युगों युगों से नवरात्रि का व्रत किया जाता है। इन नौ दिनों में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के निमित्त हम इन देवियों के नौ रूपों की महिमा जान कर लेंगे।नवरात्रि का व्रत अर्थात आदि शक्ति की उपासना है। देवीकवच में लिखा हुआ निम्न श्लोक एवं उसका अर्थ इस प्रकार है।
प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रिश्च महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना।।
अर्थ : प्रथम शैलपुत्री, द्वितीय ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चौथी कूष्मांडा, पांचवी स्कंदमाता, छठवीं कात्यायनी, सातवीं कालरात्रि, आठवीं महागौरी एवं नौवीं सिद्धिदात्री, ऐसे ये नव दुर्गा के नौ नाम साक्षात ब्रह्म देव ने बतलाए हैं। नवरात्रि में नौ दिन देवी के उपरोक्त नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के प्रथम दिन आदिशक्ति देवी का प्रकट होने वाला शैलपुत्री रूप!
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृृतशेखराम।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
अर्थ : मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करने वाली, वृषभ पर आरूढ, त्रिशूल धारिणी, वैभवशाली ऐसी शैलपुत्री देवी को इच्छित मनोकामना पूर्ण हो इसलिए मैं वंदन करता हूं।
शैलपुत्री : पर्वत राज हिमालय की कन्या होने के कारण उन्हें शैलपुत्री ऐसे संबोधित किया जाता है। समस्त देवताओं के अहंकार का भी हरण करने वाली शैलपुत्री को हैमवती भी संबोधित किया जाता है। भक्तों के मनोवांछित पूर्ण करने वाली, चंद्रालंकार धारण करने वाली, वृषभ आरूढ,त्रिशूल धारिणी एवं यश प्राप्त करवाने वाली शैलपुत्री देवी के चरणों में कोटि-कोटि वंदन।
नवरात्रि के दूसरे दिन प्रकट होने वाला आदिशक्ति का रूप ब्रह्म चारिणी
ब्रह्मचारिणी यह देवी सती का अविवाहित रूप है। ब्रह्मचारिणी इस नाम में ब्रह्म अर्थात शुद्ध आत्म तत्व एवं ब्रह्मचारिणी अर्थात आत्म तत्व की उपासना में सतत रत (मग्न), रहने वाली पार्वती ने शिव पति रूप में प्राप्त हो इसलिए महर्षि नारद के बतलाने पर सहस्त्रों वर्ष कठिन तपश्चर्या की। अंत के कुछ सहस्त्र वर्ष वह केवल बिल्व पत्र के आहार पर रहीं, एवं अंत में उन्होंने बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया तब उसे अपर्णा यह नाम प्राप्त हुआ। पर्ण अर्थात पत्ता एवं अपर्णा अर्थात व्रत पालन करते समय जिसने पत्तों के सेवन का भी त्याग कर दिया वह ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप ज्योतिर्मय एवं भव्य है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्म देव ने आकाशवाणी के माध्यम से बताया देवी आज तक आपके जैसी एक निष्ठ होकर किसी ने भी साधना नहीं की। तुम्हें साक्षात शिव शंकर पति रूप में प्राप्त होने वाले हैं। देवी ने संसार के सामने ईश्वर प्राप्ति के लिए अखंड साधना करके अविरत साधना का अति उत्तम आदर्श रखा है।
चंद्रघंटा यह आदिशक्ति का तीसरे दिन प्रकट होने वाला रूप
देवी चंद्रघंटा यह पार्वती का विवाहित रूप है। देवी पार्वती का शिव से विवाह होने के बाद देवी ने अपने मस्तक पर घंटा रूप में अलंकार अर्थात गहने के रूप में चंद्र धारण किया है। देवी का चंद्रघंटा यह रूप सदैव शस्त्र युक्त होता है। वह दश भुजा है व उनकी कांति सुवर्णमय है। चंद्रघंटा देवी के घंटे से निकलने वाली चंड ध्वनि से दानव सदैव घबराते हैं। देवी चंद्रघंटा भक्तों के जीवन के दुख दूर करने के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं। देवी उनके भक्तों के जीवन से भूत, प्रेत एवं पिशाच बाधा दूर करती हैं।
आदिशक्ति का नवरात्रि के चौथे दिन प्रकट होने वाला कूष्मांडा रूप
कूष्म अर्थात स्मित हास्य! कूष्मांडा अर्थात केवल अपने स्मितहास्य से ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने वाली। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था एवं सर्वत्र अंधकार था उस समय देवी ने कूष्मांडा रूप में केवल हास्य से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की। कूष्मांडा यह आदि शक्ति का आदि स्वरूप है। सूर्य मंडल के अंदर जो शक्ति है वही कुष्मांडा है। कूष्मांडा देवी अष्टभुजा देवी है। संस्कृत भाषा में भूरे कुम्हडे को भी कूष्मांड कहा जाता है। कुष्मांडा देवी को भूरे कुम्हडे की बली अत्यंत प्रिय है। कुष्मांडा देवी भक्तों के रोग एवं शोक दूर करने वाली एवं आयुष्य वृद्धि करने वाली देवी है। देवी के इस नाम के विषय में अनेक पाठ भेद हैं।
आदिशक्ति देवी का नवरात्रि के पांचवें दिन प्रकट होने वाला स्कंदमाता रूप
