परीक्षित मिश्रा
सबगुरु न्यूज-सिरोही। माउंट आबू में तीन दिन में जिला कलेक्टर को तीन ज्ञापन दिए गए। सबसे पहले आबू संघर्ष समिति ने, फिर करणी सेना ने और उसके बाद माउंट आबू नगर मंडल कांग्रेस ने। कांग्रेस और करणी सेना के ज्ञापन ने आबू संघर्ष समिति का ज्ञापन के पीछे के हिडन एजेंडे का खुलासा कर दिया है।
लेकिन, कांग्रेस, करणी सेना और आबू संघर्ष समिति के ज्ञापन को पढ़ने से ये स्पष्ट है जाएगा कि किसका मकसद माउंट आबू के लोगो को राहत दिलवाना है और किसका माउंट आबू के लोगों के काम अटकाकर अधिकारियो की चापलूसी करके समिति की आड़ में अपने निजी काम निकालना। कांग्रेस और करणी सेना के ज्ञापन में शामिल मुद्दों से स्पष्ट है कि आबू संघर्ष समिति का उद्देश्य इस समिति की आड़ में माउंट आबू के लोगों का काम अटकाना है।
संघर्ष समिति ने शायद ही कभी 3 साल से अटके हुए जोनल मास्टर प्लान के रिवीजन को लेकर धरने देने की बात नहीं की जिसकी बात करणी सेना और कांग्रेस कर रही है। बल्कि आबू संघर्ष समिति ने इस जोनल मास्टर प्लान के रिवीजन में कानूनी रूप से जरूरी मोनिटरिंग कमिटी को निशाना बनाना अपना मूल मकसद रखा। तीनों ज्ञापनों का अंतर ये बता देता है कि आबू संघर्ष समिति में कब्जा जमाए सन्गठन से नजरअंदाज कर दिए गए भाजपा के नेता समिति की आड़ में खुदकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पोसने का प्रयास कर रहे हैं।
आबू संघर्ष समिति के द्वारा जिला कलेक्टर को सौंपे ज्ञापन का कंटेंट बता रहा है कि उनका मकसद माउंट आबू के हित की बजाय मोनिटरिंग कमिटी को भंग करने की मांग के बहाने खुद के राजनीतिक हित साधते हुए गहलोत सरकार और कांग्रेस के नगर पालिका बोर्ड को ये श्रेय जाने से रोकने के अलावा कुछ नहीं है।
-क्या मांगा है करणी सेना ने ?
करनी सेना के ज्ञापन में कोई इफ बट नहीं है। सीधी बात नो बकवास अंदाज में ये ज्ञापन दिया गया है। इसमें माउंट आबू की मूल समस्या आ गई, जिसका निस्तारण होते ही समस्त समस्या और उत्पीड़न खत्म हो जायेगा। करणी सेना के ज्ञापन में लिखा है कि माउंट आबू का ZMP का 3 महीने में संशोधित करना था लेकिन इसमें 3 साल लग गए, इसका तुरन्त निस्तारण करें और बिल्डिंग बाय लॉज़ लागू होने के बाद टोकन व्यवस्था की जरूरत नहीं है इसे तुरन्त समाप्त किया जाए।
इन मांगों के बाद माउंट आबू की व्यवस्था नगर पालिका के पास आ जायेगी और लोगों को उपखंड अधिकारी कार्यालय के बाहर कई कई दिन लाइन लगाने की जरूरत नहीं रहेगी। जबकि आबू संघर्ष समिति के तो ज्ञापन में ही माउंट आबू की जनता की बजाय उपखंड अधिकारी के हितों को संरक्षित करके अपने निजी हित साधना था। ये ज्ञापन देने से पहले समिति समिति के एक सदस्य के नाम बिल्डिंग मटेरियल जारी करने का निर्णय सोशल मीडिया के माध्यम से सामने आया।
इस ज्ञापन को देने से पहले इस समिति के सदस्य को उपखंड अधिकारी के द्वारा निर्माण सामग्री दिए जाने की सूची माउंट आबू में वायरल हो रही थी।
ऐसे में गौर करने वाली महत्वपूर्ण बात ये है कि आबू संघर्ष समिति पर एकाधिकार जमाये बैठे माउंट आबू भाजपा सन्गठन से अलग थलग कर दिए गए भाजपा के जो मुट्ठी भर नेता मॉनिटरिंग कमिटी भंग करने की बात कर रहे थे, वही मोनिटरिंग कमिटी की उप समिति से अपने लिए निर्माण सामग्रियां जारी करवाकर आम आबूवासियों की आंख में धूल झोंक रहे हैं। माउंट आबू के जोनल मास्टर प्लान को संशोधित करने वाली कमेटी के लिए विवाद खड़े करके आम माउंट आबू वासियो की राहत में रोड़े डाल रहे हैं।
– सबसे खास बात ये
अपनी अनर्गल और अवैधानिक मांगों से माउंट आबू के लोगों में अपना विश्वास खो चुकी संघर्ष समिति की पिछले रविवार को हुई बैठक में वो लोग भी शामिल थे जो आज करणी सेना का ज्ञापन देने गए थे। सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि आबू संघर्ष समिति के अध्यक्ष और करणी सेना के जिलाध्यक्ष एक ही व्यक्ति है। लेकिन करणी सेना के ज्ञापन में मॉनिटरिंग कमिटी भंग करने या उपखंड अधिकारी को समस्त अधिकार देने जैसी कोई अवैधानिक बात नहीं लिखी, सिर्फ समस्या के संवैधानिक रूप से निवारण की मूल बात लिखी है।
