नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि कथित तौर पर राज्यसभा को दरकिनार कर आधार अधिनियम जैसे कानूनों को धन विधेयक के रूप में पारित करने की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए वह एक संवैधानिक पीठ का गठन करने के अनुरोध करने वाली याचिका पर विचार करेगा।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के अनुरोध पर सहमति व्यक्त की कि इस मामले पर विचार करने की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सिब्बल ने आरोप लगाते हुए इस मामले में पीठ के समक्ष उल्लेख किया कि केंद्र सरकार द्वारा धन विधेयक की आड़ में कानून पारित किए जा रहे हैं।
पीठ की ओर से न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इस पर कहा कि जब मैं संविधान पीठों का गठन करूंगा तो देखूंगा। इस पर सिब्बल ने कहा यह मामला पहले से ही सूची में है। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और अधिवक्ता इंदिरा जय सिंह ने सिब्बल की दलीलों को आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा कि मामले में दलीलें पहले ही पूरी हो चुकी हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जय सिंह ने भी कहा कि धन विधेयक से संबंधित एलआईसी का मुद्दा भी है। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने सहमति जताते हुए कहा कि हम इस मामले को सूचीबद्ध करेंगे।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि जब मैं संविधान पीठों का गठन करूंगा, तब इस पर विचार करूंगा। मुख्य न्यायाधीश ने पहले घोषणा की थी कि आधार अधिनियम जैसे कानूनों को धन विधेयक के रूप में पारित करने की वैधता के मुद्दे पर विचार करने के लिए सात न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ का गठन किया जाएगा। इस निर्णय का उद्देश्य धन विधेयकों को लेकर उठे विवाद को हल करना है, क्योंकि सरकार ने आधार अधिनियम और धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) जैसे कानून में संशोधन के लिए उन्हें धन विधेयक के रूप में संशोधन पेश किए हैं।
आरोप है कि सरकार का यह दृष्टिकोण राज्यसभा को दरकिनार करने का था, जहां उस समय सरकार के पास बहुमत हासिल नहीं था। दरअसल, धन विधेयक केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है। राज्यसभा धन विधेयक में संशोधन या अस्वीकृति नहीं कर सकती है। वह केवल सिफारिशें कर सकती है, जिन्हें लोकसभा स्वीकार या अनदेखा कर सकता है।