भारत के हृदय स्थल मध्यप्रदेश की सुंदर राजधानी भोपाल में 10 वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में देश-विदेश से पधारे सभी हिन्दी-प्रेमियों का साढ़े सात करोड़ मध्यप्रदेशवासियों की ओर से हार्दिक स्वागत, वंदन, अभिनंदन।
सार्वजनिक जीवन में सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन करने और उनमें शामिल होने के अवसर आते ही रहते हैं। सभी आयोजनों का अपना-अपना विशिष्ट महत्व होता है, लेकिन कुछ अनुष्ठान ऐसे होते हैं, जिनमें थोड़ा-सा योगदान करके भी जीवन में सार्थकता का बोध बढ़ जाता है।
दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के आतिथ्य का अवसर मिलना मेरा परम सौभाग्य है। इस तीन दिन के हिन्दी महाकुंभ में करीब 39 देशों तथा भारत के कोने-कोने से करीब 2500 से अधिक हिन्दी-प्रेमी हिन्दी को और आगे बढ़ाने की दिशा में चिंतन, मंथन करेंगे। सम्मेलन की अवधि में सभी प्रतिभागियों तथा अतिथियों के सत्कार का विनम्र दायित्व निभाते हुए मुझे अत्याधिक आनंद और आह्लाद का अनुभव हो रहा है।
हमारा हर्ष इस एक बात से कई गुना बढ़ जाता है कि हिन्दी के अनन्य भक्त और देश के गौरव, प्रधानमंत्री आदरणीय नरेन्द्र मोदीजी सम्मेलन का शुभारंभ करने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री के रूप में मात्र 16 माह की अवधि में ही उन्होंने हिन्दी का गौरव बढ़ाने की दिशा में सार्थक प्रयास किये हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर हिन्दी का गौरव बढ़ाने का सबसे पहला प्रयास पूर्व प्रधानमंत्री परम श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी ने विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ में 1977 में हिन्दी में भाषण देकर किया था। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में ओजपूर्ण भाषण देकर अटलजी के प्रयास को आगे बढ़ाया है।
अपने इसी भाषण में मोदीजी ने विश्व योग दिवस मनाये जाने का प्रस्ताव रखा, जिसे 177 देशों ने सहर्ष स्वीकार किया। फलस्वरूप 21 जून को विश्व योग दिवस मनाने की परम्परा शुरू हुई। मुझे पूरा विश्वास है कि माननीय मोदीजी के सशक्त नेतृत्व में ही हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता मिलेगी।
हिन्दी अपनी अंतर्निहित शक्ति से दुनिया भर में तेजी से प्रसारित और लोकप्रिय हो रही है। इसके सौन्दर्य और माधुर्य की एक बूँद चखने वाला भी सदा-सदा के लिए इसका अपना हो जाता है। यही कारण है कि दुनिया के 22 देशों में करोड़ों लोग हिन्दी का प्रयोग करते हैं। संसार के 150 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी के पठन-पाठन की व्यवस्था है। वर्धा में अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय स्थापित है। मॉरीशस में विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना हो चुकी है। हमारे देश में 70 प्रतिशत से अधिक लोग हिन्दी समझते हैं।
जिन राज्यों में गलत फहमी के कारण पहले हिन्दी का प्रबल विरोध होता था, वहाँ भी आज हिन्दी अपनी जगह बनाते हुए अधिकाधिक स्वीकार्य होती जा रही है। हिन्दी में विभिन्न भाषा-भाषी प्रांतों तथा समुदायों को एकता के सूत्र में पिरोने की अदभुत क्षमता है। नागपुर में प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन की अध्यक्षता मराठी भाषी अनंत गोपाल शेवड़े ने की। हिन्दी के सबसे प्रबल पक्षधर महात्मा गाँधी थे। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का पहला आह्वान करने वाले महान कवि श्री नर्मदाशंकर नर्मद भी गुजरात की माटी के ही पुत्र थे।
हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में संत कबीर, मलिक मोहम्मद जायसी, अब्दुल रहीम खा¸नखा¸ना, रसखान, अमीर खुसरो मुबारक, आलम और शेख जैसी हस्तियों के योगदान को कौन नकार सकता है?
साहित्य में तो हिन्दी ने बहुत ऊँचाइयों को छू लिया है लेकिन राजकाज में इसका अभी वांछित प्रयोग नहीं हो पा रहा। मुझे इस बात का हर्ष है कि हमने परम आदरणीय अटलजी के नाम पर प्रदेश में हिन्दी विश्वविद्यालय की स्थापना की है। राजकाज में हिन्दी का अधिकाधिक प्रयोग किया जा रहा है।
हमारे लगभग सभी विभागों की वेबसाइट हिन्दी में भी हैं। मुख्यमंत्री हेल्पलाइन के लिये पूरा सॉफ्टवेयर हिन्दी में तैयार किया गया है। कम्प्यूटर से किये जाने वाले शासन के सभी कार्यों के लिये प्राक्कलन हिन्दी में बनाये जा रहे हैं। किसानों को सलाह के एसएमएस हिन्दी में भेजे जा रहे हैं। शासकीय नोटशीट पर टीप का अंकन हिन्दी में किया जाता है।
मुझे पूरा विश्वास है कि तीन-दिवसीय विश्व हिन्दी सम्मेलन में मंथन से जो अमृत निकलेगा, वह हमारी राष्ट्रभाषा को और अधिक पुष्पित-पल्लवित करेगा। इसकी सुगंध चारों दिशाओं में और तीव्रता से प्रसारित होगी।
(लेखक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री है)