भाजपा और संघ कार्यकताओं की देवेश्वर महादेव से चामुंडा माता तक धोक


सबगुरु न्यूज-सिरोही। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आरएसएस और भाजपा के कार्यकर्ताओं के द्वारा जुटाए गए मतों से मिली सत्ता का मेवा कांग्रेस के भ्रष्ट नेताओं को राज्यसभा, लोकसभा और मंत्रीपद के रूप में बांटने में लगे हैं। तो ऐसे में निचले स्तर पर काम कर रहे आरएसएस और भाजपा के नेताओं को भी अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए सजग होने का नैतिक अधिकार बनता है।

ऐसे में जिले म किशोर न्याय बोर्ड और बाल कल्याण समिति के सदस्यों के रूप में अपने और अपने परिवार के सदस्यों के मनोनयन के लिए आरएसएस और भाजपा दोनों के नेता लग गए हैं। आखिर लगें भी क्यों नहीं?  पांच सदस्यों वाली बाल कल्याण समिति और किशोर न्याय बोर्ड में मनोनयन के बाद प्रतिमाह चालीस हजार रुपये से ज्यादा का मानदेय मिलना शुरू हो जाता है। जो सेकेंड ग्रेड शिक्षक की प्रोबेशन पीरियड के मानदेय से ज्यादा है। इसमें नियुक्ति के लिए भाजपा और भाजपा के लिए ग्राउण्ड लेवल पर काम करने वाले संगठन आरएसएस के कार्यकर्ता सिरोही के देवेश्वर महावेद मंदिर से चामुंडा माता मंदिर तक धोक लगा रहे हैं।
– कुल छह मनोनयन
जिले में बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष और चार सदस्यों तथा किशोर न्याय बोर्ड के एक महिला सदस्य के मनोनयन के लिए 18 जनवरी को विज्ञापन प्रसारित हुआ था। इनमें सबका मानदेय प्रतिमाह 40 हजार रुपये है। इससे पहले इन पदों पर नेता अपने करीबियों को मनोनित करवा लेते थे और कार्यकर्ताओं को पता भी नहीं चलता था। वो मायूस होकर इसे अपनी नियती मान लेते थे।

यदि कोई विरोध भी जताता तो उसे ये कहकर चुप करवा दिया जाता कि आपको जागरूक रहकर हमें पहले बताना चाहिए था। भाजपा नेता संगठन बैठकों में योजनाओं के प्रचार-प्रसार का संदेश देते हैं। संगठन के नेताओं से प्रेरित होकर स्थानीय कार्यकर्ता को टिकिट देने के मुद्दे पर बाहरी प्रत्याशी का विरोध करने पर हेमंत पुरोहित को भाजपा से निष्कासित कर दिया गया। पार्टी के वरिष्ठ नेताओ के निर्देशो कि अनुपालना मे हेमंत पुरोहित

ने आरएसएस और भाजपा के लिए खुदको समर्पित कार्यकर्ताओं तक इस योजना को पहुंचाया। भाजपा और आरएसएस कार्यकर्ताओ तक इसका लाभ पहुचे इस्के लिये इसका सोशल मीडिया पर जमकर प्रचार प्रसार किया। इसका परिणाम ये हुआ कि इसके लिए सबसे ज्यादा आवेदन इस बार आए।
-नेताओं के दावों को परखना शुरू
यूं आरएसएस का दावा यह रहता है कि उसकी कोई राजनीतिक भूमिका नहीं रहती है। लेकिन, इसके कुछ नेता अपने व्यवहार से पूरी तरह से राजनीतिक संलिप्तता दिखाते हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार संगठन का एक और नेता विधानसभा चुनावों के दौरान सिरोही विधानसभा में ये दावा करते हुए कार्यकर्ताओं को ये कहकर प्रोत्साहित करते दिखे कि सरकार आने पर भाजपा से ज्यादा अपनी चलेगी।

अब अपनी चलेगी की ये शेखी बघारने वाले नेता के गले में सबसे पहली हड्डी बाल कल्याण समिति और किशोर न्याय बोर्ड में मनोनयन की फंस गई है।ं संगठन से जुड़े कार्यकर्ता अपने और अपने परिवारजनों के इसमें मनोनयन के लिए उन पर दबाव बनाने लगे हैं।

वहीं यहां से जीतकर पंचायतराज राज्यमंत्री बने ओटाराम देवासी भी चुनावों में सरकार बनते ही कार्यकर्ताओं के हर काम करवाने के वायदे करते रहे थे। भाजपा और संघ के कार्यकर्ता इन्हें चुनाव जिताने में उनकी भूमिका का दावा

करते हुए इनसे भी अपने और अपने परिवारजनों का मनोनयन इस लाभ वाले पद पर करवाने का दबाव बना रहे हैं। पार्टी सूत्रों की मानें तो अब सरकार आने पर अपनी चलेगी का दावा करने वाले ये दोनों ही नेता इस मनोनयन की फांस निकालने के लिए अपने हाथ में कुछ नहीं होने की बात कहते हुए अपना पल्ला झाड़ने लगे हैं। इसका गुस्सा दोनों ही संगठनों में देखने को मिल रहा है।
-पुनर्लाभ के लिए आतुर कई
जब चोरी चुपके इन समितियों में नियुक्तियां हो जाती थी उस समय बिना जनाधार वाले चापलूसी करने वाले कई नेताओं ने इन समितियों में मनोनीत हो गए थे। अब फिर से सत्ता में आने पर ये लोग फिर से ये लाभ के पद पर अपने मनोनयन के लिए सक्रिय हो गए हैं।

नवागंतुक कार्यकर्ताओं का हक मारने के लिए इस तरह के कई वरिष्ठ कार्यकर्ता बाल कल्याण समिति और किशोर न्याय बोर्ड में स्वयं या स्वयं के परिवार वालों के मनोनयन के लिए सक्रिय हो गए हैं।
-संयम लोढ़ा की हार की एक वजह ये भी
अपनी कार्यशैली की विफलता को छिपाने के लिए संयम लोढ़ा भले ही अपनी हार का ठीकरा भाजपा की हिन्दुत्व की राजनीति पर फोड़ रहे हैं। लेकिन, उनकी हार की असली वजह वो खुद और उनके द्वारा बाल कल्याण समिति व किशोर न्याय बोर्ड जैसी लाभ वाली जगहों पर अपनी जाति और वोट बैंक के लिए भाजपा की पृष्ठभूमि वाले लोगों को मनोनीत करना भी महत्वपूर्ण कारक रहा।

उन्होंने ऐसी कई जगहों पर कांग्रेस के प्रभावशाली और मेहनती कार्यकर्ताओं की जगह ऐसे लोगों का मनोनयन करवाया जिनका कांग्रेस का आधार बनाने में कोई विशेष योगदान नहीं रहा। इस तरह से जमीनी कार्यकर्ताओं की जगह पैराशूटी लोगों और अपना वर्चस्व दिखाने के लिए लाभांवित करना उनके लिए चुनावों में नकारात्मक साबित हुआ। पिछले कार्यकाल में ओटाराम देवासी की हार की भी एक महत्वपूर्ण वजह यही रही थी।