सबगुरु न्यूज-पिण्डवाड़ा (परीक्षित मिश्रा)। आदिवासी बहुल पिण्डवाड़ा-आबू विधानसभा सीट पर कांग्रेस के हारने की प्रमुख वजह है यहां की तासीर को समझने में गलती करना।
इस आदिवासी बहुल सीट पर भले ही आरएसएस का प्रभाव बढ़ गया हो लेकिन, एक फैक्टर अभी भी इनमें उससे भी ज्यादा प्रभावी है वो है पट्टों के बीच सामाजिक और पारिवारिक संबंधों की कड़ी। स्थानीय लोगों की मानें तो कांग्रेस इसी को समझने में भूल कर रही है और 2018 में कोई लहर नहीं होने के बाद भी यहां से इतनी बुरी तरह से हारी जितनी कथित मोदी लहर के कारण 2013 में हारी थी। इसकी वजह यही पट्ट परम्परा है।
मतदान के आंकड़े दे रहे हैं गवाही
यहां पर स्थानीय और बाहरी की मुद्दा जबरदस्त हावी है। और यह स्थानीय और बाहरी का मुद्दा जिले या विधानसभा के बाहर का नहीं होकर इसी विधानसभा के दूसरे पट्टे का होने को लेकर है। यहां पर गरासिया जाति का बहुमत है और इसी विधानसभा में इनके दो पट्टे हैं। उदयपुर-पाली से सटे इलाकों वालों को मारवाड़ पट्टा वहीं गुजरात से सटे इलाकों वालों को भाखर पट्टा। इन लोगों में सामाजिक रिश्ते इन्हीं पट्टों के अनुसार होते हैं।
मारवाड़ पट्टे वालों के सामाजिक व्यवहार मारवाड् पट्टों वालों से रहते हैं वहीं भाखर पट्टे वालों के गुजरात और राजस्थान बार्डर पर सटे भाखर पट्टे वालों से। इस विधानसभा में 2008 के परिसीमन में इस विधानसभा क्षेत्र में भाखर पट्टे के सिर्फ दो दर्जन गांव ही रह गए शेष सारा इलाका मारवाड़ा पट्टे के हैं। ऐसे में मारवाड़ पट्टे के वोटर ज्यादा हैं। ये लोग मारवाड़ पट्टे के लोगों को ही वोट करते हैं।
2018 में ये रहा वोटिंग पैटर्न
कांग्रेस ने 2018 में आबूरोड पंचायत समिति के भाखर पट्टे वाले लालाराम गरासिया को टिकिट दिया। उन्हें बूथवार जो वोट मिले वही बता दे रहे हैं कि यहां पर स्थानीय का मतलब जाति के अलावा पट्टे की स्थानीयता भी है।
2018 में मारवाड़ पट्टे में पडऩे वाले रोहिड़ा के पांच बूथों पर भाजपा को 2229 और कांग्रेस को 671 वोट मिले। 1558 से कांग्रेस पीछे रही। भारजा चार बूथों पर भाजपा को 1609, कांग्रेस को 851 मत मिले और भाजपा 758 वोटों से आगे रही। वाटेरा के तीन बूथों से भाजपा को 1197, कांग्रेस को 353 वोट मिले कांग्रेस 884 वोटों से पिछड़ी।
वालोरिया के 4 बूथों पर भाजपा को 358, कांग्र्रेस को 235 और बीटीपी को 952 वोट मिले। भावरी के 2 बूथों पर भाजपा को 1216, कांग्रेस को 207 वोट मिले ये अंत 1009 का रहा। वहीं घरट के 3 बूथों पर भाजपा को 808 और कांग्रेस को 82 वोट मिले तथा भाजपा 726 वोटों से आगे रही। इतना ही नहीं पिण्डवाड़ा जैसी 13 बूथों वाले नगर पालिका क्षेत्र में भी ये फैक्टर काम करता है। पिण्डवाड़ा के 13 बूथों पर भाजपा को 5 हजार 236, कांग्रेस को 3 हजार 236 वोट मिले तथा भाजपा 2000 वोटों से आगे रही। ये इस क्षेत्र का सबसे बड़ा अंतर है।
आबूरोड पंचायत समिति पिण्डवाड़ा-आबू नहीं
कांग्रेस के आला कमान जयपुर और दिल्ली में बैठकर स्थानीय भूगोल के वेत्ता हो जाते हैं। वो आबूरोड को पिण्डवाड़ा-आबू पंचायत समिति का हिस्सा मानकर यहीं के पंचायती राज जनप्रतिनिधियों को पिण्डवाड़ा आबू से टिकिट दे देते हैं। आबूरोड पंचायत समिति में कुछ हिस्से को छोडक़र शेष हिस्सा रेवदर विधानसभा का आता है। ऐसे में यहां के प्रत्याशी का पट्टा ही नहीं विधानसभा भी अलग हो जाती है।
ऐसे में जब जिले की तीनों विधानसभाओं में स्थानीय नेता का मुद्दा हावी हो रहा है ऐसे में पिण्डवाड़ा-आबू विधानसभा के स्थानीय के क्राइटेरिया को नजरअंदाज करना कांग्रेस को भारी पड़ रहा है। कांग्रेस भारजा से मोरस के बीच के किसी प्रत्याशी को टिकिट देवे तो काफी हद तक उसके यहां से जीतने या फिर इज्जतदार हार की स्थिति बनती है। लेकिन, फिर से गलतियां दोहराई तो वर्तमान में भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ जबरदस्त एंटी इंकम्बेंसी और खिलाफत के बाद भी कांग्रेस के जीतने की संभावनाएं कम ही हैं।