नाडोल। लोकमान्य संत वरिष्ठ प्रवर्तक शेरे राजस्थान रूपमुनि महाराज ने कहा कि दया धर्म ही मूल है। जिसके दिल मे दया रहती है वह भव्य नीव का लक्षण है। धर्म का लक्षण अहिंसा है। वे मुक्ता मिश्री रूपसुकन दरबार में रविवार को आयोजित धर्मसभा में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जिससे आत्मा शुद्व होती है उसको दया कहते हैं। सुख का मूल दया है। दया अमृत रूपी अंधकार का नाश करने वाली है।…
तपस्वी रत्न अमृतमुनि ने कहा कि सत्य से धर्म, दया से दान, क्षमा से अक्रोध एवं धर्म के द्वारा अधर्म का नाश होता है। बालयोगी अखिलेशमुनि ने कहा कि छोटे दीपक से अंधकार थोड़े से अमृत से रोग, अगनि के कण से घास के समूह का नाश हो जाता है ठीक वैसे ही धर्म का सेक करने से पाप पुंज का नाश हो जाता है।
कालू चैन्नई के शंकरलाल पटवा, ब्यावर के दौलतराज जैन तथा दिनेश सैन सादडी ने सुन्दर गितिका प्रस्तुत की बाहर से आए भक्तों का रूपसुकन चातुर्मास समिति नाडोल के अध्यक्ष कांतीलाल जैन, महामंत्री हितैष चौहान, संयोजक जयचन्द कटारिया, प्रकाशचन्द छल्लाणी, बाबूलाल सुराणा, सहमत्री जगदीशसिंह राजपुरोहितख्ख्ख्, उपाध्यक्ष देवीचन्द बोहरा, सह संयोजक पोमाराम चौधरी किशोर अग्रवाल, नथमल गंाधी, रूपमुनि महराज के निजी सचिव नरेन्द्र देवासी, छगनलाल मेवाडा, उमाराम चौधरी, अमरसिंह राजपुरोहित, जितेन्द्र दाधिस, मनीष मेवाडा सहीत समिति सदस्यों द्वारा शॉल व माल्यार्पण से स्वागत किया गया। मंच मंच सचालन जसनगर वाले महावीरचन्द बोरून्दिया ने किया।