प्रयागराज। दुनिया का सबसे बड़ा प्लास्टिक कचरे का आयातक चीन द्वारा आयात पर प्रतिबंध लगाने के कारण पश्चिमी देशों में हड़कंप मच गया है और उन्होंने अपने कचरे को आर्थिक रूप से कमजोर और अविकसित देशों की तरफ रूख किया है।
दुनिया के नामचीन एक्वाकल्चर वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सोनकर ने गुरूवार को बताया कि दुनिया के सबसे बड़े प्लास्टिक स्क्रैप आयातक देश चीन पश्चिमी देशों द्वारा सालाना करीब 70 लाख टन प्लास्टिक कचरे का आयात करता था जिसमें अमरीका की अकेले की हिस्सेदारी सात लाख टन थी।
चीन आयातित कचरे से तमाम प्रकार के उत्पाद तैयार कर सस्ते मूल्यों पर पुन: दुनिया के देशों को वापस लौटाता रहा। उसने वर्ष 2017 में प्लास्टिक कचरे के आयात में कटौती शुरू कर दी और जनवरी 2018 तक उसने सभी प्रकार के प्लास्टिक कचरे के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया।
चीन के सभी प्रकार के आयातों पर प्रतिबंध लगाने से पश्चिमी देशों में बड़ी मात्रा में कचरे को खपाने को लेकर बेचैनी बढ़ गई। तब पश्चिमी देशों ने अविकसित और आर्थिक रूप से कमजोर मुल्कों में अपने कचरे का ढेर लगाना शुरू कर दिया।
डा सोनकर ने एक सवाल के जवाब में बताया कि जिन देशों पर चीन के प्रतिबंध का शुरूआती असर हुआ था, उन्होंने भी बाद में प्लास्टिक आयात को सीमित करने को लेकर नियम-कानून बना दिए। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसकी गंभीरता को देखते हुए 2040 तक प्लास्टिक के उत्पादन एवं प्रदूषण में 80 फीसदी कटौती का प्रस्ताव किया है। कड़े अन्तर्राष्ट्रीय कानून बनाकर नवंबर 2024 में ही दक्षिण कोरिया में होने वाली प्लास्टिक प्रदूषण पर संयुक्त राष्ट्र की बैठक में इसपर चर्चा करके पारित किया जाना है।
उन्होने बताया कि मार्च 2022 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (यूएनईए) की बैठक में 175 देशों ने प्लास्टिक प्रदूषण पर कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि करने पर सहमति जताई है। अगर यह नियम पास हो गया तब बहुत बड़ी तादाद में प्लास्टिक प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सकेगा। डा सोनकर ने 15 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को भी इस मामले की गंभीरता को लेकर पत्र लिखकर स्पष्ट एडवाइजरी जारी करने का अनुरोध किया है।।
डा साेनकर ने बताया कि तमाम वैज्ञानिक शोधों से साबित हुआ है कि पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक हर दशा में कैंसरकारी है। रिसायकल और प्लास्टिक बेस्ट मैनेजमेंट का आड़ लेकर प्लास्टिक व्यापारी इसके उत्पादन को बनाए रखना चाहते हैं। पश्चिमी धनाढ्य देश भारत जैसे मुल्क को तलाश किया है। एक बड़ी आबादी सस्ते विकल्पों के लिए हमेशा लालायित रहती है। इसीलिए घाना जैसे देशों में प्लास्टिक कचरे के ईंटों से सस्ते मकान तैयार हो रहे हैं और सड़क बनाने का प्रचार जोरों पर है। उन्होंने बताया कि पेट्रोलियम आधारित कोई भी उत्पाद पर्यावरण और मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए जहर है।
पद्मश्री डा सोनकर ने बताया कि आज प्रत्येक देश इस प्लास्टिक कचरे के संकट से जूझ रहा है लेकिन वर्ष 2008 में अफ्रीकी राष्ट्र रवांडा दुनिया का पहला प्लास्टिक-मुक्त राष्ट्र बन गया। करीब दस साल पहले इसने सभी प्लास्टिक बैग और प्लास्टिक पैकेजिंग पर सख्ती से प्रतिबंध लगा दिया था। उसके नियम इतने सख्त थे कि प्लास्टिक की वस्तु के साथ पकड़े जाने पर व्यक्ति को छह महीने तक जेल की सजा का प्रावधान है।