नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महाकुंभ को समरसता का प्रतीक करार देते हुए रविवार को कहा कि यह विविधता में एकता का उत्सव मनाता है।
मोदी ने आकाशवाणी पर अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात की 118वीं कड़ी में देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रयागराज में महाकुंभ का श्रीगणेश हो चुका है। यह चिरस्मरणीय जन-सैलाब, अकल्पनीय दृश्य और समता-समरसता का असाधारण संगम है। इस बार कुंभ में कई दिव्य योग भी बन रहे हैं। कुंभ का ये उत्सव विविधता में एकता का उत्सव मनाता है। संगम की रेती पर पूरे भारत समेत पूरे विश्व के लोग जुटते हैं। उन्होंने कहा कि हजारों वर्षों से चली आ रही इस परंपरा में कहीं भी कोई भेदभाव नहीं, जातिवाद नहीं।
उन्होंने कहा कि महाकुंभ में भारत के दक्षिण, पूर्व और पश्चिम से लोग आते हैं। कुंभ में गरीब-अमीर सब एक हो जाते हैं। सब लोग संगम में डुबकी लगाते हैं, एक साथ भंडारों में भोजन करते हैं, प्रसाद लेते हैं – तभी तो ‘कुंभ’ एकता का महाकुंभ है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कुंभ का आयोजन इसका संकेत है कि हमारी परम्पराएं पूरे भारत को एक सूत्र में बांधती हैं। उत्तर से दक्षिण तक मान्यताओं को मानने के तरीके एक जैसे ही हैं। एक तरफ प्रयागराज, उज्जैन, नासिक और हरिद्वार में कुंभ का आयोजन होता है वैसे ही, दक्षिण भू-भाग में गोदावरी, कृष्णा, नर्मदा और कावेरी नदी के तटों पर पुष्करम होते हैं। ये दोनों ही पर्व हमारी पवित्र नदियों से, उनकी मान्यताओं से जुड़े हुए हैं। इसी तरह कुंभकोणम से तिरुक्कड-यूर, कूड़-वासल से तिरुचेरई अनेक ऐसे मंदिर हैं जिनकी परम्पराएं कुंभ से जुड़ी हुई हैं।
मोदी ने कहा कि कुंभ में युवाओं की भागीदारी बहुत व्यापक रूप में नजर आती है और जब युवा-पीढ़ी अपनी सभ्यता के साथ, गर्व के साथ जुड़ जाती है तो उसकी जड़ें और मजबूत होती हैं। इससे उसका स्वर्णिम भविष्य भी सुनिश्चित हो जाता है। उन्होंने कहा कि हम इस बार कुंभ के डिजिटल का प्रयोग भी बड़े पैमाने पर कर रहे है। कुंभ की ये वैश्विक लोकप्रियता हर भारतीय के लिए गर्व की बात है।
मोदी ने पश्चिम बंगाल में गंगासागर पर मकर संक्रांति मेले का उल्लेख करते हुए कहा कि संक्रांति के पावन अवसर पर इस मेले में पूरी दुनिया से आए लाखों श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई है। उन्होंने कहा कि कुंभ, पुष्करम और गंगा सागर मेला हमारे ये पर्व, हमारे सामाजिक मेल-जोल को, सदभाव को, एकता को बढ़ाने वाले पर्व हैं। ये पर्व भारत के लोगों को भारत की परंपराओं से जोड़ते हैं और जैसे हमारे शास्त्रों ने संसार में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, चारों पर बल दिया है। वैसे ही हमारे पर्वों और परम्पराएं भी आध्यात्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक हर पक्ष को भी सशक्त करते हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस महीने हमने पौष शुक्ल द्वादशी के दिन रामलला के प्राण प्रतिष्ठा पर्व की पहली वर्षगांठ मनाई है। इस साल पौष शुक्ल द्वादशी 11 जनवरी को पड़ी थी। इस दिन लाखों राम भक्तों ने अयोध्या में रामलला के साक्षात दर्शन कर उनका आशीर्वाद लिया।
प्राण प्रतिष्ठा की ये द्वादशी भारत की सांस्कृतिक चेतना की पुनः प्रतिष्ठा की द्वादशी है। इसलिए पौष शुक्ल द्वादशी का ये दिन एक तरह से प्रतिष्ठा द्वादशी का दिन भी बन गया है। हमें विकास के रास्ते पर चलते हुए ऐसे ही अपनी विरासत को भी सहेजना है, उनसे प्रेरणा लेते हुए आगे बढ़ना है।