सबगुरु न्यूज। अश्विन शुक्ल दशमी ही विजयदशमी कहलाती है। हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार एवं साढे तीन मुहूर्तों में से एक मुहूर्त वाले दशहरा (विजयदशमी) की अनेक विशेषताएं हैं। दुर्गा नवरात्रि समाप्त होने के तुरंत बाद यह दिन आता है, इसलिए इसे नवरात्रि के समाप्ति का दिन भी मानते हैं। त्रेता युग से हिंदू विजयदशमी महोत्सव मनाते रहे हैं। विजय की प्रेरणा देने वाला एवं क्षात्रवृत्ति जागृत करने वाला यह त्यौहार परस्पर प्रेम, स्नेह भाव बढ़ाना भी सिखाता है।
दशहरे के दिन सीमोल्लंघन, शमी पूजन, अपराजिता पूजन एवं शस्त्र पूजा यह चार कृत्य किए जाते हैं। इस दिन सरस्वती पूजन भी किया जाता है। इस त्यौहार का अनन्य साधारण महत्व होने के कारण इस त्यौहार का इतिहास, महत्व व मनाने की पद्धति इस प्रकार है।
व्युत्पत्ति एवं अर्थ : दशहरा शब्द की उत्पत्ति इस तरह भी है। दश अर्थात दस एवं हरा अर्थात हार गए हैं। दशहरे के पहले नौ दिनों की नवरात्रि में दसों दिशाएं देवी की शक्ति से पूरित होती है व नियंत्रण में आती है, अर्थात दसों दिशाओं के दिक्पाल, गणों आदि पर नियंत्रण हो जाता है। दसों दिशाओं पर विजय प्राप्त हो जाती है।
इतिहास – राम के पूर्वज रघु, अयोध्याधीश ने विश्वजीत यज्ञ किया था। उन्होंने सारी संपत्ति का दान कर दिया था। तत्पश्चात वे एक पर्णकुटी में निवास कर रहे थे। कौत्स्य वहां आए। उन्हें गुरु दक्षिणा देने के लिए 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं चाहिए थीं। रघु कुबेर पर आक्रमण करने के लिए तैयार हुए। कुबेर ने आपटा एवं शमी इन वृक्षों पर स्वर्ण वर्षा की। कौत्स्य ने केवल 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं लीं। बाकी का स्वर्ण प्रजा जन ले गए। उस काल से अर्थात त्रेता युग से हिंदू विजयदशमी महोत्सव मनाते हैं। प्रभु श्री राम ने रावण पर विजय प्राप्त कर उसका वध किया भी इसी दिन किया। इस अभूतपूर्व विजय के कारण इस दिन को विजयदशमी यह नाम मिला है।
पांडवों ने अज्ञातवास समाप्त होते ही शक्ति पूजन करके शमी के वृक्ष पर रखे हुए अपने शस्त्र वापस लिए एवं राजा विराट की गायें चुराने वाली कौरव सेना से युद्ध करके विजय प्राप्त की वह भी यही दिन था।
दशहरे के दिन इष्टमित्रों को आपटे के पत्ते सोने के रूप में दिए जाने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। इस प्रथा का भी ऐतिहासिक महत्व है। मराठा वीर सैनिक मुहिम (युद्ध पर) जाने के बाद शत्रुओं का प्रदेश लूटकर सोना के सिक्के के रूप में संपत्ति घर लाते थे। युद्ध से वापस आने पर दरवाजे में उनकी पत्नी अथवा बहन उनकी आरती उतारती तथा प्रदेश लूट कर लाई संपत्ति में से कुछ वस्तु उसकी आरती की थाली में डालते थे। घर में जाने के बाद लाया हुआ लूट का सामान भगवान के सामने रखते थे। तत्पश्चात भगवान को एवं बड़ों को नमस्कार करके आशीर्वाद लेते थे। इस घटना की स्मृति वर्तमान काल में आपटे के पत्ते सोना मानकर बांटने के रूप में शेष रह गई है।
यह त्यौहार एक कृषि विषयक लोक उत्सव के रूप में भी मनाया जाता था। वर्षा ऋतु में बोया हुआ अनाज पकने पर पहली फसल घर में आने पर किसान यह उत्सव मनाते थे। नवरात्रि में घटस्थापना के दिन घट के नीचे के चबूतरे पर नौ तरह के अनाजों की बुवाई करते हैं, एवं दशहरे के दिन उस अनाज के बढे हुए अंकुर निकालकर भगवान को चढ़ाते हैं। अनेक जगह खेतों से धान की बालियां लाकर प्रवेश द्वार पर तोरण के रूप में भी बांधते हैं। यह प्रथा भी इस त्यौहार का कृषि विषयक स्वरुप व्यक्त करती है। इस तरह वह एक राजकीय स्वरूप का त्यौहार भी बन जाता है।
