नागरिक संशोधन बिल उसका अतार्किक विरोध करते हैं। C A A (नागरिकता संशोधन अधिनियम 10 जनवरी 2020 प्रभावी हो गया, लेकिन शाहीन बाग की घटना हम सभी को याद है। यह उन्हीं लोगों का काम है जो यह नहीं चाहते कि समान नागरिक संहिता लागू हो। भारत में साम्प्रदायिकता का जहर घोलना रक्तबीज की तरह है। यह अपने रक्त से तो नहीं लेकिन दूसरों के रक्त से भी फलता–फूलता है।
सुझाव :- अब समय आ गया है कि हम और हमारी केन्द्रीय सरकार संख्या बल को ज्यादा से ज्यादा प्राप्त करे और समान नागरिक संहिता कानून का निर्माण करे। समान नागरिक संहिता किसी भी पंथ को हानि नहीं पहुंचाती है। यह भारत देश में रहने वाले सभी नागरिकों की समानता और स्वतन्त्रता पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाती है। सामाजिक समानता, सामाजिक स्वतन्त्रता, व्यक्तिगत सम्मान और गौरव और राष्ट्रीयता तथा राष्ट्रीय एकता की भावना को पुष्पित और पल्लवित करने का नाम समान नागरिक संहिता है। साथ ही साथ समान नागरिक संहिता कानूनों की समानता और कानूनों का शासन की भी सुखद अनुभूति है। समान नागरिक संहिता से कुछ तथाकथित लोगों की दोहरी मानसिकता और भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विरोधी और बेलगाम सोच पर आवश्यक रूप से राष्ट्रीय एकता का सूत्रपात होगा। भारत एक पंथनिरपेक्ष राज्य है की आत्मा सही अर्थों में प्रसन्न होगी। समान नागरिक संहिता के प्रभावी होने से भारतीय संविधान और उसकी सर्वोच्चता के सही क्रियान्वन सम्भव है। गणराज्य और संघीय संरचना के लिए और भारतीय आन्तरिक तथा बाह्य सम्पभुता का सही अर्थों में पुष्पन और पल्लवन समान नागरिक संहिता से ही सम्भव है। अत: मेरा सुझाव है कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और राष्टीय एकता तथा संवैधानिक सर्वोच्चता की स्थापना हेतु समान नागरिक संहिता का कानून बनाकर शीघ्र ही प्रभावी किया जाना चाहिए।
जम्मूकश्मीर और धारा 370 को लेकर अनेक विकल्प खोजे जाते हैं। डा बाबा साहेब ने 370 और 35 अ के प्रस्ताव को एक नज़र से देख केर ही ठुकरा दिया था। उन्होंने इसे देश द्रोह माना था और स्वयं को एक जन्मजात देश भक्त और भारत माता के सच्चे सपूत होने का परिचय दिया था। लेकिन नेहरु, शैख़ अब्दुल्ला, पटेल, आयंगर और देश को पंथ के नाम पर तोड़ने वालों की मंशा को बाबा साहेब ने कभी भी सहयोग नहीं किया। बहुत सारी बातों को पड़ कर सुन कर मेरे मन में एक वैकल्पिक विचार आया कि यदि डा बाबा साहेब प्रधानमंत्री होते तो भारत माता की सच्ची सेवा हो रही होती। देश को पंथ के नाम की कट्टरता पर जो कुछ हमने खोया है वह सब कुछ हमारे पास होता। आज तक हमने 370 और 35 अ के नाम पर जितने हमारे कश्मीरी पण्डितों की हत्या, हमारे अनेकों सैनिकों के बलिदान, हमारी बहन–बेटियों का वीभत्स बलात्कार, धर्म के नाम पर आतंक और हिन्दुओं पर जो विस्थापन और अत्याचार का दर्द सहा है वह कभी भी सहन नहीं करना पड़ता। वहां के अनुसूचित–जाति और जनजातियों के लोगों का शोषण और उनको आरक्षण के अधिकारों से वंचित रखना आदि विषयों पर बाबा साहेब को राजनीतिक मान्यता नहीं दी गई। उनके ज्ञान और तर्क को उनकी जाति के कारण दबा दिया गया। उन्हें केवल दलितों का मसीहा कहकर उनकी बुद्धिमता और विवेक को नजरअंदाज किया गया। इतना ही नहीं तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व केवल उनके नाम पर एक वर्ग विशेष का वोट बैंक अपने पक्ष में करने के अतिरिक्त और कोई दूसरी बात सोचता ही नहीं था। तत्कालीन राजनीतिक सत्ता और दलों ने उनकी योग्यता के साथ ही नहीं आने वाली पीड़ियों के साथ धोखा किया है | 370 को लेकर 35 अ को लेकर और पाकिस्तान के निर्माण को लेकर उनके जो विचार थे, जो उनके आदर्श थे वे आज भी हम भारतीय ही नहीं पूरा विश्व भी उनको लेकर बहुत गम्भीर है। सब यही सोचते हैं कि काश वे प्रधानमंत्री होते या उनकी बात मान ली जाती। अत: आज यह तो सभी ठोक बजाकर कह रहे हैं कि बाबा साहेब के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। भारत समेत पूरा विश्व इसका समर्थन करता है।
वर्तमान में हम सभी भारतीय ही नहीं वरन पूरा विश्व बाबा साहेब की 134वीं जन्म जयन्ती मना रहे हैं। वर्तमान में जब हम सभी बाबा साहेब के चिन्तन को व्यापक दृष्टि से देखते हैं तो ज्ञात होता है कि वे एक राष्ट्र ऋषि थे। वे शुद्ध रूप से राष्ट्रवादी थे। वर्तमान मोदी सरकार जो कि 2014 से शासन कर रही है यह निश्चित है कि 2029 तक ही नहीं वरन आगे भी सत्ता में रहेगी। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बाढ़ आ गई है। समान नागरिक संहिता, 370 का उन्मूलन, 35 अ की समाप्ति, नागरिक संशोधन बिल, यथार्थ वादी विदेश नीति और सही अर्थों में पन्थ निरपेक्षता की जीत तथा धर्म निरपेक्षता की करारी हार जब हम देखते हैं तो यह सभी बाबा साहेब के चिन्तन और उनकी लेखनी में स्पष्ट रूप से झलकता है। बाबा साहेब को हम सभी की ओर से नमन और प्रमाण।
प्रो. (डॉ.) मनोज कुमार बहरवाल
प्राचार्य
सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय अजमेर
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