सिरसा। हरियाणा में सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा प्रमुख संत गुरमीत राम रहिम को एक बार फिर जेल से पेरोल मिली है। इस बार पेरोल 50 दिन की है।
डेरा प्रमुख को पेरोल मिलने से डेरा अनुयायियों में खुशी का माहौल है। डेरा प्रमुख पेरोल अवधि बागपत के बरनावा आश्रम में गुजारेंगे। शाम के समय डेरा प्रमुख उत्तरप्रदेश के बरनावा डेरा में पहुंच गए।
गौरतलब है कि डेरा प्रमुख को साध्वी दुष्कर्म मामले में वर्ष 2017 में सजा सुनाई गई थी तभी से रोहतक जिला की सुनारिया जेल में बंद हैं। बाद में सिरसा के पत्रकार रामचंद्र छत्रपति और डेरा साधु रणजीत हत्याकांड में भी सजा हो चुकी है। साधुओं को नपुंसक बनाने के आरोप का मामला अभी अदालत में विचाराधीन है। डेरा प्रमुख द्वारा सीबीआई अदालत के अब तक के फैसलों को ऊपरी अदालतों में चुनौती नहीं दी गई है।
शुक्रवार को 50 दिन के पेरोल की अर्जी मंजूर हो गई। जमानती कागजात देर से तैयार होने के कारण जेल से बाहर आने में समय लगा। जैसे ही रोहतक पुलिस को पेरोल की सूचना मिली तो सुनारिया जेल परिसर के आसपास सतर्कता बढ़ा दी गई। शिवाजी कॉलोनी थाना पुलिस ने आउटर हिसार बाईपास, रुपया चौक से लेकर आईएमएमए तक रास्ते की छानबीन की। एक डीएसपी के नेतृत्व में हरियाणा पुलिस की टीम उन्हें उत्तर प्रदेश के बरनावा डेरा छोड़कर आई।
उल्लेखनीय है कि डेरा सच्चा सौदा प्रमुख संत गुरमीत राम रहीम सिंह शुक्रवार को 12वीं बार सुनारिया जेल से बाहर आए हैं। उन्हें आठवीं बार पेरोल मिली है। अब तक डेरा प्रमुख की ज्यादातर पेरोल अवधि यूपी के बागपत जिले के बरनावा डेरा में कटी है। पेरोल के बाद सिरसा स्थित डेरा में भी उनके अनयायियों में खुशी का माहौल देखने को मिला।
डेरा प्रमुख को दोबारा पैरोल दिए जाने पर एसजीपीसी ने जताई आपत्ति
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने हत्या और दुष्कर्म के गंभीर आरोप में जेल में सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को बार-बार पैरोल दिए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई है।
एसजीपीसी के अध्यक्ष एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी ने शुक्रवार को कहा कि राम रहीम के प्रति सरकार की विशेष सहानुभूति सवाल खड़े करती है। यह सीधे तौर पर राजनीति से प्रेरित घटना है। उन्होंने कहा कि देश में सरकारें दोहरी नीति अपना रही हैं। एक ओर दुष्कर्म और हत्या के आरोप में सजा काट रहे व्यक्ति को बार-बार पैरोल दी जाती है, वहीं दूसरी ओर तीन दशकों से जेलों में बंद सिखों के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया जा रहा है।
एडवोकेट धामी ने कहा कि राजनीतिक स्वार्थ के लिए यह आपत्तिजनक है कि सरकार गुरमीत राम रहीम के जघन्य अपराधों पर आंखें मूंद लेती हैं और उसे बार-बार छोड़ देती हैं और यह पीड़ितों के घावों पर नमक छिड़कने वाली कार्रवाई है। जिस पर एसजीपीसी कड़ी आपत्ति जताती है।