नसीराबाद। दिगम्बर जैन समाज ने दसलक्षण पर्व के छठे दिन उत्तम संयम धर्म की पूजा करते हुए धूप दशमी पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया।
दिगंबर जैन युवा परिषद के अध्यक्ष निहालचंद बढ़जात्या ने बताया कि रविवार को दिगंबर जैन मंदिरों में सुगंध दशमी की व्रत कथा कही गई। जिनालयों में 24 तीर्थंकरों, पुराने शास्त्रों तथा जिनवाणी के सम्मुख चंदन की धूप अग्नि पर खेई गई। सुबह जैन मंदिरों में श्रीजी का अभिषेक, शांति धारा व पूजन किया गया। उत्तम संयम धर्म की भी पूजा की गई। जैन समाज की महिलाओं ने धूप दशमी (सुगंध दशमी) के व्रत एवं उपवास किए।
दिगंबर जैन समाज के प्रवक्ता विजय पाटनी ने बताया कि सुगंध दशमी के उपलक्ष में दिगंबर जैन समाज नसीराबाद के सभी मंदिरों में ब्रह्मचारिणी अर्चना दीदी एवं अंजना दीदी के सान्निध्य में यह पर्व मनाया गया। जैन समाज के लोग जुलूस के रूप में ताराचंद सेठी की नसियां से रवाना होकर मुख्य बाजार होते हुए मुनि सुब्रत नाथ मंदिर, पारसनाथ दिगंबर जैन गली वाला मंदिर, आदिनाथ जैन बड़ा मंदिर से समाधि स्थल पर पहुंचे।
इस अवसर पर ब्रह्मचारिणी अर्चना दीदी ने प्रवचन करते हुए बताया कि संयम का अर्थ नियंत्रण, रोकथाम और मानसिक एकाग्रता है। उत्तम संयम यानी सर्वोच्च आत्म-संयम उन दस गुणों में से एक है जिसे मनुष्य द्वारा चार जुनून (कषाय) यानी क्रोध, घमंड, छल और लालच का प्रतिकार करने के लिए विकसित किया जाना चाहिए।
धर्म की उन्नति के लिए शालीनतापूर्वक शास्त्र के अनुसार बोलना सत्य कहलाता है। पृथ्वी पर कुछ भी सत्यता के समान गौरवशाली नहीं है, यह अन्य सभी गुणों को अपने साथ लाता है। अपनी पांचों इंद्रियों पर संयम रखना जरूरी है। इंद्रियों पर नियंत्रण न रखने से आध्यात्मिक अखंडता भंग होती है। यह नियम पशु जगत पर भी लागू होता है।
तितली लौ की ओर आकर्षित होकर मर जाती है, मधुमक्खी कमल से अमृत चाहती है और घातक कारावास को आमंत्रित करती है।मछली चारे से प्रलोभित हो जाती है और मछुआरे का शिकार बन जाती है।, जालसाज़ों द्वारा शक्तिशाली हाथी को लुभाने के लिए मादा हाथी का उपयोग किया जाता है और संगीत सुनने में मग्न हिरण शिकारियों का आसान शिकार बन जाता है।
कामुक संयमों का पालन करने में मन की शिथिलता चार कषायों क्रोध, मान, माया और लोभ को आमंत्रित करती है जिसके परिणामस्वरूप अनकहा दुख होता है। जो मन इन वासनाओं को नियंत्रित कर सकता है, वह अपने कर्मों को नष्ट कर देता है और जीत जाता है। जैन साधु सच्चा तपस्वी जीवन जीने के लिए मन और इंद्रियों पर नियंत्रण रखने का अभ्यास करते हैं।