अजमेर। सीबीआई मामलों की विशेष न्यायालय संख्या एक ने शनिवार को अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह पर हुए ब्लास्ट मामले में फैसला आठ मार्च तक के लिए टाल दिया है।
मामले में छह फरवरी को अंतिम बहस पूरी हो गई थी। दरगाह में 11 अक्टूबर 2007 को विस्फोट हुआ था। बम ब्लास्ट में हैदराबाद निवासी सलीम, मोहम्मद शोएब और डॉ. बद्रीऊल हसन की मौत हो गई तथा 15 घायल हुए थे।
इस मामले में नौ अभियुक्त नौ साल से ट्रायल का सामना कर रहे हैं। शनिवार सुबह सभी आरोपियों को कोर्ट में पेश किया गया। वहीं अदालत ने कहा कि मामला बड़ा होने के चलते केस का शनिवार तक पूरा विश्लेषण नहीं हो पाया है इसलिए फैसला 8 मार्च को सुनाया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि पूरे मामले की सुनवाई में करीब 9 साल 4 माह का समय लगा। सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष की तरफ से करीब 149 गवाह पेश किए गए, जिसमें से करीब 26 महत्वपूर्ण गवाह पक्षद्रोही हो गए।
इस मामले की सबसे पहले राजस्थान एटीएस ने जांच शुरू की। एटीएस ने पूरे मामले में तीन आरोपी देवेन्द्र गुप्ता, लोकेश शर्मा और चन्द्रशेखर लेवे को साल 2010 में गिरफ्तार कर लिया।
वहीं 20 अक्टूबर 2010 को मामले से जुड़ी पहली चार्जशीट भी कोर्ट में पेश कर दी गई, लेकिन इसके बाद अप्रेल 2011 में गृह विभाग द्वारा एक नोटिफिकेशन जारी करके मामले की जांच एनआईए को सौंप दी गई।
एनआईए ने मामले की जांच आगे बढ़ाई और हर्षद सोलंकी, मुकेश बसानी, भरत मोहनलाल रतेश्वर, स्वामी असीमानंद, भावेश अरविन्द भाई पटले और मफत उर्फ मेहूल को गिरफ्तार किया। इस मामले में कुल चार आरोप पत्र दाखिल हुए थे।
पूरे मामले में अभियोजन पक्ष की तरफ से 442 दस्तावेजी साक्ष्य पेश करते हुए। सीबीआई ने मामले में जांच के दौरान रमेश गोहिल, जयंती भाई मेहुल व हर्षद को गिरफ्तार किया था।
ये गुजरात के बेस्ट बेकरी कांड में भी आरोपित थे। इनके मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दुबारा सुनवाई के आदेश दिए थे। इनमें से जयंती भाई व रमेश गोहिल की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई थी।