सबगुरु न्यूज। कुंभ मेला भारतीय महान संस्कृति और श्रद्धा का प्रतीक है। कुंभ मेले का भक्तिमय वातावरण सकारात्मक ऊर्जा और आत्मिक शांति का स्रोत है। यूनेस्को ने इसे ‘विश्व का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण और धार्मिक सम्मेलन’ बताते हुए ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर’ के रूप में मान्यता दी है। कुंभ मेला न केवल भारतीयों के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए श्रद्धा और आकर्षण का केंद्र बन गया है। कुंभ मेले के दौरान होने वाले धार्मिक सम्मेलनों में शस्त्र धारण करने का निर्णय लेकर, एक साथ आने का ‘अखंड आवाहन’ किया गया। ‘अखंड’ शब्द आगे चलकर ‘अखाड़ा’ के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
अखाड़े कुंभ मेले के मुख्य आकर्षण हैं। मुस्लिम शासकों के आक्रमणों से हिंदू धर्म और उसके तीर्थस्थलों की रक्षा के लिए ये अखाड़े बनाए गए। कुश्ती के अखाड़े से आप परिचित होंगे, लेकिन साधुओं के ये अखाड़े हिंदू धर्म, अर्थात सनातन धर्म की रक्षा करने वाले लड़ाकू साधुओं की सेना के रूप में काम करते हैं। कुंभ मेले के शाही स्नान में अलग-अलग अखाड़ों के साधु-संतों को अग्रिम स्थान दिया जाता है। आप यह सुन चुके होंगे। परंतु ये अखाड़े क्या हैं और कौन-कौन से हैं? इस लेख के माध्यम से इन्हीं प्रश्नों का उत्तर दिया गया है।
अखाड़ों की स्थापना
हिंदू धर्म तत्कालीन विभिन्न विचारधाराओं अथवा दर्शन के प्रभाव से प्रभावित हो रहा था, साथ ही इसके अनुयायियों की दिशाभ्रमित करने की घटनाएं भी बढ़ रही थीं। भविष्य में हिंदू धर्म पर बढ़ते संकटों को ध्यान में रखकर आद्य शंकराचार्य ने भारत के चारों दिशाओं में चार पीठों की स्थापना की। इन पीठों के अंतर्गत जो साधु एकत्रित हुए, उन्हें शास्त्र के साथ शस्त्र का भी ज्ञान दिया गया। इस कारण अखाड़ों की स्थापना हुई।
प्रारंभ में चार प्रमुख अखाड़े थे, लेकिन पूजा-पद्धति और नियमों को लेकर मतभेद होने लगे। इस कारण इन चार अखाड़ों से और शाखाएं बढ़कर आज ये 13 अखाड़ों के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनमें 7 अखाड़े शैव पंथ के, 3 वैष्णव पंथ के और 3 उदासीन संप्रदाय के हैं। कुछ अखाड़ों की स्थापना 8वीं शताब्दी से पहले ही हो गई थी, केवल उनके नामकरण बाद में किए गए, ऐसा अखाड़ों का मानना है।
उत्पत्ति और विस्तार
जैन, बौद्ध और इस्लाम धर्म के भारत में उदय होने से हिंदू धर्म का अस्तित्व संकट में आ गया। इस कारण मठों ने ज्ञानोपासना के साथ-साथ विदेशी आक्रमणों का उत्तर देने हेतु शस्त्रधारी दल बनाए और इन्हें ‘अखाड़ा’ की संज्ञा दी। उत्तर भारत से गोदावरी नदी तक के क्षेत्र में रहने वाले सभी पंथीय साधु 14 संघों में निवास करते थे। यही 13 संघ आज के 13 अखाड़े हैं।
दशनामी अखाड़े
इनमें सात अखाड़े शामिल हैं – महानिर्वाणी, अटल, निरंजनी, आनंद, जुना (भैरव), आह्वान और अग्नि।
वैष्णव अखाड़े
वैष्णव पंथ के तीन प्रमुख अखाड़े हैं – दिगंबर, निर्मोही और निर्वाणी (जिनमें 18 उप-अखाड़े और खालसा शामिल हैं)।
उदासीन अखाड़े
इसमें दो अखाड़े शामिल हैं – उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा और उदासीन पंचायती नया अखाड़ा।
निर्मल अखाड़ा
सिख धर्म के इस अखाड़े की स्थापना गुरु गोविंद सिंह की प्रेरणा से हुई।
