नई दिल्ली। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने रविवार को अपने अध्यक्ष को तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के अनिवार्य भरण-पोषण पर उच्चतम न्यायालय के फैसले को वापस लेने के उपाय शुरू करने के लिए अधिकृत किया।
बोर्ड ने नई दिल्ली में राष्ट्रपति हजरत मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी की अध्यक्षता में अपनी बैठक में निर्णय लिया कि मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं के भरण-पोषण पर शीर्ष अदालत का हालिया फैसला इस्लामी कानून (शरीयत) के खिलाफ था।
एआईएमपीएलबी ने पवित्र कुरान के अनुसार निकाह की निरंतरता के महत्व पर जोर दिया और कहा कि तलाक के बाद पुरुषों को पूर्व पत्नियों को बनाए रखने के लिए मजबूर करना अव्यावहारिक है। बैठक की कार्रवाई का संचालन महासचिव मौलाना मुहम्मद फजलुर्रहीम मुजादीदी ने किया और इसमें देश भर से प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
बोर्ड ने भारत में समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन का विरोध करते हुए तर्क दिया कि यह अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ है। बोर्ड ने उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को चुनौती देने का संकल्प लिया और अपनी कानूनी समिति को एक याचिका दायर करने का निर्देश दिया।
बोर्ड ने इस बात पर जोर दिया कि भारत जैसे बहु-धार्मिक देश में, धार्मिक संस्थाओं को अपने स्वयं के कानूनों का पालन करने का अधिकार है, जैसे मुसलमानों के लिए शरिया एप्लिकेशन अधिनियम-1937।
बोर्ड ने राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा अतिक्रमण को उजागर करते हुए वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा तथा उचित प्रबंधन की मांग की। बोर्ड ने इसे हाल के चुनाव परिणामों से जोड़ते हुए मुसलमानों और निचली जाति के नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने में सरकार की विफलता पर चिंता व्यक्त की। इसने चेतावनी दी कि कानून के शासन की निरंतर उपेक्षा से अराजकता फैल सकती है और भारत की प्रतिष्ठा खराब हो सकती है।
बोर्ड ने ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह से संबंधित नए विवादों पर विचार करने के लिए निचली अदालतों की आलोचना की। इसने सुप्रीम कोर्ट से ‘पूजा स्थल अधिनियम, 1991’ को बरकरार रखने और विरासत मस्जिदों की रक्षा करने का आग्रह किया, साथ ही उन्हें ध्वस्त करने या बदलने के किसी भी प्रयास के प्रति आगाह भी किया।