आबूरोड (सिरोही)। आदिवासी लोक संस्कृति की अनेक लीलाओं के परंपरागत प्रदर्शन के लिए सिरोही जिले का आदिवासी बहुल उपलागढ़ विख्यात है। आदिवासी समाज के हजारों लोग यहां आयोजित होने वाले गैर मेले क लाजवाब प्रस्तुतियों को देखने के लिए पहुंचते हैं।
भाखर बाबा की प्रतिमाओं को नमन के बाद बढें आगे
धूलंडी के दूसरे दिन आयोजित होने वाले उपलागढ़ गैर मेले में प्रस्तुति देने वाले उपलागढ़ गांव के ही कलाकार अलग-अलग फलियों से पूरी तैयारी के साथ अपनी वेशभूषा में ढोल के साथ गैर मेला स्थल पहुंचेते है, जहां पर भाखर बाबा की प्रतिमाओं के सामने आशीर्वाद लेकर के फिर ढोल वादन की ध्वनि के साथ विद्यालय के सामने की जगह पर बारी-बारी से अपने-अपने दल की प्रस्तुतियां देते हैं।
ससुराल से पीहर पहुंचती है गांव की नवविवाहिताएं
उपलागढ़ की गैर, आदिवासी गरासिया समुदाय का प्रसिद्ध गैर है। यह वर्षों से धुलंडी के दूसरे दिन आयोजित होती है। इस वार्षिक आयोजन पर गांव की विवाहितांएं ससुराल से पीहर पहुंचती हैं, अपने परिवार के साथ गैर स्थल पर पहुंचकर बाबा की प्रतिमाओं के सामने प्रसाद आदि भेंटकर आशीर्वाद प्राप्ति के बाद हेरतअंगेज कार्यक्रमों को देखने का मनभावन आनंद लेती है।
आदिवासी लोक कलाओं का पिटारा
गैर मेले के सभी लाजवाब कार्यक्रम ढोल की धुन पर ही प्रस्तुत किए जाते हैं। लय और ताल के अनुरूप ढोल बजाने की शैली ढोल वादक द्वारा परिवर्तित की जाती है। जिस प्रकार ढोल वादक द्वारा बाबा ढोल की भाषा में ढोल बजाए जाने पर केवल बाबा ही नृत्य करते हैं और उसके बाद वादक द्वारा रायण ढोल की भाषा बजाई जाने पर वे आदिवासी लोक कलाकार जो हाथों में तलवार और महिलाओं की वेशभूषा धारण किए होते हैं वे ही अपना प्रदर्शन उस ढोल की ध्वनि अनुरूप करते हैं।
ज्वारा नृत्य में पुरुष आगे ढोल बजाकर नृत्य करते हुए बढ़ते हैं तो युवतियां पीछे-पीछे ज्वारा लेकर नृत्य के साथ परिधि में आगे बढ़ती है। शेष अन्य कई स्थानीय आदिवासी लोक कलाकार की प्रस्तुतियों में ढोल वादन की शैली अनुरूप कलाकार लाजवाब प्रदर्शन करते हैं।