मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए दो लड़कों को एक नाबालिग लड़की का पीछा करने के आरोप से बरी कर दिया है कि लड़कों द्वारा पीड़िता का केवल एक बार पीछा करने के मामले को पीछा करने का अपराध नहीं माना जा सकता है।
एक वकील ने मंगलवार को बताया कि न्यायमूर्ति जीए सनप की अध्यक्षता वाली बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली दो लड़कों की अपील को स्वीकार करते हुए, जिसने उन्हें एक नाबालिग लड़की का पीछा करने और बाद में उसका यौन उत्पीड़न करने के लिए दोषी ठहराया था, अपने आदेश में कहा कि केवल एक बार लड़की या पीड़िता का पीछा करना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354-डी और पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत निर्धारित पीछा करने के अपराध के बराबर नहीं माना जाएगा।
न्यायमूर्ति सनप ने कहा कि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि पीछा करने के अपराध को सिद्ध करने के लिए, अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि आरोपी ने किसी बच्चे का बार-बार या लगातार पीछा किया, देखा, या सीधे या इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल मीडिया के माध्यम से उससे संपर्क किया। पीछा करने के अपराध की इस अनिवार्य आवश्यकता को देखते हुए, पीड़ित का केवल एक बार पीछा करने का उदाहरण इस अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।
जनवरी 2020 में आरोपी ने लड़की का पीछा किया और उसके सामने प्रेम प्रस्ताव रखा, जिसे लड़की ने ठुकरा दिया। लड़की की मां 26 अगस्त को जब घर से मां बाहर थी तो आरोपी उसके घर में घुस गया। उसका मुंह बंद कर दिया और उसे गलत तरीके से छुआ। जब उसने शोर मचाया तो उसकी बहन दूसरे कमरे से आई, जिसके बाद आरोपी भाग गया।
अदालत ने कहा कि उसका दोस्त पूरे समय घर के बाहर इंतजार कर रहा था और इसलिए उसे यौन उत्पीड़न या पीछा करने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता और इसलिए उसे सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।
उच्च न्यायालय ने कहा कि पहले आरोपी ने केवल एक बार लड़की का पीछा किया था और इसलिए उसे पीछा करने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अदालत ने हालांकि पीड़िता और उसकी बहन की गवाही को विश्वसनीय मानते हुए आरोपी की घर में अतिक्रमण और यौन उत्पीड़न करने के लिए दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा। उल्लेखनीय है कि सत्र अदालत ने 3 जून 2022 को उन्हें दोषी ठहराया और सात वर्षों की जेल की सजा सुनाई और 55,000 रुपए का जुर्माना लगाया।