नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को महाराष्ट्र की महान समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले और तमिलनाडु की स्वतंत्रता सेनानी एवं वीरांगना वेलु नाचियार का स्मरण करते हुए उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए।
मोदी ने आकाशवाणी पर अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात मीत ईश्वर शिव को संबोधित करते हुए कहा कि भारतभूमि को हर कालखंड में देश की विलक्षण बेटियों ने गौरव से भर दिया है। सावित्रीबाई फुले और रानी वेलु नाचियार देश की ऐसी ही दो विभूतियाँ हैं। उनका व्यक्तित्व ऐसे प्रकाश स्तम्भ की तरह है, जो हर युग में नारी शक्ति को आगे बढ़ाने का मार्ग दिखाता रहेगा। उन्होंने कहा कि तीन जनवरी को हम सभी इन दोनों की जन्म-जयंती मनाएंगे। मोदी ने कहा कि मैं इन दोनों वीरांगनाओं को श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सावित्रीबाई फुले का नाम आते ही सबसे पहले शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में उनका योगदान सामने आता है। वह हमेशा महिलाओं और वंचितों की शिक्षा के लिए जोरदार तरीके से आवाज उठाती रहीं। वह अपने समय से बहुत आगे थीं और गलत प्रथाओं के विरोध में हमेशा मुखर रहीं। शिक्षा से समाज के सशक्तिकरण पर उनका गहरा विश्वास था।
महात्मा फुले जी के साथ मिलकर उन्होंने बेटियों के लिए कई स्कूल शुरू किए। उनकी कवितायें लोगों में जागरूकता बढ़ाने और आत्मविश्वास भरने वाली होती थीं। लोगों से हमेशा उनका यह आग्रह रहा कि वे जरुरत में एक-दूसरे की मदद करें और प्रकृति के साथ भी समरसता से रहें। वे कितनी दयालु थीं, इसे शब्दों में नहीं समेटा जा सकता।
मोदी ने कहा कि जब महाराष्ट्र में अकाल पड़ा, तो सावित्रीबाई और महात्मा फुले ने जरुरतमंदों की मदद के लिए अपने घरों के दरवाजे खोल दिए। सामाजिक न्याय का ऐसा उदाहरण विरले ही देखने को मिलता है। जब वहां प्लेग का भय व्याप्त था तो उन्होंने खुद को लोगों की सेवा में झोंक दिया। इस दौरान वह खुद इस बीमारी की चपेट में आ गईं। मानवता को समर्पित उनका जीवन आज भी हम सभी को प्रेरित कर रहा है।
मोदी ने कहा कि विदेशी शासन के खिलाफ़ संघर्ष करने वाली देश की कई महान विभूतियों में से एक नाम रानी वेलु नाचियार का भी है। तमिलनाडु में उन्हें वीरा मंगई यानि वीर नारी के नाम से याद करते हैं। अंग्रेजों के खिलाफ़ रानी वेलु नाचियार जिस बहादुरी से लड़ीं और जो पराक्रम दिखाया, वह बहुत ही प्रेरित करने वाला है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अंग्रेजों ने शिवगंगा साम्राज्य पर हमले के दौरान रानी के पति की हत्या कर दी थी, जो वहां के राजा थे। रानी वेलु नाचियार और उनकी बेटी किसी तरह दुश्मनों से बच निकली थीं। वह संगठन बनाने और मरुदु भाईयों यानि अपने कमांडरों के साथ सेना तैयार करने में कई सालों तक जुटी रहीं। उन्होंने पूरी तैयारी के साथ अंग्रेजों के खिलाफ़ युद्ध शुरू किया और बहुत ही हिम्मत और संकल्प-शक्ति के साथ लड़ाई लड़ी। रानी वेलु नाचियार का नाम उन लोगों में शामिल है जिन्होंने अपनी सेना में पहली बार महिला समूह बनाया था।
मातृभाषा में शिक्षा, एआई टूल्स से बदलेगा परिदृश्य
