लखनऊ। वर्ष 2015 में राजधानी लखनऊ के प्रमुख चिकित्सा संस्थान अनोखी सर्जरी के लिए चर्चा में रहे। इन जटिल आपरेशनों की सफलता के बाद निःसन्देह कहा जा सकता है कि लखनऊ मेडिकल का हब बन चुका है।
यही कारण है कि लखनऊ के किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय(केजीएमयू) और संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान(एसजीपीजीआई) में देश विदेश से मरीज इलाज कराने आते हैं। सीमित संसाधनों के बावजूद कम पैसे में लखनऊ के चिकित्सकों ने जटिल आपरेशन कर मरीज को जो जीवनदान दिया है वह काबिलेतारीफ है। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में लखनऊ का नाम रोशन कर एक नया मुकाम बनाया। बहुत जल्द ही गुजरने वाले साल 2015 की कुछ चर्चित सर्जरी के बारे में जानते हैं।
केस-1
सतना के एक व्यापारी का 5 वर्षीय बेटा श्जिसे एक्सट्रॉफी ब्लैडर नामक बीमारी थीश् को लंदन के ग्रेट आरमंड स्ट्रीट हॉस्पिटल फॉर चिल्ड्रेन में बालरोग विशेषज्ञ ने बच्चे को केजीएमयू के एसएन कुरील के रेफर किया। जहां पर एसएन कुरील ने बच्चे की समस्या को दूर करने में सफलता प्राप्त की। केजीएमयू पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के एचओडी प्रोफेसर एसएन कुरील ने बताया कि एमपी के सतना निवासी व्यवसायी के घर 5 जून 2015 को बच्चे का जन्म हुआ था, लेकिन बच्चे के पेशाब के रास्ते में दिक्कत और एक अंग के शरीर से बाहर निकले होने और उससे पेशाब बाहर टपकने की बात पता चली तो परिवार की खुशी तनाव में बदल गई।
एसएन कुरील ने बताया कि सर्जरी में सात घंटे का समय लगा। अन्य हॉस्पिटल्स में भी डॉक्टर द्वारा ये सर्जरी होती है, लेकिन 90 फीसदी मामलों में दोबारा समस्या हो जाती है। पेशाब की थैली दोबारा बाहर निकल आना और फिर उसमें से पेशाब टपकना जैसी समस्या होने की दिक्कत होती है। प्रोफेसर कुरील के अनुसार, उन्होंने इस बीमारी के लिए एक नई तकनीक विकसित की है।
इसे इंटरनेशनल लेवल पर मान्यता मिली है और इसे कुरील टेक्निक नाम दिया गया है। इसमें सफलता की दर 100 फीसदी हो गई है। 2014 में ऑस्ट्रिया में यूरोपियन सोसाइटी ऑफ पीडियाट्रिक यूरोलॉजी के सिल्वर जुबली अधिवेशन में इस ऑपरेशन की नई तकनीक का प्रदर्शन किया था। वर्ल्ड में बहुत से स्पेशलिस्ट्स ने इसे सीखने के लिए केजीएमयू आने की इच्छा जाहिर की है।
केस-2
12 सितम्बर 2015 को डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉक्टरों ने एक दिल के जन्मजात मरीज की पीडियाट्रिक सर्जरी करके 15 साल के मरीज को नया जीवन दिया। सिद्धार्थनगर निवासी मरीज पंकज को जन्मजात दिल की बीमारी थी। सर्जरी करने वाले कार्डियक सर्जन डॉ. एसएस राजपूत ने बताया कि ऐसे जन्मजात रोग को मेडिकल की भाषा में करेक्टेड ट्रांसपोजिशन ऑफ ग्रेट आर्टरी के नाम से जाना जाता है।
इस तरह की बीमारी से ग्रसित मरीज थोड़ा सा काम करने, चलने या दौड़ने पर थक जाता है। सांस फूलने लगती है और शरीर नीला पड़ने लगता है, जिसे ब्लू बेबी सिंड्रोम कहते हैं। इस बीमारी में दिल का बायां चैंबर दाएं का काम करता है और दाएं चैंबर का काम बायां करता है।
दिल से फेफड़े को रक्त ले जाने वाली पल्मोनरी आर्टरी भी जन्म से सिकुड़ी हुई थी।
