सिरोही। पद का दुरुपयोग करके सिरोही के लोगों के हक को मारने की कोशिश के लिए नगर परिषद से दो बार डिमांड नोट जारी किए गए थे। ये काम इतने गुपचुप तरीके से किया गया था कि किसी को पता ही नहीं चला। इन्हीं दो डिमांड नोट के आधार पर भी नगर परिषद के खाते में राजीव नगर की राशि को आरटीजीएस किया गया था। ये जानकारी नगर परिषद में कांग्रेस के पार्षदों ने कलक्टर के माध्यम से मुख्यमंत्री, स्वयत्तशासन मंत्री को भेजे गए ज्ञापन में दी।
ज्ञापन में नगर परिषद में कांग्रेस के पार्षदों ने बताया कि तत्कालीन आयुक्त योगेश आचार्य ने बिना किसी नोटशीट चलाए सभापति व पार्षदों को अंधेरे में रखकर विधानसभा चुनाव के दौरान 29 नवम्बर 2023 को सुप्रीम कोर्ट के एलआर और तेजाराम के वारिस को पत्र भेज केस निस्तारण करने का काम किया। ज्ञापन में बताया गया कि राजीव नगर की भूमि को खुर्दबुर्द करके नगर परिषद के राजस्व को नुकसान पहुंचाने का ये काम दूसरी बार किया गया।
इसमें आरोप लगाया गया कि इस भूमि के बारे में हाईकोर्ट की डबल बेच में नगर परिषद के पक्ष में फैसला हुआ था। इसकी जानकारी आचार्य को होने के बावजूद उन्होंने यह अवैधानिक कार्य कर सबकी परेशानी में डाल दिया। सुप्रीम कोर्ट से केस विड्रॉ करने का अधिकार केवल नगर परिषद बोर्ड को है। इसकी जानकारी होने के बाद भी आचार्य ने गुपचुप तरीके से अपने स्तर पर केस विड्रा करने व भूमि से हक त्यागने का पत्र लिखकर अपने पद का खुला दुरुपयोग किया।
परिषद की भूमि को खुर्द बुर्द करने का गम्भीर अवैधानिक कृत्य किया है। इसमें बताया गया कि आचार्य के द्वारा 29 नवम्बर 2023 को लिखे पत्र में जो तथ्य लिखे हैं उससे सभी पार्षद सहमत नहीं है। ज्ञापन देने वाले पार्षदों ने पूरे प्रकरण की जांच पाली के संभागीय आयुक्त से करवाकर सख्त से सख्त कार्यवाही करने की मांग की।
ज्ञापन में बताया गया कि इससे पहले भी 31 दिसम्बर 2022 को तत्कालीन आयुक्त अनिल झिंगोनिया ने नगर परिषद की ओर से बिना किसी प्रस्ताव या बोर्ड निर्णय के अपने स्तर पर गुपचुप में राजीव नगर आवासीय योजना के मूलधन जमा करवाने का एक मांग पत्र क्रमांक 5288 पक्षकार के नाम से जारी किया। जिस पर तेजाराम के वारिस ने 6 जनवरी 2023 को 7 लाख 39 हजार 200 रुपए अपने स्तर पर बिना किसी को जानकारी दिए जमा करवा लिए। लेकिन, उसकी रसीद नहीं कटवाई गई।
इसके बाद कार्यवाहक आयुक्त श्योगेश आचार्य ने बिना किसी को बताए सभापति व पूरे बोर्ड को अंधेरे में स्खकर अपने स्तर से ही बिना किसी निर्णय के फिर एक मांग पत्र क्रमांक 5575 दिनांक 17 नवम्बर 2023 को जारी करके 22 लाख 62 हजार रूपए का भुगतान ब्याज के रूप में नगर परिषद खाते में जमा करवा लिए। इसकी भी रसीद आज तक परिषद ने जारी नहीं की। जबकि बोर्ड ने ब्याज की राशि जमा करने का ऐसा कोई निर्णय पारित ही नहीं किया, ना कभी कोई समझोता करने का निर्देश तत्तकालीन आयुक्त आचार्य को दिया।