एक ही अध्यक्ष होने के बावजूद दोनो संगठनों की तरफ से दिए गए ज्ञापन में इतने अंतर से स्पष्ट है कि आबू संघर्ष समिति में अध्यक्ष के चेहरे के पीछे इसमें शामिल भाजपा नगर मंडल से गैर समर्थित भाजपा चुनिंदा नेता अपना हित साधने की कोशिश कर रहे हैं ताकि लोगों को राहत नहीं मिले और वो आगामी नगर पालिका चुनाव जीत सकें। यूँ भाजपा सन्गठन इनसे हाथ झाड़ चुका है। जो हालात बनते जा रहे हैं उससे स्पष्ट है कि माउंट आबू के लोगों को राहत देने में आड़े आने वाले ये आधा दर्जन लोग अलग थलग पड़ते जा रहे हैं।
-कांग्रेस के ज्ञापन में भी आबू हित की बात
भाजपा के नगर अध्यक्ष पहले ही कह चुके हैं कि माउंट आबू में स्विमिंग पूल वाले लोगों की पैरवी करने वाले नेताओं से भाजपा का कोई सरोकार नहीं है। भाजपा हर व्यक्ति को समान राहत में विश्वास रखती है। अब कांग्रेस ने भी गुरुवार को जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर माउंट आबू को राहत देने की मांग की है। इस ज्ञापन में नगर कांग्रेस ने जिला कलेक्टर को बताया कि माउंट आबू के कुछ स्वार्थी लोगों की टुकड़ी तैयार हो चुकी है जो माउंट आबू के आम लोगों को राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार राहत देने में रोड़े अटका रही है।इसमें लिखा कि ये स्वार्थी तत्व आपकी उपस्थिति में मॉनिटरिंग कमिटी के द्वारा लिए गए शौचालय निर्माण, जर्जर भवन निर्माण, स्थानीय स्तर पर सीमेंट के आउटलेट खोलने के निर्णयों को भी लागू नहीं होने दे रहे हैं।
मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष को भी इसकी प्रतिलिपि भेजते हुए इसमे बताया कि स्वार्थी तत्वों की इस टुकड़ी को विपक्ष भी समर्थन नहीं कर रहा है और उसने भी इनकी हरकतों से हाथ झाड़ लिए हैं। जब विपक्षी सन्गठन ऐसे स्वार्थी तत्वों का साथ नहीं देता तो ये लोग समिति का सहारा लेकर ये काम करते हैं।
ज्ञापन में इस समिति की आड़ में अपने हित साधने वाले नेताओं को सीधा निशाना साधते हुए ये आशंका जताई है कि कांग्रेस नगर मंडल ने ये अनुभव किया है कि जो व्यक्ति केंद्र सरकार और राज्य सरकार की अधिसूचनाओं के तहत माउंट के लोगों को मिलने वाली राहत को अटकाने के लिए राज्य सरकार और नगर पालिका बोर्ड के खिलाफ सबसे ज्यादा ज्ञापन देता है वो टोकन लेकर अवैध निर्माण करने से सबसे ज्यादा लाभान्वित हुआ है।
इस ज्ञापन ने सबगुरु न्यूज के उस दावे पर भी मोहर लगा दी है कि माउंट आबू में जनप्रतिनिधियों और सरकारी अधिकारियो की खींचतान की वजह से आम आदमी परेशान हो रहा है। ज्ञापन में लिखा है कि यहाँ आम आदमी की बात कोई नहीं करना चाहता है और जनप्रतिनिधियों व सरकारी अधिकारियों के बीच तनाव का लाभ स्वार्थी तत्व उठा रहे हैं। जिला कलेक्टर को ज्ञापन में नगर कांग्रेस ने बताया कि प्रशासन ऐसे स्वार्थी लोगों के दबाव में आये बिना सर्वोच्च न्यायालय, केंद्र सरकार और राज्य सरकार के द्वारा किये गए प्रावधानों के तहत जल्द से जल्द लोगों तक मोनिटरिंग कमिटी के निर्णयों के लाभ पहुंचाए अन्यथा नगर कांग्रेस को धरना और अनशन पर बैठने को मजबूर होना होगा।
कांग्रेस, भाजपा और इसके बाद करणी सेना की मांग का स्वयंभू आबू संघर्ष समिति के आधा-पौन दर्जन लोगों के द्वारा दिये गए मोनिटरिंग कमिटी भंग करने और ईएसजेड प्रावधानों के विपरीत उपखंड अधिकारी के अधिकारों को संरक्षित करने की मांग के ज्ञापन से मेल नहीं खाना ये बता रहा है कि संघर्ष समिति की आड़ में अपना हित साधने वाले ये आधा पौन दर्जन लोग अब अपनी स्वार्थ पूर्ण मांगों के साथ अलग-थलग पड़ चुके हैं। इस हालत में चुनाव आते-आते ही ये स्थिति बन सकती है कि इन आधा दर्जन लोगों की स्वार्थ सिद्धि के आगे नत मस्तक प्रशासन सरकार के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी करेगा।