जयपुर। अन्धकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक एवं रोशनी का पर्व दीपावली पर इस बार गाय के गोबर से बने दीपकों से विदेशों में बसे भारतीयों के घर-आंगन भी रोशन होंगे।
इसके लिए विदेश में बसे भारतीयों के लिए राजस्थान की राजधानी जयपुर से 20 लाख दीये निर्यात किए गए हैं। ये दीये टोंक रोड स्थित श्रीपिंजरापोल गौशाला परिसर में सनराइज आर्गेनिक पार्क में बनाए गए। पिछल्ले करीब छह माह से महिला स्वयं सहायता समूहों की दर्जनों महिलाएं इन इको-फ्रेंडली दीपकों का निर्माण कर रही हैं। हैनिमैन चैरिटेबल मिशन सोसाइटी एवं आईआईएएएसडी के सहयोग से बनाए जा रहे इस दीपकों को भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ की ओर से मार्केट उपलब्ध करवा रहा है।
भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ के अध्यक्ष डॉ. अतुल गुप्ता ने बताया कि ये बीस लाख दीये अमरीका महाद्वीप के कई देशों में भेजे गए है। गुप्ता ने बताया कि गाय के गोबर के दीये की मांग बढ़ने लगी है जिससे यह वहां एक व्यापार का रुप लेता जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीय त्योहारों पर चीन में निर्मित सामग्री के उपयोग का चलन अब कम होता जा रहा है और लोग अपनी संस्कृति एवं परम्परागत चीजों के प्रति जागरुक होते जा रहे हैं और इसी का कारण हैं कि आज विदेशों में बैठे भारतीयों में भी अपनी संस्कृति के प्रति मोह के कारण वे दीपावली पर गाय के गोबर से अपना घर रोशन करेंगे।
उन्होंने कहा कि 192 टन गाय का गोबर निर्यात किया गया है। उन्होंने बताया कि गाय के गोबर से न केवल दीपक ही बनाये जाते बल्कि इससे गोकाष्ठ, देवी देवताओं की मूर्तियां आदि बनाई जाती है और यह एक लघु उद्योग के रुप में उभर रहा हैं। इस तरह के स्टार्टअप तैयार हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि यहां गौ शाला में 30 टन गोबर की खाद प्रतिदिन तैयार की जाती है।
उन्होंने बताया कि गाय के गोबर से बनाए गए दीपक दो रुपए से लेकर दस रुपए तक उपलब्ध हैं। इनमें विभिन्न तरह के दीये तैयार किए गए है जिनमें ऐसे भी दीये हैं जिन्हें बार बार उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि 40 प्रतिशत गोबर मिलाकर लाख की चूड़ियां भी बनाई जाती है। उन्होंने कहा कि गाय गोबर के उत्पाद को ग्रामीण उद्योग का दर्जा मिलना चाहिए।
उन्होंने बताया कि इस दीपक के जलने से घर में हवन की खुशबू महकेगी। जिससे घर के वातावरण को पटाखों की गैस को कम करने में सहायक होगी। दीये को दीपावली में उपयोग करने के बाद जैविक खाद बनाने उपयोग में लाया जा सकता है। दीये के अवशेष को गमला या कीचन गार्डन में भी उपयोग किया जा सकता है। इस तरह मिट्टी के दीये बनाने और पकाने में पर्यावरण को होने वाले नुकसान के स्थान पर गोबर को दीए को इको फ्रेंडली माना जाता है। उन्होंने सनातनधर्मियों से गाय के गोबर से बने दीपक जलाने का आह्वान किया।
पर्यावरण संरक्षण व महिलाओं को स्वाबलंबी बनाने की दिशा में गोबर से बने दीए को अहम माना जा रहा है। रंग-बिरंगे गोबर के ये दीए इस बार चार शानदार डिजाइन में तैयार किए जा रहे हैं। सनराइज आर्गेनिक पार्क में औषधीय खेती कर रही हैनिमैन चैरिटेबल मिशन सोसाइटी से जुड़ी महिलाओं ने इस दिशा में अभिनव पहल की है।
इन्हीं महिलाओं ने गाय के गोबर को अपनी आर्थिक और सामाजिक स्थिति मजबूत करने का जरिया बना लिया है। ये महिलाएं आकर्षक दीए बनाने के साथ लक्ष्मीजी एवं गणेशजी की मूर्ति सहित कई तरह की कलात्मक चीजें भी बना रही हैं। इकोफ्रेंडली होने के चलते राज्य के अन्य शहरों और अन्य राज्यों के साथ-साथ विदेशों से भी इसकी मांग आ रही है।
हैनिमैन चैरिटेबल मिशन सोसाइटी की अध्यक्ष मोनिका गुप्ता ने बताया कि दीपक बनाने के लिए पहले गाय के गोबर को इक्कठा किया जाता है। उसके बाद करीब ढाई किलो गोबर के पाउडर में एक किलो प्रीमिक्स व गोंद मिलाते हैं। गीली मिट्टी की तरह छानने के बाद इसे हाथ से उसको गूंथा जाता है। शुद्धि के लिए इनमें जटा मासी, पीली सरसों, विशेष वृक्ष की छाल, एलोवेरा, मेथी के बीज, इमली के बीज आदि को मिलाया जाता है।
इसमें 40 प्रतिशत ताजा गोबर और 60 प्रतिशत सूखा गोबर इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद गाय के गोबर के दीपक का खूबसूरत आकार दिया जाता है। एक मिनट में चार दीये तैयार हो जाते हैं। इसे दो दिनों तक धूप में सुखाने के बाद अलग-अलग रंगों से सजाया जाता है। प्रतिदिन 20 महिलाएं तीन हजार हजार दीपक बना रही हैं।
उन्होंने बताया कि शास्त्रों के मुताबिक गौमाता के गोबर में लक्ष्मी जी का वास है। इसलिए हमारा लक्ष्य दीये का उपयोग बढाकर लोगों को गाय के गोबर के महत्व को बताना है। उन्होंने बताया कि अब तक जयपुर सहित तेलंगाना, गुजरात, दिल्ली व हरियाणा के साथ अमरीका सहित छह देशों में गाय के गोबर से निर्मित दीयों की मांग आई है। होलसेल में दीए की कीमत दो रुपए से लेकर 10 रुपए प्रति नग है। अब तक करीब 20 लाख दीए बनाए जा चुके हैं लेकिन मांग के अनुसार आपूर्ति नहीं हो पा रही है।