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उत्तरप्रदेश में चुनाव पूर्व बनते बिगड़ते राजनीतिक समीकरण - Sabguru News
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उत्तरप्रदेश में चुनाव पूर्व बनते बिगड़ते राजनीतिक समीकरण

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उत्तरप्रदेश में चुनाव पूर्व बनते बिगड़ते राजनीतिक समीकरण
Pre-poll political equations in uttar pradesh
Pre-poll political equations in uttar pradesh
Pre-poll political equations in uttar pradesh

देश के मौजूदा पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए मतदान लगभग पूरा हो चुका है तथा 19 मई को इन चुनावों के नतीजे भी घोषित हो जाएंगे। उसके बाद राजनीतिक दलों की परीक्षा उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों में होगी जो 2017 में संपन्न होना है।

उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक दलों में समीकरण बनने और बिगडऩे का दौर गति पकड़ चुका है तथा राजनीतिक दलों व उनके क्षत्रप नेताओं की पूरी कोशिश है कि वह विधानसभा चुनाव से पूर्व तमाम राजनीतिक संभावनाओं को अपने अनुकूल बना लें ताकि उन्हें विधानसभा चुनाव में विजयश्री हासिल करने में कोई दिक्कत न हो।

अभी एकाध दिन पूर्व ही पूर्व केन्द्रीय इस्पात मंत्री बेनी वर्मा ने कांग्रेस छोडक़र समाजवादी पार्टी का दामन थामा है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की मौजूदगी में सपा में शामिल हुए बेनी वर्मा ने मुलायम सिंह व उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की खुलकर तारीफ की तथा उन्होंने कहा कि वह राज्य के आगामी विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा की निर्णायक जीत देखना चाहते हैं।

वहीं मुलायम सिंह ने भी बेनी वर्मा की शान में कसीदे पढ़ते हुए उन्हें अपना पुराना समाजवादी साथी बताया तथा कहा कि बेनी के आने से उनकी पार्टी मजबूत होगी तथा इसका संदेश दिल्ली तक जाएगा।

इसे समय चक्र का असर ही कहा जाएगा कि पिछले लोकसभा चुनाव तक वही बेनी वर्मा, मुलायम सिंह यादव तथा अखिलेश यादव पर निशाना साधने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा करते थे तथा कांग्रेस को अपना स्थायी घर बताते हुए उनके द्वारा जोर देकर कहा जाता था कि वह मरते दम तक कभी भी समाजवादी पार्टी में शामिल नहीं होंगे।

वहीं आज अब उन्हीं बेनी वर्मा के द्वारा कहा जा रहा है कि उन्हें कांग्रेस में घुटन महसूस हो रही थी तथा वह कांग्रेसी कल्चर में खुद को एडजस्ट नहीं कर पा रहे थे इसलिये 9 साल बाद समाजवादी पार्टी में फिर शामिल हो गए।

देश में बेनी प्रसाद वर्मा जैसे और भी तमाम नेता होंगे जो हवा का रुख भांपते हुए पाला बदलने की फिराक में रहते हैं तथा जहां उन्हें मान-सम्मान, पद, प्रतिष्ठा प्राप्त होती है उसी कुनबे की बाद में वह लानत-मलानत भी करने लगते हैं, जैसा कि बेनी वर्मा के सपा में शामिल होने के बाद उनके रवैये से देखने को मिल रहा है क्योंकि नए घर में प्रवेश के बाद राजनेताओं की निष्ठा व प्रतिबद्धता दोनों ही बदल जाती है।

खैर यह तो वर्मा का मामला है कि वह अपने राजनीतिक फायदे या अपना राजनीतिक भविष्य सुखद बनाने के लिये कौन से घर में पैठ बनाने में कामयाब रहते हैं लेकिन अब सोचनीय बात कांग्रेस व समाजवादी पार्टी के लिए होगी कि बेनी वर्मा के अलग होने के बाद कांग्रेस को इस घटनाक्रम से कितना राजनीतिक नुकसान या फायदा होगा वहीं समाजवादी पार्टी के लिए भी यह सोचनीय विषय होगा कि बेनी वर्मा उसका वोट बैंक बढ़ाने, कायम रखने या पार्टी को चुनावी विजय दिलाने में कितने मूल्यवान साबित हो पाते हैं।

उत्तरप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर वैसे भी पुराने तथाकथित समाजवादियों द्वारा राज्य को राजनीतिक प्रयोगशाला के रूप में उपयोग किए जाने की संभावना प्रबल प्रतीत हो रही है। क्योंकि इधर मुलायम सिंह व बेनी वर्मा की निकटता का घटनाक्रम तो पटल पर उभरा ही है साथ ही बहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी राज्य में अपनी पार्टी का ग्राफ बढ़ाने की जुगत में लगे हुए हैं।

इन राजनेताओं की यह कवायद उन्हें राज्य की सत्ता दिलाने में कामयाब होगी या फिर उनके इस शह-मात के खेल के बीच उभरे राजनीतिक समीकरण विधानसभा चुनाव में उनकी विचारधारा के पराजय का कारण बनेंगे, यह तो 2017 में विधानसभा चुनाव के लिए वोट पडऩे और चुनाव नतीजे घोषित होने के बाद ही पता चल पाएगा।

लेकिन ताजा परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि राजनेता सिर्फ अपने राजनीतिक लाभवादी उद्देश्य को ही अपने लिए सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। बाकी आदर्श, सिद्धांत, विचारधारा, प्रतिबद्धता, निष्ठा तो सब दिखावे के लिए होते हैं।

सुधांशु द्विवेदी
लेखक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक हैं