दिल के बाएं और दाएं चैंबर के बीच के पर्दे में छेद था। ऐसी बीमारी से पीडि़त मरीज की कभी भी सडेन डेथ हो सकती है। इसे देखते हुए जान बचाने के लिए बाईपास मशीन से साढ़े आठ घंटे तक ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन में पल्मोनरी आर्टरी को खोल कर चैड़ा किया गया और छेद बंद कर दिया गया।
केस-3
19 अप्रैल को केजीएमयू के डॉक्टरों ने इन्फेक्शन के कारण अपना प्राइवेट पार्ट गंवाने वाले एक युवक का नया प्राइवेट पार्ट बना दिया गया। केजीएमयू के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने अनोखी सर्जरी करते हुए 6 घंटे तक ऑपरेशन करके हाथ की त्वचा और मांस से नया प्राइवेट पार्ट बना दिया।
इसके बाद डॉक्टरों ने युवक पूर्णरूप से बिना किसी दिक्कत के वैवाहिक जीवन बिताने की बात कही। इस युवक की उम्र 28 साल थी। वह बहराइच का रहने वाला था। प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉक्टर विजय कुमार ने बताया कि उसके प्राइवेट पार्ट में खास तरह का इंफेक्शन हुआ था। इसकी वजह से उसका प्राइवेट पार्ट सड़कर गिर गया। ऐसे केस बहुत कम मिलते हैं। मेडिकल की भाषा में ऐसे इंफेक्शन को फॉरनियर गैंगरीन कहते हैं, जो लिंग में ही होता है।
केस -4
22 दिसम्बर 2015 को एसजीपीजीआई के कार्डियोलोजी विभाग के डॉक्टरों ने एक मरीज की पूरी तरह बंद हो चुकी दिल की धमनी को बिना ओपन हार्ट सर्जरी कर खोलने में सफलता प्राप्त की। इसके लिए डॉक्टरों की टीम ने एंटग्रेड डिसेक्शन एंड री-एंट्री तकनीक और स्टिंगर डिवाइस का उपयोग किया। एसजीपीजीआई का दावा था कि देश में इस तरह का यह पहला सफल प्रयास है।
विभागाध्यक्ष प्रो. गोयल के मुताबिक, सख्त कैल्सिफाइड तत्वों के जमा होने की वजह से मरीज की धमनी 100 फीसदी बंद हो चुकी थी। धमनी को खोलने के लिए एंटग्रेड डिसेक्शन एंड री-एंट्री और स्टिंगरे डिवाइस का इस्तेमाल करने का फैसला किया गया। एंजियोप्लास्टी की तरह ही इसमें भी कैथेटर और फ्लैट स्टिंगरे (एक प्रकार की शार्क मछली) आकार का गुब्बारा ब्लॉक हो चुकी धमनी में पहुंचाया गया।
इसके लिए कांख में सुई बराबर छेद बनाया गया। कैल्सिफिकेशन हटाने के लिए धमनी की दीवार से स्टिंगरे मछली के डंक जैसे नुकीले सख्त वायर को आगे बढ़ाया गया। इसे आगे बढ़ने में स्टिंगरे गुब्बारे ने मदद की। इसे प्रभावित धमनी तक पहुंचाया। इसे धमनी को 100 प्रतिशत बंद कर चुके तत्वों को तोड़कर रक्त के प्रवाह को फिर से शुरू कर दिया।
केस-5
राजधानी लखनऊ के छावनी स्थित मध्य कमान अस्पताल ने एक बार फिर चुनौतीपूर्ण और दुर्लभ किडनी ट्रांसप्लांट कर मेडिकल के क्षेत्र में एक अभूतपूर्व सफलता हासिल की है। गुर्दों के इस जटिल प्रत्यारोपण के दौरान विभिन्न मरीजों ने गुर्दे ग्रहण किए हैं। इसमें गुर्दा दान करने वाले का रक्त आपस में मिलनसार नहीं था। परंपरागत रूप में गुर्दे का प्रत्यारोपण समान रक्त वर्ग व मिलनसार रक्त से होता है।
मध्य कमान अस्पताल के गुर्दा रोग विषेशज्ञ कर्नल डाॅ. अरूण कुमार ने बताया कि इस तरह के किडनी ट्रांसप्लांट करके एक नया मुकाम हासिल किया है। भारत में बहुत कम केन्द्रों में इस तरह के ट्रांसप्लांट होेते हैं। इस तरह के अंग ट्रांसप्लांट से उन मरीजों के लिए जीवन में एक आशा की किरण जागृत हुई है, जो वर्षों से डायलिसिस पर हैं। एबीओ का असामान्य रक्त गुण होने के कारण इस तरह के मरीजों की संख्या बढ़ गई है। भारत में मृत शरीर से भी किडनी ट्रांसप्लांट करने के बहुत कम विकल्प होते हैं और कुछ ही राज्यों में इस तरह के ट्रांसप्लांट होते हैं।