कुंभ मेले में अखाड़ों की प्राथमिकता
कुंभ मेले में पर्व स्नान के लिए अखाड़ों को प्राथमिकता दी जाती है। प्राचीनकाल में धर्मरक्षण करते हुए अखाड़ों के साधु-संत युद्ध में भाग लेते थे, इसलिए गंगा स्नान के लिए शस्त्रधारी साधु-संतों को प्राथमिकता दी जाती है। आज भी यह परंपरा जारी है। साधु-संतों का स्नान कुंभ मेले की एक महत्वपूर्ण विधि मानी जाती है। यदि साधु-संत स्नान नहीं करते, तो भक्त भी स्नान नहीं करते। आखाड़ों का क्रम और उनका विवरण इस प्रकार है:
शैव पंथीय आखाड़े
श्री आवाहन आखाड़ा
श्री अटल आखाड़ा
श्री आनंद आखाड़ा
श्री निरंजनी आखाड़ा
श्री जुना आखाड़ा
श्री पंचअग्नि आखाड़ा
श्री महानिर्वाणी आखाड़ा
उदासीन अखाड़े
श्री उदासीन पंचायती बड़ा आखाड़ा
श्री उदासीन नया आखाड़ा
श्री निर्मल पंचायती आखाड़ा
वैष्णव पंथीय आखाड़े
श्री पंच दिगंबर आखाड़ा
श्री पंच निर्मोही आखाड़ा
श्री पंच निर्वाणी आखाड़ा
शैव पंथीय आखाड़े का इतिहास और संरचना
आदि शंकराचार्य ने शैव परंपरा के संन्यासियों को दस गुटों में विभाजित किया। इन गुटों को दशनामी संप्रदाय के नाम से जाना जाता है। ये दस गुट हैं: गिरी, पुरी, भारती, तीर्थ, वन, अरण्य, पर्वत, आश्रम, सागर, सरस्वती, इन दशनामी गुटों में धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ शस्त्र संचालन की विधा भी सिखाई जाती है। इनके व्यक्तित्व में क्षात्रतेज (युद्ध कौशल का तेज) झलकता है। प्रत्येक शैव आखाड़े की अलग देवता और ध्वज (झंडा) होते हैं।
वैष्णव पंथीय आखाड़े का इतिहास और महत्व
जगद्गुरु श्री रामानंदाचार्य के शिष्य और उनके बाद श्री भावानंदाचार्य के शिष्य श्री बालानंद ने वैष्णव पंथ के बैरागी साधुओं को संगठित कर तीन प्रमुख बैरागी आखाड़ों की स्थापना की। ये प्रभु श्रीराम को आराध्य मानते हैं। वैष्णव आखाड़ों में भी शस्त्र और शास्त्र का कठोर प्रशिक्षण दिया जाता है। इन बैरागी साधुओं को अलख या बैरागी कहा जाता है। वैष्णव आखाड़ों का मुख्य उद्देश्य हिंदू धर्म और मंदिरों को विधर्मियों के आक्रमण से बचाना है।
शैव पंथीय अखाड़े
आद्य शंकराचार्य ने शैव परंपरा के सन्यासियों को दस समूहों में विभाजित किया। इन्हें ‘दशनामी अखाड़े’ के नाम से जाना जाता है। इनके सात प्रकार हैं। प्रत्येक अखाड़े की देवता और ध्वज अलग होते हैं।
वैष्णव पंथीय अखाड़े
भगवान विष्णु की उपासना करने वाले मठवासियों का समावेश वैष्णव संप्रदाय में होता है। इस समुदाय के लोग भगवान विष्णु के साथ-साथ उनके विभिन्न रूपों की आराधना करते हैं। वैष्णव संप्रदाय के तीन प्रमुख संत: रामानुजाचार्य, माधवाचार्य, वल्लभाचार्य. इन संतों ने वैष्णव संप्रदाय की नींव मजबूत की और भगवान विष्णु की भक्ति को जन-जन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके विचार और उपदेश आज भी इस संप्रदाय के अनुयायियों के लिए मार्गदर्शक हैं।
आखाड़ों में शामिल होने के इच्छुक व्यक्तियों को संन्यास लेने के बाद तीन वर्ष तक ‘टहल’ करनी होती है, जिसका मतलब है वहां के साधु-संतों की सेवा करना। लंबे समय तक सेवा करने के बाद उन्हें नागा का पद प्राप्त होता है। नागा बनने के बाद उन्हें अखाड़े से संबंधित महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी जाती हैं। जब ये साधु अपनी जिम्मेदारियां सफलतापूर्वक निभाते हैं, तो उन्हें पुजारी की उपाधि दी जाती है। इस संप्रदाय में महंत की उपाधि पाने के लिए वर्षों तक धर्म की सेवा करनी पड़ती है।
