जयपुर। राजस्थान में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी करीब 35 साल बाद लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करने में कामयाब रही हैं और इसके अमराराम चौधरी को छह बार हार का मुंह देखने के बाद पहली बार सांसद बनने का मौका मिला हैं।
इस बार लोकसभा चुनाव में सीकर संसदीय क्षेत्र से माकपा उम्मीदवार चौधरी ने चुनाव जीतकर पैतीस साल बाद फिर माकपा की प्रदेश के सीकर संसदीय क्षेत्र में राजनीतिक प्रतिष्ठा कायम की। हालांकि उन्होंने इंडिया गठबंधन के तहत माकपा प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़ा।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में पहले लोकसभा चुनाव से सीपीआई और वर्ष 1967 के लोकसभा चुनाव से माकपा चुनाव लड़ती आ रही हैं लेकिन इस दौरान जीत माकपा को केवल दो बार ही मिल पाई हैं।
राजस्थान में पिछले पैतीस सालों में वर्ष 1996 एवं 1998 के चुनाव में आल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (तिवाड़ी) को छोड़कर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के सामने कोई पार्टी अपने दम पर राजनीतिक दबदबा कायम नहीं कर पाई। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने भाजपा के सहयोग से नागौर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीतने में कामयाब रही और वह इस बार कांग्रेस के साथ गठबंधन करके दूसरी बार चुनाव जीतकर नागौर संसदीय क्षेत्र में अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा बरकरार रखी।
रालोपा के संयोजक हनुमान बेनीवाल कांग्रेस और भाजपा इन दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के सहारे दो बार संसद पहुंचने में सफल रहे। इस बार कांग्रेस के सहयोग से भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) ने भी लोकसभा चुनाव में पहली बार अपना खाता खोला। बीएपी के उम्मीदवार राजकुमार रोत ने बांसवाड़ा लोकसभा सीट से चुनाव जीता और इस बार के चुनाव में बीएपी तीसरी पार्टी हैं जिसने भी अपना राजनीतिक दबदबा दिखाने में सफल रही हैं।
इस बार माकपा के नेता अमराराम चौधरी भी कांग्रेस के साथ जुड़कर सीकर से लंबे समय के राजनीतिक संघर्ष के बाद इस बार सफल रहे और उन्हें छह बार हार का मुंह देखने के बाद पहली बार संसद पहुंचने का मौका मिला जो पार्टी की राजस्थान में यह दूसरी विजय थी। इससे पहले वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में माकपा के श्योपत सिंह मक्कासर ने बीकानेर संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीता और पार्टी को प्रदेश में पहली जीत दिलाई थी।
इस बार सीकर से चुनाव जीतने वाले अमराराम चौधरी ने वर्ष 1996 में सीकर से लोकसभा का पहला चुनाव लड़ा और चुनाव हार गए। इसके बाद उन्होंने पांच बार लोकसभा का चुनाव और लड़ा लेकिन सफलता नहीं मिली लेकिन इस बार चुनावी भाग्य का पिटारा उनके पक्ष में खुला और वह चुनाव जीत गए। इससे पहले वह सीकर जिले में चार बार विधायक भी रह चुके हैं।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश में वर्ष 1977 के चुनाव को छोड़कर सभी लोकसभा चुनावों में अपना राजनीतिक दबदबा रखने वाली कांग्रेस का वर्ष 1989 में भाजपा और जनता दल के गठबंधन के सामने राजस्थान में खाता नहीं खुला। उस समय भाजपा और जनता दल के अलावा एक सीट सीकर से माकपा ने जीती थी।
इसके बाद वर्ष 1996 एवं 1998 में आल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (तिवाड़ी) ने एक-एक सीट जीतने में कामयाब रही। इसके बाद वर्ष 2019 के चुनाव में रालोपा ने भाजपा के साथ गठबंधन करके एक सीट पर अपना कब्जा जमाया और इस बार कांग्रेस के साथ मिलकर अपना कब्जा बरकरार रखा।
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