इंदौर/नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में क्लीनिकल ट्रायल (दवाओं के परीक्षण) के मामले पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई जारी है। शुक्रवार को न्यायाधीश दीपक गुप्ता, अब्दुल नजीर और मदन बी लोकुर की पीठ ने याचिका पर सुनवाई की।
याचिकाकर्ताओं का दावा है कि 12 वर्षो में दवा परीक्षण से गंभीर रूप से प्रभावित 24,117 मामले सामने आए हैं, जिनमें 4534 लोगों की मौत हो चुकी है।
स्वास्थ्य अधिकार मंच की ओर से बताया गया है कि शुक्रवार को क्लीनिकल ट्रायल के मुद्दे पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। यह याचिका फरवरी, 2012 में दायर की गई थी। मामले की अगली सुनवाई दिसंबर में होगी।
मंच के मुताबिक, शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने कहा कि क्लीनिकल परीक्षणों से जुड़े कानूनों और विनियमों में खामियों को लेकर केंद्र सरकार ने जुलाई 2017 में न्यायालय को बताया था कि उसने नया कानून और गजट नोटिफिकेशन जारी किया है, लेकिन इसका जमीनी स्तर पर कोई अपेक्षित परिणाम नहीं दिखाई दे रहा है।
मंच के पदाधिकारियों ने बताया कि नवंबर, 2016 में सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक, क्लीनिकल ट्रायल से जनवरी, 2005 से सितंबर, 2016 के बीच मौत और गंभीर प्रतिकूल घटनाओं (एसएई) के कुल 24,117 मामले दर्ज हुए हैं। मौत के 4534 मामले हैं, हालांकि केवल 160 मामलों में ही मुआवजा देने की बात कही गई है।
उन्होंने कहा कि ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने मुआवजे के कुछ मामलों का कोई विवरण नहीं दिया है, जिससे पता चल सके कि किसे और कितना मुआवजा दिया गया है।
ज्ञात हो कि स्वास्थ्य अधिकार मंच ने अनैतिक दवा परीक्षण करने वाले चिकित्सकों के खिलाफ मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) में भी शिकायत दर्ज कराई थी, जिस पर कार्रवाई करते हुए एमसीआई ने इन चिकित्सकों के लाइसेंस तीन माह के लिए निलंबित कर इनकी मेडिकल प्रैक्टिस पर प्रतिबंध लगाया था। इन चिकित्सकों पर कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की गई है और दोषी चिकित्सक अभी भी प्रैक्टिस कर रहे हैं।