महंत इस संप्रदाय के आखाड़ों का सर्वोच्च पद होता है। प्रत्येक आखाड़े के तीन अलग-अलग श्रीमहंत होते हैं। श्रीमहंत के बाद महामंडलेश्वर का पद आता है। महामंडलेश्वर की भूमिका: संन्यास के लिए दीक्षा प्रदान करना। धर्म का प्रचार-प्रसार करना।
महामंडलेश्वर को धर्म के प्रचार और लोगों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। इस संरचना के जरिए आखाड़े अपने अनुशासन और धर्म सेवा को बनाए रखते हैं। जगद्गुरु रामानंदाचार्य और उनके शिष्यों ने श्रीरामचंद्र को उपास्य देव मानकर वैष्णव बैरागी अखाड़ों की स्थापना की।
उदासीन अखाड़े
सनातन धर्म और सिख धर्म की रक्षा के लिए एक विशेष आखाड़ा अस्तित्व में है, जिसे उदासीन या उदासी संप्रदाय कहा जाता है। यह संप्रदाय मुख्य रूप से उत्तर भारत में केंद्रित है। इस संप्रदाय की स्थापना सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी के पुत्र श्री चंद्र ने की थी। उन्हें बाबा श्री चंद्र या भगवान श्री चंद्र के नाम से भी जाना जाता है।
उपासना और धार्मिक मान्यताएं
यह संप्रदाय जल, अग्नि, पृथ्वी, वायु और आकाश इन पंचभूतों की उपासना करता है। उनका धार्मिक ग्रंथ सिख धर्म का आदि ग्रंथ है। ये साधु गृहस्थ जीवन और संसार से दूर रहते हैं और अहिंसक प्रवृत्ति के होते हैं। इन्हें नानक पुत्र के नाम से भी संबोधित किया जाता है। ये साधु हिंदू और सिख दोनों धर्मों का पालन करते हैं और इनके त्योहार व्रत आदि मनाते हैं। उदासीन संप्रदाय के प्रमुख आखाड़े श्री पंचायती आखाड़ा बड़ा उदासीन, श्री पंचायती आखाड़ा नया उदासीन, श्री निर्मल पंचायती आखाड़ा।
संप्रदाय की विशेषताएं
उदासीन संप्रदाय के साधु भारतीय संस्कृति का देश-विदेश में प्रचार-प्रसार करते हैं। कुंभ मेले के दौरान श्री पंचायती आखाड़ा नया उदासीन प्रतिदिन हजारों लोगों के लिए लंगर की व्यवस्था करता है। लंगर के साथ-साथ स्वास्थ्य शिविर और संतों के प्रवचन का आयोजन भी किया जाता है। इस संप्रदाय के साधु अहिंसा में विश्वास रखते हैं और समाज सेवा को अपना कर्तव्य मानते हैं। उदासीन संप्रदाय सनातन और सिख धर्म के बीच की एक महत्वपूर्ण कड़ी है, जो भारतीय संस्कृति और धर्म के मूल्यों को जीवंत बनाए रखने का काम करता है।
धर्मरक्षण में साधु-संतों का योगदान
धर्मरक्षण के लिए अखाड़ों के साधु-संतों ने समय-समय पर सशस्त्र युद्ध किए।
1689 में प्रयाग और हरिद्वार तीर्थस्थलों पर हुए मुगल आक्रमणों का नागा साधुओं ने पराक्रम से सामना किया।
1748 में अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण और 1757 में मथुरा पर हुए आक्रमण में साधुओं ने वीरगति प्राप्त कर धर्म की रक्षा की।
महाकुंभ का राजा-आवाहन अखाड़ा
इस संप्रदाय के आवाहन अखाड़ा को आद्य अखाड़ा कहा जाता है। इसे महाकुंभ का राजा माना जाता है। यह एक बहुत पुराना अखाड़ा है। प्रत्येक अखाड़े का एक ध्वज होता है, और इस ध्वज का अर्थ होता है कि अखाड़ा निरंतर गति में है। आवाहन अखाड़े की स्थापना छठी सदी में हुई थी। वर्तमान में इसमें 52 हजार साधु हैं, ऐसा अखाड़ा प्रमुखों का कहना है।
अखाड़ों के धर्मध्वज पूजन से कुंभमेला शुरू होता है
