बुरहानपुर। महाराष्ट्र की सीमा से लगे मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिला मुख्यालय के समीप असीरगढ़ के चर्चित किले के पास सोने के सिक्कों की खोज में खेतों में सैकड़ों की तादाद में रात भर जुटे ग्रामीणों के एक वॉयरल वीडियो की इन दिनों काफी चर्चा है।
छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र राजा संभाजी महाराज के जीवन पर केंद्रित हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म छावा में बुरहानपुर के हुए जिक्र के बाद इस अफ़वाह ने जोर पकड़ा है कि यहां जमीन में अभी भी मुगलकालीन ख़जाना गडा हुआ है। यह किसी को मिल जाए, तो उसकी किस्मत बदल सकती है। हालांकि अभी तक अधिकृत रूप से किसी सिक्के के मिलने की कोई पुष्टि नहीं हुई है।
बुरहानपुर जिला पुलिस अधीक्षक देवेन्द्र पाटीदार ने बताया कि एक वॉयरल वीडियो से यह बात सामने आई कि असीरगढ़ के पास सोने के सिक्के मिलने की अफ़वाह पर रात के अंधेरे में कई लोगों ने मोबाइल फोन की टॉर्च की रोशनी में खेत खोद दिया है। इस वीडियो में बहुत से लोग खेत में मिट्टी खोदते और मिट्टी को छानकर सिक्के खोजते नज़र आ रहे हैं। जब इस मामले की पड़ताल की गई तो, आरम्भिक तौर पर यह बात सामने आई कि यह चार-पांच माह पुराना वीडियो है, जो अभी कुछ दिन पूर्व वायरल हुआ है।
उन्होंने कहा कि दरअसल बुरहानपुर से हाईवे के निर्माण के दौरान जमीन से कुछ सिक्के निकलने की अफ़वाह उड़ी थी, जिसके चलते ग्रामीण खेतों में खुदाई करने चल पड़े थे। हालांकि अभी तक कोई सोने का सिक्का मिलने की पुष्टि नहीं हुई है। इधर, इस मामले में खेत मालिक ने भी थाने में कोई शिकायत दर्ज़ नहीं कराई है। फिर भी पुलिस यहां सतर्क है और निगरानी बनाए हुए है।
बुरहानपुर के इतिहासकार एवं सिक्कों के संग्रहकर्ता मेजर डॉ एमके गुप्ता बताते हैं कि बुरहानपुर ढाई हजार वर्ष पुराना शहर रहा है और इतने पुराने सिक्के यहां ताप्ती नदी में मिलते रहे हैं। वे चांदी के पंचमार्क सिक्के होते थे, जिनका वजन तीन ग्राम के करीब होता था। इसका उपयोग व्यापार विनिमय में होता थे। इन पर किसी राजवंश की मोहर नहीं होती थी, लेकिन सूर्य का चिन्ह अंकित होता था। इसके बाद यहाँ ताप्ती नदी और आसपास के खेतों से 2200 वर्ष पुराने राजाओं के समय के सात वाहन सिक्के भी मिले हैं।
उन्होंने कहा कि यहां मुग़ल काल के पहले सुल्तानों के राज में भी बुरहानपुर महत्वपूर्ण रहा है, जो दो सौ साल तक खानदेश की राजधानी रहा है। तब यहां ताम्बे के सिक्के चलन में थे, जो यहां ताप्ती से मिले हैं। मुगलकाल में बादशाह अकबर ने बुरहानपुर में टकसाल शुरू की, जो ब्रिटिश हुकूमत में भी जारी रही। उस समय भी सर्वाधिक सिक्के ताम्बे के ही बने थे, हालांकि चांदी और सोने के भी सिक्के ढलते थे, लेकिन उनकी तादाद कम थी।
दरअसल ऐतिहासिक नगरी बुरहानपुर का मुगलकाल में बहुत सामरिक महत्व रहा है, जिसे दक्षिण का द्वार भी कहा जाता है। यहां मुगल शासकों ने न केवल लम्बे समय तक शासन किया, बल्कि यहां उनकी बड़ी छावनी भी तैनात रही। शाहजहां भी यहां लम्बे समय रहे और बेगम मुमताज़ की मृत्यु भी यहां हुई, जिनकी याद में ताजमहल बनाया गया।
मुगलों के पूर्व फ़ारुक़ी वंश और उसके पहले राजा आसा अहीर का असीरगढ़ के किले पर आधिपत्य रहा। सत्ता का हमेशा से केंद्र होने से यहां शाही खजाना भी था, जो लड़ाइयों के दौरान लूटा भी गया। उस दौर में सम्पत्ति को सुरक्षित रखने के लिए उसे जमीन में ही गाडे जाने की परंपरा रही थी, जिसके चलते यहां समय समय पर मुगलकालीन सिक्के और उसके पहले के सिक्के भी मिलते रहे हैं।
बुरहानपुर पहले खंडवा जिला का ही हिस्सा हुआ करता था, लेकिन बाद में यह अलग जिले के रूप में अस्तित्व में आया। खंडवा से बुरहानपुर होते हुए महाराष्ट्र राज्य की सीमा में प्रवेश करते हैं।