भूमिहीन मज़दूरों की समस्याओं पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन

अजमेर। राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय के समाज कार्य विभाग और राजस्थान मानव संसाधन विभाग जयपुर के संयुक्त तत्वावधान में भूमिहीन कृषि मज़दूरों का सामजिक और आर्थिक स्तर विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सामाजिक समरसता गतिविधि नई दिल्ली के राष्ट्रीय संयोजक श्याम प्रसाद, विशिष्ट अतिथि डॉ हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय सागर मध्य प्रदेश के कुलाधिपति केएल बेरवाल व पुलिस उप महानिरीक्षिक अजमेर रहे।

संगोष्ठी राजस्थान मानव संसाधन विभाग की ओर से होने वाली संगोष्ठियों की एक श्रंखला में से आयोजित 26वी संगोष्ठी का उद्देश्य भूमिहीन कृषि मज़दूरों की समस्याओ के बारे में विद्यार्थियों, शोधार्थियों एवं अकादमिक पेशेवरों के बीच जागरूकता पैदा करना था। साथ ही भूमिहीन मज़दूरों की समस्याओ की चर्चा कर उन्हें नीति निर्माताओं के समक्ष रखना था। संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के आस पास के गांवों के भूमिहीन मज़दूरो ने भागीदारी निभाई।

कार्यक्रम की शुरुआत विशिष्ट अतिथियों ने मां सरस्वती की मूर्ति के समक्ष दीप प्रज्वलन की। मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता श्याम प्रसाद ने इस अवसर पर कहा कि अन्य रोजगारों की तरह किसानी और मज़दूरी में गौरव का अभाव है। भूमिहीन मज़दूरों में अनुसूचित जातियों और पिछड़ा वर्ग की बहुलता दर्शाती है कि इसका जातिगत विषमता व भेदभाव से गहरा सम्बन्ध है।

उन्होंने उम्मीद जताई की शासन द्वारा निकट भविष्य में भूमिहीन मज़दूरों के मध्य विशिष्ठ पहचान पत्र, आवास और स्वास्थ्य सुविधा जैसी बुनियादी जरूरतों को पूर्ण करने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जाएंगे। उन्होंने उपस्थित भूमिहीन मज़दूरों एवं अन्य किसानो की समस्याओं को जानने का प्रयास किया जिसमे उन्होंने मज़दूरों की समस्याओं को लेकर कुछ सवाल पूछे जिसके जवाब में मज़दूरों ने जातिगत प्रताड़ना, स्कीम का लंबित भुगतान, जमीन हड़पना तथा शिकायत करने पर पुलिस की निष्क्रियता, प्रवासी मज़दूरों द्वारा कम मानदेय पर कार्य करना जिससे उन्हें काम मिलने में दिक्कत होती है आदि।

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथियों केएल बेरवाल व ओम प्रकाश ने भी भारत में भूमिहीन कृषि श्रमिकों की समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए अपने विचार प्रस्तुत किए।

राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो आनंद भालेराव ने कहा कि विश्वविद्यालय का प्रयास हमेशा यह रहा है कि अकादमिक परिसर में होने वाले विमर्श समाज की जमीनी सच्चाइयों से जुड़ें। इस संगोष्ठी के माध्यम से हमने यह प्रयास किया है कि इन मज़दूरों की समस्याओं को केवल सुना ही न जाए, बल्कि उनके समाधान की दिशा में ठोस पहल भी की जाए। हमारा विश्वविद्यालय समाज के वंचित वर्गों की आवाज़ को बुलंद करने के लिए निरंतर प्रयासरत रहेगा।

इस अवसर पर भारतीय समाज विज्ञान अनुसंधान परिषद् नई दिल्ली के सीनियर रिसर्च फेलो डॉ धर्मवीर चंदेल ने पत्र वाचन किया गया। इस पत्र के निष्कर्ष के तौर पर उन्होंने पाया कि राजस्थान में भूमिहीन कृषि मज़दूरों में अनुसूचित जाति की बहुलता (51%), भूमिहीन मज़दूरों की बुरी स्थिति में होने की अवधारणा (77%), बच्चों की स्कूली शिक्षा में व्यवधान तथा मौसम के अनुसार रोज़गार की सीमित उपलब्धता की वजह से अन्य क्षेत्रों में प्रवास आदि। इस अवसर पर उनके द्वारा प्रस्तुत पत्र का अनावरण विशिष्ठ अतिथियों द्वारा किया गया।

विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के प्रो राजेश कुमार ने समापन भाषण में सरकारी आंकड़ों का सन्दर्भ देकर भूमिहीन मज़दूरों की विशाल जनसंख्या और सामाजिक आर्थिक विषमता से लेकर, महिला मज़दूरों को कम वेतन, मज़दूरों के मध्य पेंशन, बीमा सुविधा एवं संगठन का आभाव आदि समस्याओ को प्रस्तुत किया।

उन्होंने शासन की ओर से असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओ जैसे कौशल विकास योजना आदि के सकारात्मक प्रभाव का भी उल्लेख किया। अंत में समाज कार्य विभाग की डॉ शैजी अहमद ने धन्यवाद ज्ञापित किया।