बाल रूप कार्तिकेय को गोद में ली हुई आदिशक्ति ज्ञान दायिनी होने के कारण उनका स्कंदमाता यह ज्ञान स्वरूप है। देवताओं के सेनापति अर्थात कार्तिकेय का एक नाम स्कंद है। स्कंद माता अर्थात कार्तिकेय की माता। इस अर्थ से देवी का एक नाम स्कंदमाता ऐसा भी है नवरात्रि की पंचमी तिथि को आदिशक्ति की स्कंदमाता इस रूप में पूजा की जाती है। इस रूप में देवी की गोद में भगवान कार्तिकेय बाल रूप में बैठे हैं। चतुर्भुज स्कंद माता सिंह पर आरूढ है । इस रूप में देवी ज्ञान दायिनी है। इस रूप में स्कंदमाता ने बाल रूप के कार्तिकेय को स्वरूप का ज्ञान दिया इसलिए वह ज्ञान स्वरूपिणी है।
नवरात्रि के 6ठें दिन आदिशक्ति का भय, शोक दूर करने वाला कात्यायनी रूप
महर्षि कत के पुत्र कात्य ऋषि एवं कात्य ऋषि के पुत्र महर्षि कात्यायन। महर्षि कात्यायन की इच्छा थी कि देवी उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें। इसलिए उन्होंने आदिशक्ति की कठोर तपश्चर्या की थी। महर्षि की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने योग्य समय आने पर आपके घर में पुत्री के रूप में जन्म लूंगी ऐसा उन्हें बताया। कालांतर में महिषासुर का आतंक बढ़ने से ब्रह्मा विष्णु एवं महेश इनकी संयुक्त ऊर्जा से जिस शक्ति स्वरूपिणी की उत्पत्ति हुई उस शक्ति ने अश्विन कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को कात्यायन ऋषि के यहां जन्म लिया। देवी ने कात्यायन ऋषि के यहां जन्म लिया इसलिए उन्हें कात्यायनी कहा जाता है। दुर्गा, भवानी, चामुंडा यह सब कात्यायनी देवी के ही रूप हैं। नवरात्रि के छठवें दिन देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है।
नवरात्रि के 7वें दिन प्रकट होने वाला आदिशक्ति का कालरात्रि रूप अर्थात शुभंकरी
नवरात्रि के सातवें दिन देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है। कालरात्रि देवी का रंग काला है। इस देवी के उच्छवास से अर्थात सांसों से अग्नि की ज्वालाएं निकलती हैं। देवी के ब्रह्मांड के समान गोल आकार के तीन नेत्र हैं। उनका वाहन गर्दभ (गधा) है। कालरात्रि का रूप भयंकर है, परंतु वह हमेशा शुभ फल देने वाली है इसलिए ही कालरात्रि देवी को शुभंकरी (मंगलदायिनी) ऐसा नाम दिया गया है। देवी कालरात्रि अर्थात आदि शक्ति का विनाशकारी रूप। देवी का यह रूप देखकर सभी दानव, भूत प्रेत आदि डरते हैं। कालरात्रि देवी की उपासना करने से ग्रह पीडा, अग्निभय, जल भय, जंतु भय एवं शत्रु भय दूर होता है। कालरात्रि देवी शुभंकरी होने से वह पापनाशिनी एवं पुण्य प्रदायिनी है। काली, कालिका यह कालरात्रि के ही रूप हैं।
नवरात्रि के आठवें दिन प्रकट होने वाला आदिशक्ति का महागौरी रूप
शिव पति रूप में प्राप्त हों इसलिए देवी द्वारा की गई कठोर तपस्या से उनका शरीर काला पड़ गया, शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें पवित्र गंगाजल से नहला दिया तब देवी का गौर रूप दिखने लगा, इसलिए उसे महागौरी कहा जाता है। नवरात्रि की अष्टमी तिथि को आदिशक्ति की महागौरी इस रूप में पूजा की जाती है। इस रूप में देवी को आठ वर्ष की कन्या माना गया है। देवी द्वारा धारण किए हुए वस्त्रों का रंग सफेद है। देवी की चार भुजाएं हैं एवं देवी का वाहन वृषभ है। देवी ने छोटी उम्र में ही शिव को पति मान लिया था। आदिशक्ति उनके महागौरी रूप में भक्तों के ताप, पाप एवं संचित धो डालती हैं, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। संक्षेप में महागौरी की उपासना से भक्त पवित्र हो जाता है एवं उसकी अंतर बाह्य शुद्धी होती है। महागौरी की विशेषता यह है कि यह देवी मनुष्य को सत् की ओर जाने की प्रेरणा देती है।
आदिशक्ति का योग माया स्वरूप एवं उन्होंने किया हुआ असुरों का संहार
अष्टमी यह तिथि आदिशक्ति से संबंधित है। कृष्ण अष्टमी को श्री कृष्ण के जन्म से पहले आदिशक्ति स्वयं योग माया के रूप में जन्म लेती हैं । योग माया अर्थात जगत जननी ही। उसकी माया अनंत एवं अवर्णनीय है। यही योग माया श्री विष्णु के श्री राम अवतार के समय सीता बनकर आई एवं रावण असुर के बंधन में रहीं। साक्षात आदि शक्ति को एक असुर के बंधन में रहने का क्या काम? परंतु यही उसकी माया है जो कोई भी समझ नहीं सकता। आदिशक्ति योग माया की सहायता से श्री विष्णु ने मधु एवं कैैटभ इन असुरों का नाश किया। केवल योग माया की कृपा से ही श्री विष्णु ने अत्यंत बलशाली मधु एवं कैैटभ इन असुरों का नाश किया। यह कहानी सबको मालूम ही होगी। ऐसी इस जगत जननी, महामाया, दैत्य संहारिणी, त्रिभुवन नायिका श्री दुर्गा देवी का विजय हो!
