कोलकाता। सारदा चिटफंड मामले में करीब तीन साल तक जेल में रहने के बाद अंतरिम जमानत पर रिहा हुए तृणमूल के निलंबित सांसद कुणाल घोष ने कान से नहीं सुन पाने का दावा किया है। हालांकि विपक्षी नेताओं ने उनके इस दावे को खारिज करते हुए कहा है कि वे बचने के लिए बहाना बना रहे हैं।
दरअसल गत शनिवार को सीबीआई कार्यालय में हाजिरी देने पहुंचे कुणाल घोष को पत्रकारों ने घेर लिया। पत्रकारों ने कुणाल से पूछा कि जेल में रहते हुए उन्होंने कई बार सारदा मामले में कुछ प्रभावशाली नेताओं के नाम सार्वजनिक करने की चेतावनी दी थी।
इस बारे में अब क्या सोच रहे हैं? सवाल सुनते ही कुणाल घोष ने अपने कानो पर हाथ रखते हुए कहा कि उन्हें कुछ सुनाई नहीं दे रहा। कुणाल का कहना था कि लंबे समय तक जेल में रहने के कारण उनकी श्रवण शक्ति ठीक से काम नहीं कर रही है।
दूसरी तरफ प्रेसिडेंसी जेल के अधिकारियों ने कुणाल की इस समस्या के बारे में अनभिज्ञता जाहिर की है। उनका कहना है कि कुणाल घोष ने जेल में रहते हुए कई तरह की शारिरिक समस्याओँ की शिकायत की थी जिनका उपचार भी किया गया लेकिन उन्होंने कभी कान की किसी समस्या को लेकर कभी शिकायत नहीं की। लिहाजा कुणाल के नहीं सुन पाने के दावे को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।
विधानसभा में विपक्ष के नेता अब्दुल मन्नान ने इसे कुणाल घोष की बहानेबाजी करार दिया है। उन्होंने कहा कि असलियत यह है कि कुणाल घोष को इस बात का अहसास हो चुका है कि समझौता करने में ही भलाई है।
उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि मोदी-ममता के बीच गुप्त सांठगांठ के चलते सारदा मामले को लेकर सीबीआई ने भी खामोशी अख्तियार कर ली है। उल्लेखनीय है कि सारदा मामले में गिरफ्तारी के बाद जब तृणमूल नेतृत्व ने उनकी जमानत के लिए कोई कोशिश नहीं की तो कुणाल ने बगावती तेवर अपना लिए थे और सीधे तृणमूल नेतृत्व को धमकी देने लगे थे।
उनका कहना था कि सारदा मामले में तृणमूल के कई बडे नेता शामिल रहे हैं। कुणाल ने उन नेताओं का नाम सार्वजनिक करने की धमकी दी थी। उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर भी प्रहार किये थे।
इसका नतीजा यह हुआ कि तृणमूल ने उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया। उधर लगातार तीन सालों तक जेल में रहने के बावजूद कुणाल ने उन कथित प्रभावशाली नेताओं का नाम सार्वजनिक नहीं किया।