जयपुर। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र राठौड़ ने अजमेर के जेएलएन अस्पताल में उपचारधीन चार नवजात शिशुओं की मृत्यु के बारे में मेडिकल कॉलेज प्राचार्य एवं चिकित्सालय अधीक्षक से बात कर जानकारी ली एवं आवश्यक सतर्कता बरतने के निर्देश दिए हैं।
प्राचार्य डॉ.अग्रवाल ने बताया कि विजयनगर के निजी चिकित्सालय में एक किलो 200 ग्राम वजन के साथ प्री-टर्म जन्मा बच्चा 16 मई को अत्यंत गंभीर सेंटीपीलिया से ग्रसित था। यावर के राजकीय अमृतकौर चिकित्सालय से गंभीर हालत में रैफर होकर आठ्र बच्ची भी प्री-टर्म जन्मी थी और जन्म के समय वजन मात्र 1.34 किलोग्राम था।
उस बच्ची ने जेएलएन में भर्ती होने के बाद मात्र एक घंटे बाद ही दम तोड़ दिया। किशनगढ़ के राजकीय यज्ञनारायण अस्पताल में 1.46 किलोग्राम वजन के साथ प्री-टर्म जन्म बच्चे को किशनगढ़ के बालाजी निजी अस्पताल से रैफर किया गया था एवं गंभीर हाइपोग्लोदिया से पीडि़त बच्चे ने उपचार के दौरान मात्र 12 घंटे में ही दम तोड़ दिया।
ब्यावर के राजकीय अमृतकौर अस्पताल से रैफर होकर आई प्री-टर्म जन्मी नवजात बच्ची नियोनेटल गंभीर बीमारियों से ग्रस्त थी एवं उसका श्वसन तंत्र व किडनी भी प्रभावित हो चुकी थी। उसकी उपचार के दौरान 19 घंटे में ही मृत्यु हो गई थी। राठौड़ ने इन सभी मृत्युओं की गंभीरता से जांच कराने एवं नवजात शिशु स्वास्थ्य के प्रति विशेष गंभीरता बरतने के निर्देश दिए हैं।
13 बच्चों के मारे जाने पर कांग्रेस ने जताई चिंता
उधर, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने सात दिन के अंतराल में अजमेर के जेएलएन अस्पताल में 13 बच्चों के मारे जाने पर गहरी चिंता व्यक्त की है। पायलट ने एक बयान जारी कर कहा कि गत् एक सप्ताह में चिकित्सीय लापरवाही के कारण अजमेर के जेएलएन अस्पताल में 13 बच्चे मारे गए है।
उन्होंने कहा कि इन सभी मौतों को सामान्य बताकर सरकारी स्तर पर लीपापोती की जा रही है। परन्तु सच्चाई यह है कि इन बच्चों को जैसे उपचार व देखभाल की आवश्यकता थीए उसकी अनदेखी हुई जिसके परिणामस्वरूप बच्चों की असमय मौत हुई।
उन्होंने कहा कि संभाग के सबसे बड़े अस्पताल के ऐसे हालात होना चिंताजनक है क्योंकि बच्चों को इस अस्पताल में इस उम्मीद से रैफर किया जाता है कि उनके जीवन की रक्षा हो सकेगी। उन्होंने कहा कि छह मौतों के दौरान सामने आया था कि गंभीर अवस्था में भर्ती हुए बच्चों को रेजीडेंट डॉक्टरों के भरोसे छोड़ा गया जबकि विशेषज्ञों को तुरंत बुलवाकर उन्हें जीवनरक्षक उपकरण की सहायता से बचाया जा सकता था।
उन्होंने कहा कि यह बहुत ही अफसोस जनक है कि चिकित्सा विभाग के प्रमुख शासन सचिव के सामने अस्पताल की अव्यवस्थाएं उजागर होने के बावजूद मात्र एक चिकित्सक को एपीओ किया गया जबकि जेएलएन अस्पताल में घोर लापरवाही बरतने वाली सम्पूर्ण व्यवस्था की जिम्मेदारी सुनिश्चित होनी चाहिए थी।
उन्होंने कहा कि बार.बार हो रही बच्चों की मौत के बावजूद सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही जो सरकार की असंवेदनशीलता को उजागर कर रहा है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार के राज में चिकित्सीय लापरवाही के अनेकों प्रकरण सामने आये है परन्तु सरकार ने किसी भी मामले में कठोर कार्यवाही नहीं की जिस वजह से मौतों का सिलसिला जारी है।