हर अखाड़े का एक धर्मध्वज होता है, जिसमें 52 बंध अनिवार्य होते हैं। ध्वज लगाना यह संकेत होता है कि सिंहस्थ शुरू हो गया है। आद्यशंकराचार्य का पहला अखाड़ा आवाहन अखाड़ा ही है। अखाड़ों के धर्मध्वज पूजन से कुंभ मेले की शुरुआत होती है। जब अखाड़ों के साधु अपने अखाड़े के क्षेत्र में ध्वज के साथ वाजे-गाजे के साथ चलकर हत्ती और घोड़ों पर बैठकर प्रवेश करते हैं, तो इसे पेशवाई मिरवणूक कहा जाता है। यह पेशवाई मिरवणूक कुंभमेले का आकर्षण होती है। इस दौरान विभिन्न अखाड़ों के साधु अपने पारंपरिक शस्त्रों का प्रदर्शन करते हैं, कुछ साधु इन शस्त्रों का प्रैक्टिकल भी करते हैं। नागा साधु शंकराचार्य के लड़ा हुआ दल होते हैं, इसलिए उनके पास तलवार, भाला, डंडा पट्टा जैसी पारंपरिक शस्त्रास्त्र होती हैं।
अखाड़े की अखंड धुनी
आवाहन अखाड़े में एक अखंड धुनी जलती रहती है, जो 1500 वर्षों से जल रही है। इस धुनी की पूजा की जाती है। इसे सनातन परंपरा की चेतना कहा जाता है, इसलिए इसे बुझने नहीं दिया जाता। कुंभमेले के दौरान, अखाड़ों में पहले अग्निमंत्र द्वारा आग प्रज्वलित की जाती थी, अब अरणी मंथन से आग जलती है।
देश और सनातन धर्म की रक्षा यह अखाड़ों का मुख्य कार्य
कुंभमेले के दौरान अखाड़े के साधु सामान्यत: घने जंगलों में तपस्या और साधना करते हैं, और वे मानव बस्ती से दूर रहना पसंद करते हैं। इसलिए ये साधु सामान्यत: कहीं नहीं दिखाई देते। ये अखाड़े अपनी शस्त्रास्त्रों को संरक्षित रखते हैं। देश और सनातन धर्म की रक्षा यह अखाड़ों का मुख्य कार्य है।
आवाहन अखाड़े ने 1857 के ब्रिटिश विरोधी विद्रोह के दौरान रानी लक्ष्मीबाई के पक्ष में अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़ा। इस अखाड़े के 40 हजार साधु उस समय शहीद हुए थे। रानी लक्ष्मीबाई का राजतिलक इसी अखाड़े ने किया था। अखाड़ों को धर्मरक्षा के कार्य करने होते हैं, जिसके कारण उनका प्रशिक्षण बहुत कठिन होता है। मुग़ल साम्राज्य के दौरान भी इन्होंने मुगलों के खिलाफ युद्ध किया, और उस समय भी कई साधुओं ने बलिदान दिया। धर्मरक्षा के लिए बलिदान करना, समाज के लिए सर्वोत्तम त्याग है, ऐसा मानते हैं आवाहन अखाड़े के साधु।
भारतीय समाज में अखाड़ों का प्रभाव
शतक दर शतक, अखाड़ों ने हिंदू परंपरा, मंदिरों और पवित्र स्थलों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हिंदू धर्म में अखाड़ों का बहुत महत्व है। वे प्राचीन आध्यात्मिक परंपराओं, विधियों और शिक्षाओं को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आदि शंकराचार्य ने कुंभमेला शुरू किया और दशनामी अखाड़ों की भी स्थापना की। इस दशनामी अखाड़े में प्रत्येक साधु का कार्य निर्धारित किया गया था। विदेशी आक्रमणकारियों से भारत की रक्षा से लेकर महासागरों और पर्वतों की सुरक्षा तक का जिम्मा इन अखाड़ों को सौंपा गया था।
प्रत्येक अखाड़ा अपनी अद्वितीय तत्वज्ञान और पद्धतियों के साथ आध्यात्मिक यात्रा में योगदान देता है। अखाड़ों की एकजुट उपस्थिति विविधता में एकता का प्रतीक है क्योंकि विभिन्न मार्गों के साधक एक साथ मिलकर आध्यात्मिकता के अनंत क्षेत्रों की खोज करते हैं। इस प्रकार, आज भी अखाड़ों का भारतीय समाज में धर्म, संस्कृति और सामाजिक एकता के संदर्भ में अपार प्रभाव है।
सुनील घनवट
समन्वयक, हिंदू जनजागृती समिती
(संपर्क : 7020383264)