नवरात्रि के नौवे दिन प्रकट होने वाला आदिशक्ति का सिद्धिदात्री रूप
अष्ट महासिद्ध प्राप्त एवं भक्तों की लौकिक एवं पारलौकिक इच्छाएं पूर्ण करने वाली देवी सिद्धिदात्री की नवरात्रि के नौवें दिन पूजा की जाती है। मार्कंडेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इशित्व एवं वशित्व यह आठ सिद्धियां हैं। इन सि द्धियों को प्रदान करने वाली देवी सिद्धिदात्री हैं। श्री सिद्धिदात्री देवी भक्तों की लौकिक एवं पारलौकिक दोनों इच्छाएं पूरी करती हैं। सभी भक्त ईश्वर प्राप्ति की इच्छा करें ऐसा नहीं है, जिसको सिद्धि प्राप्ति की इच्छा हो उसे सिद्धिदात्री देवी सिद्धि प्रदान करती हैं, एवं जिसे अष्ट सिद्धियों का स्वामी ईश्वर चाहिए उसे वह ईश्वर की प्राप्ति करवा देती हैं, अर्थात वह मोक्ष दायिनी हैं। ऐसी मोक्षदायिनी सिद्धिदात्री देवी के चरणों में कोटीशः नमन।
महामाया आदि शक्ति को शरण जाना यही एक मात्र मार्ग होना
मनुष्य रूप में देवता अथवा असुर इनको ना पहचान पाना यह भी आदि शक्ति की योग माया है। आज हम कलियुग में हैं। अन्य युगों की अपेक्षा यह युग कठिन है एवं स्थूल है। इस युग में भगवान ने मनुष्य रूप में अवतार लिया अथवा असुर मनुष्य रूप में है यह समझना कठिन है।
आदिशक्ति अर्थात ईश्वर का शक्तिस्वरूप जिससे संपूर्ण सृष्टि का कार्य अनवरत रूप से चलते रहना – आदिशक्ति के संदर्भ में उपरोक्त लेख से आदि शक्ति के बिना हमारा अस्तित्व नहीं है यह ध्यान में आएगा। संक्षिप्त में कहा जाए तो आदिशक्ति भगवान की ही शक्ति है, जिसके कारण ईश्वर द्वारा निर्मित की हुई सृष्टि का चक्र चालू रहता है। जैसे अग्नि एवं अग्नि की दाहकता एक ही है, वैसे ही ईश्वर एवं उनकी शक्ति एक ही है। निर्गुण ईश्वर का सगुुणत्व शक्ति के कारण ही है। त्रिगुणों के आधार से आदि शक्ति ही सभी कार्य करती है एवं सबसे कार्य करवा लेती है, भले ही वे ईश्वर हों अथवा दानव, अथवा मनुष्य इन सबसे होने वाले कार्य आदि शक्ति की कृपा से ही होते हैं।
सब कुछ आदिशक्ति की इच्छा से होता है इसलिए उसकी शरण जाना यही एकमात्र मार्ग होना – कुछ लोगों को प्रश्न आता है सब कुछ आदि शक्ति की इच्छा से ही होता है तो हम परिश्रम क्यों करें ? हम काम क्यों करें? इसका उत्तर भी आदि शक्ति ही है। हम शांत बैठे ऐसा सोचें तो भी हम शांत बैठ नहीं सकते। येन केन प्रकार आदि शक्ति हम सबसे कार्य करवा ही लेती है। कर्म करते रहना एवं आदि शक्ति को शरण जाना इतना ही हम कर सकते हैं। मैं कर्म ही नहीं करूंगा ऐसा कहना अयोग्य है, जो कर्म हमें मिला है वह कर्म योग्य प्रकार से करने की शक्ति हमें प्राप्त हो ऐसी उस जगत जननी आदिशक्ति के चरणों में प्रार्थना है।
उस आदिशक्ति की अनन्य भाव से भक्ति करने के नौ दिन अर्थात नवरात्रि। आदि शक्ति की कृपा सब पर समान रहती है, परंतु जिसकी जैसी भक्ति उसे वैसी देवी की कृपा प्राप्त होती है।