परीक्षित मिश्रा सिरोही। सिरोही जिले की तीन में से दो सीटों पर कांग्रेस ने अपना दबदबा खोया है। इस बार भाजपा ने इन दोनों सीटों पर पहले टिकिट देकर कांग्रेस को इस सीट को अपनी झोली में डाले का मौका दिया है। रेवदर और पिण्डवाड़ा आबू सीटों पर इस बार कांग्रेस ने अपनी चाल पलटी तो इन सीटों पर कांग्रेस की जीत का अकाल खत्म हो सकता है।
भाजपा ने रेवदर विधानसभा में पांचवी बार जगसीराम कोली को टिकिट दिया है। इसका विरोध अब परवान चढऩे लगा है। ऐसा नहीं है कि जगसीराम कोली इस सीट पर अजेय हैं, लेकिन कांग्रेस इस सीट पर अपनी गलती का खामियाजा भुगत रही है। इस सीट पर 2003 से ही जो पैटर्न बन गया है कांग्रेस उसे समझने को तैयार नहीं है। जगसीराम कोली को पहली बार टिकिट मिला 2003 में और उन्होंने यहां से तीन बार विधायक रह चुके छोगाराम बाकोलिया को हरा दिया।
इसी समय से इस क्षेत्र में स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा हावी रहा इसके बावजूद कांग्रेस ने यहां पर 2003 से लेकर 2018 तक तीन बार बाहरी प्रत्याशियों को टिकिट दिया। इसका खामियाजा उन्हें हार के रूप में देखना पड़ा। 2013 में तो अन्ना आंदोलन के बाद कम हुई कांग्रेस की साख के कारण राजस्थान में कई जगह कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी तो रेवदर विधानसभा में भी कोली जाति का स्थानीय उम्मीवार होने के कारण मुंह की खानी पड़ी। अब यदि कांग्रेस यहां पर 2013 वाला ही प्रयोग फि से करती है तो निस्ंसदेह यहां पर का परिणाम कुछ आशाजनक रह सकता है।
कांग्रेस के पास ऐसा स्थानीय सक्रिय उम्मीदवार है भी। लेकिन, कांग्रेस यदि इस सीट को फिर से उदारता दिखाने के लिए इस्तेमाल करेगी तो ये सीट इस बार फिर से भाजपा के खाते में जाने की संभावना है। इस विधानसभा में विकास का अभाव और भाजपा में ही एक ही चेहरे के बार बार पुनरावृत्ति के कारण होने वाले विरोध की वजह से कांग्रेस के अपनी रणनीति बदलते ही इस सीट पर भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
सिरोही जिले की आबू पिंडवाड़ा विधानसभा
पिण्डवाड़ा आबू विधानसभा में भी आदिवासी सीट होने के बावजूद कांग्रेस पिछले तीस सालों में अपनी पकड़ नहीं बना पाई। यहां पर तीनों ही बार कांग्रेस को हराने के कारण लगातार हारने के कारण भाजपा ने चौथी बार समाराम गरासिया को रिपीट किया है। लेकिन, इसकी मूल वजह भी टिकिटों के चयन में गड़बड़ी ही है। 2018 में यहां पर कांग्रेस के केडीडेट को सबसे बड़ी हार मिली। इसकी वजह भी टिकिट चयन ही था।
यहां पर गरासिया समुदाय के वोट ज्यादा हैं। यहां भी मारवाड़ पट्टी और भाखर पट्टी के साथ स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा हावी रहता है। यहां स्थानीय और बाहरी का मतलब जिले से बाहर का नहीं होकर इस पट्टी के बाहर का भी होता है। कांग्रेस यहां पर भाखर पट्टी के केंडीडेट को प्राथमिकता देती रही। इसका नुकसान पिछले चुनाव में भी उठाना पड़ा।
स्थानीय कांग्रेसियों की मानें तो यहां पर कांग्रेस नए चेहरे को उतारती है तो उसे फायदा होगा। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस सीट पर समाराम गरासिया का भाजपा में ही जबरदस्त विरोध हो रहा है। कांग्रेस इसका फायदा अपने पक्ष में कर पाती है या नहीं यही यहां पर कांग्रेस की जीत का अकाल खतम करने में मदद करेगा।
कांग्रेस को यहां पर सबसे बड़ी मात माउण्ट आबू नगर पालिका क्षेत्र में मिलने की संभावना है। यहां पर कांग्रेस का नगर पालिका बोर्ड बनाने के बाद भी वो पूरी तरह से पंगु बना रहा और इस बोर्ड के संरक्षक रतन देवासी यहां पर अधिकारियों की निरंकुशता और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने में पूरी तरह से विफल साबित हुए। यहां पर फिलहाल पूर्व विधायक गंगाबेन गरासिया, पूर्व विधायक लालाराम गरासिया, निम्बाराम गरासिया, लीलाराम गरासिया, ललिता गरासिया, पन्नालाल मीणा आदि कांग्रेस के दावेदार हैं।