महादेव की महिमा तो अपरंपार है। वैसे तो भोलेनाथ के कई मंदिर हैं, जहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है लेकिन सोमनाथ मंदिर ऐसा ही एक मंदिर है, जिसका इतिहास बेहद खास है। ये भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में सर्वप्रथम माना जाता है। सोमनाथ मंदिर को सतयुग में राजा सोमराज ने सोने से, त्रेतायुग में रावण ने चांदी, द्वापरयुग में कृष्णा ने मंदिर और कलयुग में भीमदेव सोलंकी ने पत्थर से बनवाया था। इतिहासकार के मुताबिक, सोमनाथ मंदिर को वर्ष 1024 ईसवी में महमूद गजनबी ने तहस-नहस कर दिया था। मूर्ति को तोड़ने से लेकर यहां पर चढ़े सोने-चांदी तक के सभी आभूषणों को लूट लिया था। महमूद गजनवी के बाद कई मुगल शासकों ने सोमनाथ को खंडित कर लूटपाट की। इसे 17 बार नष्ट किया गया और हर बार इसका पुनर्निर्माण किया गया।
चंद्र ने दक्षाप्रजापति राजा की 27 कन्याओं से विवाह किया था। चंद्र देव उनमें से रोहिणी नाम की पत्नी से सबसे अधिक प्रेम करते थे। दक्ष ने अपनी बाकी कन्याओं के साथ अन्याय होता देखा तो चंद्र को शाप दे दिया, जिसके बाद से चंद्र घटने और बढ़ने लगा। शाप से विचलित और दुखी चंद्र ने भगवान शिव की पूजा शुरु कर दी। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर शाप को खत्म किया और उन्हें सोमनाथ नाम दिया।
ऐसा माना जाता है कि सोमनाथ मंदिर ही वह जगह है, जहां श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। कृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से वैकुंठ गमन किया। इस स्थान पर बड़ा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है।
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