नई दिल्ली। राष्ट्रीय अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने पश्चिम बंगाल में आबादी के अनुपात से कहीं अधिक तमाम मुस्लिम समुदायों को बिना प्रक्रिया को अपनाए पिछड़ी जातियों की सूची में जगह देने पर हैरानी जाहिर करते हुए राज्य सरकार से जवाब तलब किया है।
राष्ट्रीय अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हंसराज अहीर ने आज संवाददाताओं से कहा कि पश्चिम बंगाल की 70.5 प्रतिशत आबादी हिन्दू और करीब 27 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। लेकिन पिछड़े वर्ग की सूची में दर्ज 179 जातियाें में से 118 जातियां मुस्लिम हैं।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2011 के पहले राज्य में 108 जातियां इस श्रेणी में सूचीबद्ध थीं जिनमें से 53 मुस्लिम एवं 55 हिन्दू जातियां शामिल थीं लेकिन वर्ष 2011 के बाद 71 और जातियां इस सूची में जोड़ी गईं जिनमें से 65 मुस्लिम एवं केवल छह हिन्दू जातियां शामिल थीं।
उन्होंने कहा कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश पर पश्चिम बंगाल सरकार के सांस्कृतिक शोध संस्थान (सीआरआई) ने अध्ययन करके इन जातियों को ओबीसी की सूची में जोड़ने की सिफारिश की थी। पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा इस स्तर पर जा कर मुस्लिम समुदायों को ओबीसी की श्रेणी प्रदान करने के पीछे वोट बैंक की राजनीति दिखाई देती है।
अहीर ने कहा कि पिछड़े वर्ग की आबादी में 34 प्रतिशत हिन्दू और 65.9 प्रतिशत मुस्लिम हैं। राज्य में ओबीसी की दो श्रेणियां हैं- श्रेणी ए और श्रेणी बी। श्रेणी ए को दस प्रतिशत एवं श्रेणी बी को सात प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है। श्रेणी ए में कुल 81 जातियां (8 हिन्दू एवं 73 मुस्लिम) और श्रेणी बी में 98 जातियां (53 हिन्दू एवं 45 मुस्लिम) हैं।
उन्होंने कहा कि राज्य में इस समय कुल 45 प्रतिशत आरक्षण लागू हैं जिनमें से 17 प्रतिशत ओबीसी के लिए और बाकी अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए है। उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा के हिसाब से ओबीसी को 22 प्रतिशत तक आरक्षण दिया जा सकता है। राष्ट्रीय अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने इस बारे में पश्चिम बंगाल के अधिकारियों को लिखा है लेकिन वे चुप्पी साधे हुए हैं।
अहीर ने कहा कि केरल एवं तेलंगाना में भी इसी प्रकार की विसंगतियों की शिकायतें मिलीं हैं। जिनकी जांच करायी जा रही है। उन्होंने यह भी साफ किया कि बात मुस्लिम या हिन्दू की नहीं है। मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर बने कानून के मुताबिक मुस्लिम पिछड़े वर्गों को भी इसका फायदा मिलता है लेकिन जातियों के निर्धारण का तरीका न्याय सम्मत नहीं है। किसी ने कुछ कह दिया तो वैसे ही मान लिया गया। बहुत सारे मुस्लिम जातियों को पूर्व में हिन्दू होने एवं मतातंरण के बाद मुस्लिम बनने का हवाला दिया गया है।
उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि आरक्षण का लाभ उसके वास्तविक हकदार लोगों को मिले। इसके लिए वह राज्य सरकार को जवाबदेह बनाने का प्रयास नहीं छोड़ेंगे।