नई दिल्ली। भारतीय खेलों के लिए साल 2014 महिला मुक्केबाज लैशराम सरिता देवी के आंसुओं में डूबे चेहरे और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के निर्वासित अध्यक्ष एन श्रीनिवासन के हठधर्मिता के लिए याद रखा जाएगा।
इंचियोन एशियाई खेलों में अपना सेमीफाइनल मुकाबला हारने के बाद सरिता का विरोध, उनका आंसुओं में डूबा चेहरा और अपना कांस्य पदक लौटाने की जिद जैसे भारतीय खेलों का एक चेहरा ही बन गई। इस एक वाक्य ने साबित किया कि कोई खिलाड़ी अपने साथ हुई नाइंसाफी के विरोध में किस हद तक जा सकता है।
बीसीसीआई के अध्यक्ष पद से निर्वासित हुए लेकिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के पहले चेयरमैन चुने गए श्रीनिवासन अपने दामाद गुरूनाथ मेयप्पन पर आईपीएल छह में लगे सट्टेबाजी के आरोपों और अपनी टीम चेन्नई सुपरकिंग्स को लेकर हितों के टकराव के कारण पूरे साल चर्चा में बने रहे।
भारतीय ओलंपिक संघ पर लगभग दो साल पहले लगा अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति का प्रतिबंध हालांकि इस साल ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों से हट गया लेकिन आईओए का देश में मुक्केबाजी को नियंत्रित करने के लिए बनी नई संस्था बाक्सिंग इंडिया के साथ टकराव बदस्तूर जारी है।
प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार को लेकर मुक्केबाज मनोज कुमार की लड़ाई भी साल का एक बड़ा मुद्दा रही। पूर्व क्रिकेट कप्तान कपिल देव की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने कु छ गलतफहमी के चलते मनोज का नाम पुरस्कार के लिए विचार ही नहीं किया जबकि वह इसके लिए पूरी तरह योग्य थे। मनोज ने अपने साथ हुई नाइंसाफी पर अदालत की शरण ली और वह कानून के रिंग में यह लड़ाई जीतने में कामयाब रहे और उन्हें बाद में अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया।
इन तमाम विवादों के बीच यदि कोई सबसे बड़ी घटना रही तो वह सरिता का मामला था। दक्षिण कोरियाई मुक्केबाज से सेमीफाइनल मुकाबले में पूरी तरह आगे रहने के बावजूद सरिता को हारा घोषित किया गया। सरिता ने तुरंत अपना विरोध व्यक्त किया और अगले दिन पदक वितरण समारोह में अपना कांस्य पदक कोरियाई मुक्केबाज के गले में पहना दिया।
सरिता की यह हरकत अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी महासंघ को काफी नागवार गुजरी और उन्होंने भारतीय मुक् केबाज के बाद में बिना शर्त माफी मांगने के बावजूद उनपर एक साल का प्रतिबंध लगा दिया। सरिता पर एक साल का तो प्रतिबंध लग गया है लेकिन आईओए ने बाकि्संंग इंडिया को अपनी मान्यता देने से इंकार कर एक और विवाद खड़ा कर दिया है।
श्रीनिवासन को सुप्रीमकोर्ट के चलते बोर्ड अध्यक्ष पद से अलग होना पड़ा और अभी तक उनका मामला अदालती कार्यवाही में उलझा है। श्रीनिवासन फिर से बोर्ड अध्यक्ष बनना चाहते हैं और सर्वोच्च अदालत में मामला चलते रहने के कारण बीसीसीआई के चुनाव भी अधर में लटके हैं। अब अगले साल में ही यह फैसला होगा कि श्रीनिवासन और आईपीएल मामले की जांच कर रही मुद्गल जांच समिति के लिफाफे में बंद नौ अन्य नामों का क्या भविष्य होगा। इसे देखते हुए भारतीय क्रिकेट के लिए अगले साल के शुरूआती महीने काफी सनसनीखेज होंगे।