त्यौहार मनाने की पद्धति : इस दिन सीमोल्लंघन, शमीपूजन, अपराजितापूजन एवं शस्त्र पूजन ये चार कृत्य करने होते हैं।
सीमोल्लंघन : अपरान्ह काल में (दोपहर में तीसरे पहर) गांव की सीमा के बाहर ईशान्य दिशा में सीमोल्लंघन के लिए जाते हैं। जहां शमी अथवा आपटे का वृक्ष हो वहां रुकते हैं।
शमीपूजन : अग्रलिखित श्लोकों से शमी की प्रार्थना करते हैं।
शमी शमयते पापं,शमी लोहितकण्टका।
धारिण्यर्जुनबाणानां,रामस्य प्रियवादिनी।।
करिष्यमाणयात्रायां यथाकाल सुखं मया।
तत्र निर्विघ्न कर्त्री त्वं भव श्रीरामपूजिते।।
अर्थ – शमी पाप का शमन करती है। (नष्ट करती है)। शमी के कांटे भूरे होते हैं। शमी राम को प्रिय है एवं अर्जुन के बाणों को धारण करने वाली है। हे शमी राम ने तुम्हारी पूजा की है। मैं यथा काल विजय यात्रा के लिए निकलने वाला हूं। यह यात्रा मेरे लिए निर्विघ्न एवं सुख कारक कीजिए।
आपटेवृक्ष का पूजन : आपटेवृक्ष का पूजन करते समय अग्रांकित मंत्र कहते हैं।
अश्मंतक महावृक्ष महादोषनिवारणं।
इष्टानां दर्शनं देहि कुरु शत्रुविनाशनम्।।
अर्थ : हे अश्मंतक महा वृक्ष! तुम महादोषों का निवारण करने वाले हो। तुम मुझे मेरे मित्रों के दर्शन कराओ एवं मेरे शत्रुओं का नाश करो।
तत्पश्चात वृक्ष की जड़ के पास चावल सुपारी सोने का सिक्का (विकल्प के रूप में तांबे का सिक्का) रखते हैं वृक्ष को प्रदक्षिणा करके उसके जड़ों के पास से थोड़ी मिट्टी एवं उस वृक्ष के पत्ते घर लाते हैं।
आपटे के पत्ते सोने के रूप में देना : आपटे के पत्ते सोना मानकर भगवान को चढ़ाते हैं। एवं इष्ट मित्रों को देते हैं। यह सोना छोटे बड़ों सभी को देते हैं ऐसी प्रथा है। आपटे के पत्ते तेज तत्व की लहरियों से युक्त होते हैं, आपटे के पत्ते स्वीकार करने वाले को दशहरे के दिन अधिक प्रमाण में कार्यरत रहने वाले श्रीराम तत्व एवं मारुति तत्व इनका सहज ही लाभ प्राप्त होता है। दशहरे को श्रीराम एवं हनुमान इनका स्मरण करने से जीव में दास्य भक्ति निर्मित होती है एवं श्री राम के तारक अर्थात आशीर्वाद रूपी तत्व मिलने में सहायता होती है।
अपराजितापूजन : जिस स्थान पर शमी की पूजा होती है उसी स्थान पर भूमि पर अष्टदल बनाकर उस पर अपराजिता की मूर्ति रखते हैं एवं उसकी पूजा करके निम्न मंत्र से प्रार्थना करते हैं।
हारेण तु विचित्रेण भास्वत्कनकमेखला।
अपराजिता भद्ररता करोतु विजयं मम।।
अर्थ : गले में चित्र विचित्र हार धारण करने वाली, जिसकी कमर में चमकने वाली सुवर्ण मेखला है, ऐसी भक्तों का कल्याण करने में तत्पर अपराजिता देवी मुझे विजयी करें। कुछ स्थानों पर अपराजितापूजन सीमोल्लंघन के लिए जाने से पहले भी किया जाता है।
शस्त्र एवं उपकरणों का पूजन : इस दिन राजा, सामंत एवं सरदार ये वीर अपने-अपने उपकरणों एवं शस्त्रों की पूजा करते हैं। इसी तरह कृषक एवं कारीगर भी अपने-अपने उपकरणों एवं औजारों की पूजा करते हैं। कुछ लोग यह शस्त्र पूजा नवमी के दिन भी करते हैं। लेखनी व पुस्तक यह विद्यार्थियों के शस्त्र हैं। इसलिए विद्यार्थी उनका पूजन करते हैं। इस पूजा के पीछे का उद्देश्य है कि उन वस्तुओं में ईश्वर का स्वरूप देखना अर्थात ईश्वर से एकरूपता साधने का प्रयत्न करना।
सरस्वतीपूजन : इस दिन सरस्वती पूजन भी किया जाता है, दशहरे के दिन कार्यरत सरस्वती के मारक तत्व लहरियों का लाभ होकर पूजक में क्षात्र तेज जागृत होता है।
राजविधान : दशहरा यह विजय का त्यौहार है। इसलिए इस दिन राजाओं के लिए विशेष विधान बताया गया है।
लौकिक प्रथा : कुछ घरों में नवरात्रि का विसर्जन नवमी के दिन तो कुछ घरों में दशमी के दिन किया जाता है।
संदर्भ – सनातन संस्था का ग्रंथ त्यौहार, धार्मिक उत्सव, एवं व्रत