ज्ञापन में ये बताया गया कि इस घटनाक्रम क्रम की जानकारी डीएलबी को देने के बाद भी उनके विरुद कोई सख्त कार्यवाही अभी तक नहीं की गई। ब्याज की यह राशि जमा करने का सभापति को ध्यान दिलवाया तो उन्होंने आयुक्त के स्तर पर नियम विरुद जमा की गई मूल राशि 7 लाख 39 हजार 200 एवं ब्याज की राशि 22 लाख 62 हजार कुल 30 लाख 12 सौ रुपए पक्षकार को रिटर्न करवाया।
इस सबकी पूरी जानकारी कलेक्टर व डीएलबी व डीडीआर, जोधपुर को होने के बावजूद भी नियम विरूद्ध बिना किसी प्रस्ताव या आदेश के राशि जमा करने का जो कृत्य किया गया उसके विरूद्ध कोई एक्शन नहीं लिया गया। इसमें बताया गया कि आचार्य वर्तमान में आयुक्त, नगर परिषद सांचोर में कार्यरत है। ज्ञापन में मांग की है कि ऐसे गम्भीर मामले में सरकार को तत्काल ऐसे गलत कार्यों के लिए उन्हें निलंबित कर इस प्रकरण की विस्तृत जाच शुरू की जाए।
पत्रकार वार्ता भी की
ज्ञापन देने के बाद सभापति महेंद्र मेवाड़ा ने कांग्रेस के सभी पार्षदों के साथ पत्रकार वार्ता आयोजित की। इसमें बताया गया कि 16 अक्टूबर 1987 को स्टेट लेवल मोनीटरींग कमेटी की बैठक दिनांक IDSMT योजना बनाई गई थी। इसमें बताया कि इसके अंतर्गत तत्कालीन कलक्टर की अध्यक्षता में 13 जून 1988 को CMC की बैठक हुई। इसमें राजीव नगर की जमीन के तीन खातेदार समझोता वार्ता में 21 हजार रुपए प्रति बीघा समझौता हुआ। खातेदार तेजाराम की कृषि भूमि विक्रय विलेख के जरिए 27 मार्च 1989 के माध्यम से 7 लाख 39 हजार 200 रुपए में जमा की गई। इसका विक्रय विलेख पंजीयन संख्या 253/89 6 मई 1989 को हुआ।
पत्रकार वार्ता में बताया गया कि योजना 1988 में बनाई गई। इस योजना के स्वीकृत प्लान में 99 भूखण्ड में 32 दुकान 1992 में प्लान स्वीकृति प्रार्थना पत्र 15 नवम्बर 1990 को आमंत्रित किए गए। उपखण्ड अधिकारी सिरोही के राज. काश्तकारी अधिनियम, 1955 की धारा 212 के अन्तर्गत प्रकरण 1993 में दर्ज की गई। इस पर स्थगन प्रथम प्राप्त हुआ। जिसका निर्णय 02 मार्च 1994 को पालिका के पक्ष में हुआ। दूसरा प्रकरण वर्ष 2000 में प्रस्तुत हुआ। जिसका निर्णय 28 सितंबर 2001 को पालिका पक्ष में हुआ।
मेवाड़ा ने बताया कि इसके बाद पालिका मण्डल की 30 जून 2001 की बैठक में प्रस्ताब संख्या 06 अनुसार फिर से आवेदन आमंत्रित किए गए तब 688 आवेदन प्राप्त हुए। नामान्तरण के लिए 23 अक्टूबर 2001 को पत्र लिखा गया। 20 जून 2005 को कलक्टर ने तहसीलदार महोदय को नामान्तरण दर्ज करने के लिए निर्देशित किया।
कलक्टर के द्वारा 5 दिसम्बर 2006 के शासन उप सचिव राजस्व विभाग के निर्देश की अनुपालना में नामान्तरण निरस्त करने को लिखा गया। 2008 में हाई कोर्ट में 1251/2008 सिविल रिट दर्ज की गई। सिंगल बैच द्वारा प्राप्त निर्णयानुसार नामान्तरण पुनः रिवाईव हेतु लिखा गया। इसके क्रय में नगर पालिका के पक्ष में निर्णय होने से दुकान व भूखण्ड निलाम किए गए। उक्त दुकान निर्मित व मौके पर संचालित है। इसके बाद हाइकोर्ट की डबल बेंच में भी नामांतरण का निर्णय नगर परिषद के पक्ष में हुआ। फिर सुप्रीम कोर्ट में प्रकरण गया वहां का निर्णय पेंडिंग है।