रेलवे संरक्षा कोष के इस्तेमाल ना करने का आरोप गलत

नई दिल्ली। सरकार ने आज इस बात का खंडन किया कि रेलवे के संरक्षा उपायों पर समुचित व्यय नहीं किया जा गया है और इसी के परिणाम स्वरूप ओडिशा की दुर्घटना हुई है।

सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने यहां बताया कि विभिन्न राजनीतिक चर्चाओं में ओडिशा रेल दुर्घटना को लेकर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की एक रिपोर्ट के हवाले से यह दावा किया जा रहा है कि राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष का इस्तेमाल नहीं किया गया। यह बात तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है और इस प्रकार के दावों से लोगों में गलत धारणाएं बनायीं जा रहीं हैं।

सूत्रों ने कहा कि रेलवे के सभी परियोजना एवं संरक्षा संबंधी व्यय किसी एक स्रोत पर निर्भर नहीं हैं। इसका इंतज़ाम मुख्यत: तीन स्राेतों – सरकार से मिलने वाली सकल बजटीय सहायता, भारतीय रेलवे के आंतरिक संसाधनों और बाहरी ऋण (राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष सहित) से किया जाता है।

सूत्रों ने कहा कि वर्ष 2017-18 में सरकार ने बजट में राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष का गठन करके पांच वर्ष में यानी वर्ष 2021-22 तक एक लाख करोड़ रुपए व्यय करने का लक्ष्य रखा था। सीएजी की रिपोर्ट में राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष के इस्तेमाल को लेकर केवल तीन वर्ष यानी 2017-18, 2018-19 एवं 2019-20 के व्यय का जिक्र किया गया है। जबकि कोविड जैसी चुनौतियों के बावजूद रेलवे ने निर्धारित अवधि में इस कोष का पूरा इस्तेमाल सुनिश्चित किया और वर्ष 2021-22 तक एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि खर्च हुई है।

सूत्रों ने कहा कि ट्रैक नवीकरण के बारे में भी तथ्यों को समझने की जरूरत है। वर्ष 2004-05 से वर्ष 2013-14 तक पटरियों के नवीकरण पर 47 हजार 39 करोड़ रुपए व्यय किए गए जबकि वर्ष 2014-15 से लेकर वर्ष 2़023-24 (बजट अनुमान) तक यह खर्च एक लाख नौ हजार 23 करोड़ रुपए है जो इस मद में 2.3 गुने से अधिक आवंटन एवं इस्तेमाल दर्शाता है।

रेलवे के आंकड़ों के अनुसार ट्रैक नवीकरण के मद में वर्ष 2017-18 में 8884 करोड़ रुपए, 2018-19 में 9690 करोड़ रुपए, वर्ष 2019-20 में 9391 करोड़ रुपए, वर्ष 2020-21 में 13523 करोड़ रुपए और वर्ष 2021-22 में 16558 करोड़ रुपए व्यय किए गए। सूत्रों ने कहा कि ट्रैक नवीकरण एक अतीत का भार है और इसे वर्तमान सरकार कम कर रही है।

इसी प्रकार वर्ष 2004-05 से वर्ष 2013-14 तक संरक्षा के कुल व्यय 70 हजार 274 करोड़ रुपए की तुलना में वर्ष 2014-15 से लेकर वर्ष 2023-24 (बजट अनुमान) के दौरान यह आंकड़ा एक लाख 78 हजार 12 करोड़ रुपए है जो पहले की तुलना में ढाई गुना है।

टक्कर रोधी तकनीक कवच के बारे में सूत्रों ने बताया कि कवच इस समय दक्षिण मध्य रेलवे के अंतर्गत 1465 किलोमीटर के खंड में लगा है। यह नयी तकनीक है और रेलवे ने हाल ही में इसे स्वीकृति प्रदान की है और करीब 3000 किलोमीटर के रूट में लगाने का फैसला किया है। दिल्ली से मुंबई और दिल्ली से हावड़ा के रूट पर इस तकनीक को लगाया जा रहा है। इसलिए कवच तकनीक वाले हिस्से की पूरे 65 हजार किलोमीटर के नेटवर्क के आधार पर तुलना करना बेमानी है।

सूत्रों ने यह भी स्पष्ट किया कि कवच लगाने के काम का कोई अलग से आवंटन नहीं है। सिगनल एवं टेलीकॉम के मद में आवंटन में से इसे लगाया जा रहा है और आवश्यकता पड़ेगी तो संरक्षा के मद से भी धन लेकर इस काम को पूरा किया जाएगा। उन्होंने यह भी जोर देकर कहा कि रेलवे किसी भी परियोजना खासकर संरक्षा संबंधी कार्यों के लिए धन की कोई कमी नहीं है। ज़ोनल महाप्रबंधकों को इस बात के लिए अधिकार संपन्न बनाया गया कि वे जरूरत पड़ने पर संरक्षा के कार्यों के लिए किसी भी मद से धन लेकर खर्च करने का निर्णय ले सकते हैं।