सबगुरु न्यूज-सिरोही। लम्बे अर्से बाद सिरोही में यह लगने लगा है कि प्रशासनिक अधिकारी भाजपा कार्यकर्ता नहीं होकर जनता के नुमाइंदे हैं। प्रशासनिक मशीनरी के पूरी बदलने के बाद अब सिरोही में सरकारी कार्यालय भाजपा पदाधिकारियों के कार्यालयों के बजाय जनता का कार्यालय लग रहा है। अर्से से सिरोही के सरकारी कर्यालय भाजपा और कंग्रेस के मुख्यालय ज्यादा लग रहे थे।
इससे पहले लम्बे अर्से से सरकारी कार्यालयों और अधिकारी भाजपा पदाधिकारियों से इस तरह घुलमिल गए थे कि यह पता नहीं चल पा रहा था कि सरकारी अधिकारी कौन है और भाजपा का कार्यकर्ता कौन। राजनीतिक कार्यकर्ता निस्संदेह जनता की समस्या को आवाज देते हैं, लेकिन प्रशासन जनता की बजाय अपने स्वार्थों को साधने के लिए राजनीतिक पार्टी के नेताओं की चापलूसी पर उतर जाएं तो सरकार और प्रशासन की जनहितैषी छवि पर विपरीत प्रभाव पडता है।
-चेहरे बता देते हैं अधिकारियों मिजाज
अधिकारी मानें या नहीं माने, लेकिन सरकारी कार्यालय में निरंतर आवाजाही करने वाले लोग उसमें बैठे अधिकारियों की वृत्ति और छवि का प्रतिबिंब होते हैं। सिरोही के सरकारी कार्यालय और इसमें बैठे अधिकारी इससे अछूते नहीं हैं। पिछले एक दशक से, शासन किसी का भी रहा हो, इन कार्यालयों में स्वच्छंद आवाजाही करने वाले नेताओं, व्यापारियों ने यह प्रदर्शित कर दिया कि कौन अधिकारी किस छवि का है। भविष्य में सरकारों ने उनके करियर का भी वही हश्र किया।
-ये घटनाक्रम बताने को काफी
वैसे यह स्थिति कांग्रेस के समय में भी रही हैं कि उनके कुछ नेता सरकारी कार्यक्रमों में कांग्रेस के नेताओं को बैठाकर कार्यक्रम को जनता की बजाय पार्टी का कार्यक्रम बनाने में कोई कमी नहीं छोडते थे। अर्से बाद प्रशासनिक अधिकारियों ने सरकारी कार्यक्रमों के लिए निर्धारित प्रोटोकाॅलों की पालना करके इन कार्यक्रम को किसी पार्टी विशेष की बजाय जनता का कार्यक्रम बनाने की फिर से पहल की है।
जनता की बजाय राजनेताओं की चापलूसी से इतर जाते हुए वर्तमान प्रशासनिक अधिकारियों ने सरकारी कार्यक्रमों के प्रोटोकाॅल की पालना करते हुए सरकार के तीन साल के कार्यक्रम में सरकार के नुमाइंदों के अलावा भाजपा के किसी नेता से मंच सजाने से परहेज ही किया।
यह बात दीगर है कि इन नेताओं के मंच पर चेहरा दिखाने के कई बार दबाव बनाने के बाद में जयपुर से आए सरकार के नुमाइंदों के अनुरोध पर अधिकारियों ने उन्हें अनुमति दे दी। इससे पहले यह स्थिति थी कि पार्टी पदाधिकारियों के किसी कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने या कार्यालयों में घुसने पर अधिकारी कुर्सी और पद की गरिमा को तिलांजली देकर सीट से उठकर खडे हो जाते या फिर सार्वजनिक रूप से उनके पास जाकर खडे हो जाते थे।
हाल ही में प्रभारी मंत्री के सिरोही जिला परिषद में ली गई बैठक के दौरान जिले के प्रशासनिक अधिकारियों की यह प्रवृत्ति भी नहीं दिखी। इतना ही नहीं एक नेता के कई घंटे तक अधिकारी के कार्यालय के बाहर इंतजार करने की घटना सिरोही के राजनीतिक गलियारे में काफी तक चर्चा का हिस्सा रही। इतना ही नहीं प्रशासन की निष्पक्षता के लिए अब इसी घटना का उदाहरण लोगों को दिया जाने लगा है।
इतना ही नहीं इन वर्तमान में अधिकांश सरकारी कार्यालयों में कार्यालय समय में सरकार का समय बर्बाद करने वाले नेताओं की बजाय फरियादियों की आवाजाही ज्यादा दिखने लगी है जबकि लम्बे अर्से से आम जनता ने इन कार्यालयों से मुंह मोड लिया था। हालत ये हो गए थे सीआरपीसी 151 और 133 को राजनीतिक और अपने प्रतिद्वंद्वियों को प्रताडित करने और मकान व दुकाने खाली करने के लिए इस्तेमाल करने लगे थे।
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