मोदी ने रियल टाइम ट्रांसलेशन एआई टूल्स को क्रांतिकारी बताते हुए कहा है कि नई शिक्षा नीति में अपनी भाषा में शिक्षा देने से प्रतिभाएं उभर कर आएगी और शिक्षा में भाषायी दिक्कत का संकट खत्म हो जाएगा।मोदी ने ‘रियल टाइम ट्रांसलेशन’ और अपनी भाषा में बच्चों को शिक्षा देने के महत्व को समझाया और कहा कि आने वाली समय में इससे भाषायी दिक्कत खत्म होगी और बच्चे अपनी भाषा में शिक्षित होकर अपनी प्रतिभा का अनोखा प्रदर्शन कर सकेंगे और नई शिक्षा नीति इस दिशा में क्रांतिकारी साबित होगी।
उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले काशी में एक अनुभव हुआ था, जिसे मैं ‘मन की बात’ के श्रोताओं को जरुर बताना चाहता हूं। आप जानते हैं कि काशी-तमिल संगमम में हिस्सा लेने के लिए हजारों लोग तमिलनाडु से काशी पहुंचे थे। वहां मैंने उन लोगों से संवाद के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) टूल भाषिणी का सार्वजनिक रूप से पहली बार उपयोग किया।
मैं मंच से हिंदी में संबोधन कर रहा था और एआई टूल भाषिणी की वजह से वहां मौजूद तमिलनाडु के लोगों को मेरा वही संबोधन उसी समय तमिल भाषा में सुनाई दे रहा था। काशी-तमिल संगमम में आए लोग इस प्रयोग से बहुत उत्साहित दिखे। वो दिन दूर नहीं जब किसी एक भाषा में संबोधन हुआ करेगा और जनता रियल टाइम में उसी भाषण को अपनी भाषा में सुना करेगी।
उन्होंने कहा कि ऐसा ही फिल्मों के साथ भी होगा जब जनता सिनेमा हॉल में, एआई की मदद से रियल टाइम ट्रांसलेशन सुना करेगी। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जब ये टेक्नोलॉजी हमारे स्कूलों, हमारे अस्पतालों, हमारी अदालतों में व्यापक रूप से इस्तेमाल होने लगेगी, तो कितना बड़ा परिवर्तन आएगा। मैं आज की युवा-पीढ़ी से आग्रह करूँगा कि रियल टाइम ट्रांसलेशन से जुड़े एआई टूल्स को और एक्सप्लोर करें, उन्हें 100 फीसदी फुल प्रूफ बनाएं।
भाषाओं के संवर्धन को लेकर उन्होंने कहा कि बदलते समय में हमें अपनी भाषाएं बचानी भी हैं और उनका संवर्धन भी करना है। मैं झारखंड के आदिवासी गढ़वा जिले के एक गांव के बारे में बताना चाहता हूं। इस गांव ने बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देने की अनूठी पहल की है। गढ़वा जिले के मंगलो गांव में बच्चों को कुडुख भाषा में शिक्षा दी जा रही है। इस स्कूल का नाम है, ‘कार्तिक उरांव। आदिवासी कुडुख स्कूल में 300 आदिवासी बच्चे पढ़ते हैं। कुडुख भाषा, उरांव आदिवासी समुदाय की मातृभाषा है।
कुडुख भाषा की अपनी लिपि भी है, जिसे ‘तोलंग सिकी’ नाम से जाना जाता है। ये भाषा धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही थी जिसे बचाने के लिए इस समुदाय ने अपनी भाषा में बच्चों को शिक्षा देने का फैसला किया है। इस स्कूल को शुरु करने वाले अरविन्द उरांव कहते हैं कि आदिवासी बच्चों को अंग्रेजी भाषा में दिक्कत आती थी इसलिए उन्होंने गांव के बच्चों को अपनी भाषा में पढ़ाना शुरू कर दिया। उनके इस प्रयास से बेहतर परिणाम मिलने लगे तो गांव वाले भी उनके साथ जुड़ गए। अपनी भाषा में पढ़ाई की वजह से बच्चों के सीखने की गति भी तेज हो गई।
उन्होंने कहा कि देश में कई बच्चे भाषा की मुश्किलों की वजह से पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते थे। ऐसी परेशानियों को दूर करने में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से भी मदद मिल रही है। हमारा प्रयास है कि भाषा, किसी भी बच्चे की शिक्षा और प्रगति में बाधा नहीं बननी चाहिए।
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