मुंबई। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष कोर्ट ने मालेगांव बम धमाके मामले में आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की जमानत याचिका मंगलवार को खारिज कर दी। इससे पहले बीते सप्ताह साध्वी प्रज्ञा की याचिका पर सुनवाई पूरी हुई थी।
एनआईए ने 13 मई 2016 को क्लीन चिट देते हुए साध्वी प्रज्ञा और पांच अन्य आरोपियों के खिलाफ सभी आरोप हटा लिए थे। उल्लेखनीय है कि एनआईए ने विशेष कोर्ट में पूरक आरोप पत्र दायर करके लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित समेत 10 अन्य आरोपियों के खिलाफ मकोका भी हटा लिया था। जांच एजेंसी ने 26/11 आतंकी हमले में शहीद हेमंत करकरे की जांच पर भी सवाल उठाए थे।
गौरतलब है कि 29 सितंबर 2008 को रमजान के दौरान नासिक जिले के मालेगांव में दो बम धमाके हुए थे। इन धमाकों में 7 लोग मारे गए थे और करीब 79 लोग घायल हो गए थे। धमाके में इस्तेमाल हुई बाइक के आधार पर साध्वी के बम धमाकों में शामिल होने के आरोप लगे और इसी आरोप में 24 अकटूबर 2008 को साध्वी प्रज्ञा को गिरफ्तार कर लिया गया था।
एनआईए ने 13 मई 2016 को क्लीन चिट देते हुए साध्वी प्रज्ञा और पांच अन्य आरोपियों के खिलाफ लगे सभी आरोप हटा लिए थे। एनआईए ने कोर्ट में दाखिल किए गए पूरक आरोप पत्र में कहा है कि आरोपियों को मालेगांव धमाकों की साजिश की जानकारी नहीं थी।
जांच एजेंसी ने दावा किया कि जांच के दौरान साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और पांच अन्य के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं पाए गए। एजेंसी ने अपने आरोप पत्र में कहा कि उनके खिलाफ दर्ज मुकदमा चलाने लायक नहीं है। इस आरोप पत्र के बाद साध्वी प्रज्ञा के जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया था।
इसी तरह एनआईए ने विशेष कोर्ट में पूरक आरोप पत्र दायर करके लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित समेत 10 अन्य आरोपियों के खिलाफ मकोका भी हटा लिया था। प्रज्ञा के अलावा शिव नारायण कलसांगड़ा, श्याम भवरलाल साहू, प्रवीण टकलकी, लोकेश शर्मा और धान सिंह चौधरी के खिलाफ दर्ज आरोप हटा लिए गए थे।
एनआईए ने यह भी कहा कि जांच के दौरान यह पाया गया कि मकोका यानी महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून के तहत इस मामले में आरोप नहीं बनते। मकोका के प्रावधानों के मुताबिक, पुलिस अधीक्षक रैंक के किसी अधिकारी के सामने दिया गया बयान कोर्ट में साक्ष्य माना जाता है।
एजेंसी ने आरोप पत्र में कहा कि एनआईए ने मौजूदा अंतिम रिपोर्ट सौंपने में एटीएस मुंबई की ओर से मकोका के प्रावधानों के तहत दर्ज किए गए इकबालिया बयानों को आधार नहीं बनाया है।
उल्लेखनीय है कि प्रज्ञा और पुरोहित ने बॉम्बे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल कर आरोप पत्र और मकोका के तहत आरोप लगाए जाने को चुनौती दी थी।