यथा राजा, तथा प्रजा.. इंडियन रेलवे और अजमेर रेलवे स्टेशन पर सटीक

बुजुर्ग सही कह गए, जैसा राजा होगा, वैसे ही गुणधर्म प्रजा भी अपना लेती है। अपने रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव अजमेर को भले ही ‘बड़ा स्टेशन’ बनाने के सपने देख रहे हों लेकिन उनकी प्रजा यानी रेलवे के अफसर धरातल पर काम करने की बजाय सपने में ही ‘सब कुछ ठीक चल रहा है’ देखकर चैन से सो रहे हैं। यात्री क्या तकलीफ भोग रहे हैं, क्या सुविधाएं चाहते हैं, ये सब इन सपनों के आगे बेमानी है। मोटी तनख्वाह-मोटी पोस्ट…अपना काम बनता, भाड़ में जाए यात्री और जनता।

उत्तर-पश्चिम के बड़े रेलवे स्टेशनों में शुमार अजमेर रेलवे स्टेशन को अत्याधुनिक बनाने के साथ यात्रियों के लिए विश्व स्तरीय सुविधाएं मुहैया कराने का दावा खोखला साबित हो रहा है। भविष्य में ये दावा मूर्त रूप ले सकेगा इसमें संदेह है क्योंकि खुद रेलवे के रखवाले ही न अपने जमीर की सुन रहे हैं और ना जनता जनार्दन की। आला अफसरों और कर्मचारियों के पुराने ढर्रे और काम करने की इच्छाशक्ति ना होने से रेलयात्री सामान्य सुविधाओं तक को तरस रहे हैं। केन्द्र सरकार और रेल मंत्रालय की बड़ी योजनाओं को मूर्त रूप देना तो दूर की बात है।

करोडों रुपए अजमेर रेलवे स्टेशन को चकाचक करने पर खर्च किए जा रहे हैं। यात्रियों को सीढियां ना चढ़नी पड़े इसके लिए बाकायदा एक्सेलेटर लगाए गए। बीमार, बुजूर्ग व दिव्यांग यात्रियों की सुविधा के लिए एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म तक पहुंचने के लिए लिफ्ट लगाई गई। इनके अलावा खान, पान से लेकर आरामगाह जैसे अनगिनत नवाचारों से रेल मंत्रालय ने स्टेशन को नवाजने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोडी। इस सबके बावजूद नतीजा सिफर आ रहा है। स्टेशन पर प्रदत्त सुविधाओं पर ग्रहण लगा देख यात्री खीज कर अपने सफर पर आगे बढ़ जाता है।

एक्सेलेटर और लिफ्ट बंद रहना आम बात

दीगर बात यह है कि केन्द्र सरकार और रेल मंत्रालय ने स्टेशन पर मुहैया कराई यात्री सुविधाओं और संसाधनों के संचालन जिम्मा रेल कर्मचारियों को सौंप कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। वक्त के साथ दौडने की बजाय पुराने ढर्रे पर धीमी गति के समाचार की तरह काम करने के आदतन हो चुके कर्मचारियों पर भरोसा करना ना केवल रेल मंत्रालय को भारी पड रहा है बल्कि इसका खमियाजा रेल यात्रियों को भी भुगतना पड रहा है। हर माह 10 से 15 दिन अजमेर रेलवे स्टेशन पर एक्सेलेटर और लिफ्ट बंद रहना आम बात हो चुकी है। ऐसे में पांच प्लेटफार्म के बीच आने जाने की जरूरत पडने पर सीढी एकमात्र विकल्प बचता है। कई बार तो सीढी ना चढ पाने वाले यात्री रेलवे ट्रेक क्रास करने को मजबूर हो जाते हैं।

400 करोड़ रुपए भी हो जाएंगे पानी

अजमेर स्टेशन पर ब्रह्मा मंदिर पुष्कर और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की वजह से सैकड़ों पर्यटकों व श्रद्धालुओं की आवाजाही लगी रहती है। अजमेर रेलवे स्टेशन पर 400 करोड़ रुपए की लागत से कई कार्य होने हैं। स्टेशन भवन का पुनर्निर्माण किया जाएगा। परियोजना में निर्माण के साथ संचालन और रखरखाव के साथ ग्रीन बिल्डिंग सुविधाएं होंगी। इतना खर्च होने के बाद भी रेलवे के अफसरों और कर्मचारियों का ढर्रा नहीं बदला तो ये खर्च भी पानी की तरह बह जाएगा।

जुबानी जमा खर्च में शिकायत का निपटान

कोई जानकार या जागरुक नागरिक स्टेशन पर व्याप्त परेशानियों और बिगडे हालात की शिकायत दर्ज कराना चाहे तो उसे पसीने आ जाएंगे। स्टेशन पर पांच प्लेटफार्म हैं और शिकायत दर्ज करने का काउंटर सिर्फ प्लेटफार्म नंबर एक पर उपलब्ध है। यानी किसी प्लेटफार्म नंबर चार-पांच पर कोई असुविधा हो रही है तो उसे गुहार लगाने के लिए पहले तो प्लेटफार्म नंबर एक पर आना होगा। वहां भी शिकायत दर्ज कराना आसान काम नहीं है। इसकी वजह से ज्यादातर यात्री शिकायत पुस्तिका में अपनी व्यथा बयां नहीं कर पाते। कोई फिर भी काउंटर तक पहुंच जाए तो वहां काबिज रेलवे के जिम्मेदार कारिंदे शिकायत पुस्तिका देने में आनाकानी करते हैं। सब कुछ जुबानी जमा खर्च की तर्ज पर निपटाने की कवायद की जाती है।

ट्वीटर पर सुनवाई केवल मार्केटिंग फंडा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मार्केटिंग गुरु हैं तो उनके मंत्री भी भला कहां पीछे रहने वाले हैं। एक ट्वीट पर चलती ट्रेन में बीमार यात्री को ऑक्सीजन सिलेंडर या दवा पहुंचाने या फिर मुसीबत में फंसी किसी अबला को चलती ट्रेन में मदद पहुंचाने जैसे नवाचारों की मार्केटिंग करने वाले रेलमंत्री शायद रोजाना होने वाले सैकड़ों ट्वीट नहीं देख पाते। तभी तो उन्हें ट्वीट कर राहत का इंतजार करने वाले सैकड़ों यात्री सिर्फ इंतजार ही करते रहे जाते हैं। स्टेशन पर कंट्रोल रूम के फोन नंबर पर कॉल करने का यात्री के पास कोई सबूत भी नहीं रहता ऐसे में अफसर भी सब खैरियत का राग अलापते रहते हैं।